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“पाण्डुलिपिविज्ञानं प्रतिलेखनञ्च” राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह भव्य रूप में सम्पन्न

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नलबाड़ी, 16 जुलाई: कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सौजन्य से आयोजित “पाण्डुलिपिविज्ञानं प्रतिलेखनञ्च” विषयक २१ दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन समारोह दिनांक १३ जुलाई २०२५ को भव्य एवं गरिमामय वातावरण में सम्पन्न हुआ।यह कार्यशाला २३ जून से १३ जुलाई २०२५ तक निरंतर रूप से आयोजित की गई, जिसमें देशभर के विभिन्न प्रदेशों से आए छात्र, शोधार्थी एवं अध्यापकवर्ग ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रह्लाद रा. जोशी जी उपस्थित थे। उन्होंने संस्कृत भाषा के पुनर्जीवन एवं प्राचीन पाण्डुलिपियों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रेरणास्पद उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा, “पाण्डुलिपियाँ केवल लेख नहीं होतीं, वे भारत की बौद्धिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं। उनका संरक्षण हमारा परम कर्तव्य है।”विशेष अतिथि के रूप में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर के बौद्ध अध्ययन विभागाध्यक्ष डॉ. उत्तम सिंह जी आमंत्रित थे। उन्होंने तीन दिनों तक नागरी लिपि पर प्रशिक्षण प्रदान किया और समापन दिवस पर “पाण्डुलिपियों के लिप्यन्तरण में नागरी लिपि की भूमिका” पर विश्लेषणात्मक व्याख्यान प्रस्तुत किया।ऑनलाइन माध्यम से केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के “संस्कृत ज्ञान भारत” के समन्वयक डॉ. डी. देवनाथ जी भी इस समारोह से जुड़े। उन्होंने पाण्डुलिपि परम्परा के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं दार्शनिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए यह रेखांकित किया कि “पाण्डुलिपियों के माध्यम से भारत के विविध दर्शनशास्त्रों की मूल धारा संरक्षित है, और उनका संरक्षण हमारी परंपरा को जीवित रखने का माध्यम है।”इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए। एक प्रतिभागी ने कहा, “यह कार्यशाला केवल एक शैक्षणिक अनुभव नहीं, बल्कि जीवन की पाठशाला सिद्ध हुई।”कार्यशाला के अंतिम दिन प्रतिभागियों ने कार्यशाला के दौरान प्राप्त ज्ञान का प्रस्तुतीकरण PowerPoint के माध्यम से किया। शारदा लिपि का अभ्यास, ब्राह्मी-नागरी लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन, पाण्डुलिपि के लक्षण, संरक्षण की विधियाँ आदि विषयों पर गहन प्रस्तुति दी गई।
समापन समारोह में सभी प्रतिभागियों को विश्वविद्यालय की ओर से प्रमाणपत्र प्रदान किए गए एवं कुछ उत्कृष्ट प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया, जिससे सभी में नवचेतना एवं उत्साह का संचार हुआ।समारोह का संपूर्ण संचालन विश्वविद्यालय के सर्वदर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत कुमार तिवारी द्वारा अत्यंत व्यवस्थित एवं गरिमापूर्ण ढंग से किया गया। उन्होंने कार्यशाला की पूर्ण रूपरेखा, आयोजन, संवाद एवं सहभागिता को सुव्यवस्थित रूप से निर्देशित किया।धर्मशास्त्र विभागाध्यक्षा डॉ. मैत्रेयी गोस्वामी जी ने भी आयोजन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हुए छात्र-छात्राओं को सदैव प्रोत्साहित किया।इस आयोजन के दृश्यांकन का कार्य विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र श्री कमल राजवंशी ने अत्यंत दक्षता से किया।इस प्रकार “पाण्डुलिपिविज्ञानं प्रतिलेखनञ्च” विषयक कार्यशाला का यह समापन समारोह केवल एक आयोजन न होकर संस्कृत के पुनरुत्थान, पाण्डुलिपियों के संरक्षण एवं शोध की दिशा में एक नवचेतनापूर्ण एवं सफल प्रयास सिद्ध हुआ।

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