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‘पाण्डुलिपिविज्ञान एवं प्रतिलेखन’ विषयक २१ दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का तृतीय दिवस सम्पन्न

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केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के आर्थिक सहयोग से तथा कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय के प्रयास से आयोजित ‘पाण्डुलिपिविज्ञान एवं प्रतिलेखन’ विषयक कार्यशाला दिनांक २३.०६.२०२५ से १३.०७.२०२५ तक निरंतर संचालित की जा रही है। इस कार्यशाला में भारत के विभिन्न प्रान्तों से पाण्डुलिपि विशेषज्ञ, विषय के प्रखर विद्वान, अपने ज्ञानप्रकाश से प्रतिभागियों को निरंतर लाभान्वित कर रहे हैं।
इसी क्रम में आज दिनांक २५.०६.२०२५ को बिहार राज्य की राजधानी पटना से पधारे ख्यातनाम विद्वान श्री भवनाथ झा जी की गरिमामयी उपस्थिति रही। आज उनके चार सत्र आयोजित किए गए। प्रथम सत्र का शुभारंभ वैदिक मंगलाचरण से हुआ, जिसे श्री धरणी शर्मा जी ने प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन श्री रणजीत कुमार तिवारी जी द्वारा किया गया।
प्रथम सत्र में श्री भवनाथ झा जी ने प्रतिभागियों के समक्ष पाण्डुलिपि की परिभाषा, उसका स्वरूप, विविध भेद तथा गूढ़ तत्त्वों का युक्तियुक्त एवं भावपूर्ण विवेचन करते हुए शास्त्रीय उदाहरणों के माध्यम से पाण्डुलिपि विज्ञान की मूलभूत अवधारणाओं को स्पष्ट किया।
द्वितीय सत्र में उन्होंने पाण्डुलिपियों के भेद, भेदों के कारण, तथा उनमें श्रेष्ठ, मध्यम, अधम इत्यादि की विशेषताओं का वर्गीकरण करते हुए गहन विमर्श प्रस्तुत किया। इस दौरान प्रतिभागियों द्वारा उठाए गए विविध जिज्ञासाओं का समाधान भी उन्होंने तत्परता से किया, जिससे सभी प्रतिभागियों में विशेष संतोष देखा गया।
तृतीय सत्र अत्यन्त विशिष्ट एवं व्यवहारिक रहा। इस सत्र में ‘मेरुतंत्र’ नामक एक पाण्डुलिपि का प्रत्यक्ष प्रतिलेखन उन्होंने स्वयं कर दिखाया तथा तत्पश्चात पदच्छेद, पदार्थोक्ति आदि की रीति से उसका परिष्करण भी कर दिखाया, जिससे प्रतिभागियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रतिलेखन की प्रक्रिया को समझने का अवसर प्राप्त हुआ।
चतुर्थ सत्र में विश्वविद्यालय के महामहोपाध्याय-पण्डित श्री धीरेन्द्रनाथ ग्रन्थागार का भ्रमण किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता, प्रतिभागीगण एवं संयोजकगण – डॉ. रणजीत कुमार तिवारी, डॉ. सुधाकर मिश्र, डॉ. मैत्रेयी गोस्वामी, डॉ. छविलाल उपाध्याय आदि सम्मिलित हुए। वहाँ उपस्थित पाण्डुलिपियों का निरीक्षण करते हुए कुछ विशिष्ट पाण्डुलिपियों का सम्पादन हेतु चयन भी किया गया एवं भविष्य में उनके सम्पादन हेतु संकल्प लिया गया।
अन्ततः सभागार में लौटकर धन्यवाद ज्ञापन के साथ दिनांक २५.०६.२०२५ का यह आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

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