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पुरुषोत्तम श्रावण माहात्म्य ….(२)

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प्रिय मित्रों ! इसे पुरुषोत्तम मास कहते हैं अर्थात-“मासोत्तमे मासे पुरुषोत्तम मासे” ये श्रेष्ठ मास होते हुवे भी इसके सन्दर्भ में अनेक मान्यतायें परम्परागत होते हुवे भी उनके प्रति लोगों में अनेक भ्रान्तियाँ भी व्याप्त हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं कि-
“द्वाविमौ पुरूषो लोके क्षरःमाऽक्षर उच्यते।
क्षरः सर्वाणी भूतानि कूटस्थऽक्षर उच्यते॥”
“पुरूष और पुरुषोत्तम” के अंतर को समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है, और तिसपर भी निरन्तर क्षय होते अर्थात परिवर्तित होते ! रूपान्तरित होते-होते जन्म-बाल्य-किशोर-युवा-वृद्ध और अंततः जर्जर होते हुवे शरीर का पतन हो जाना ! ये इस क्षयशील शरीर-पदार्थ और संसार का परिणाम है,ये सभी स्त्री-पुरुषों का परिणाम है ! और इस क्षय से मुक्ति दाता हैं पुरूषों में उत्तम पुरुषोत्तम ! जो कर्षण करते हैं-“कर्षयति आकर्षयति आत्मानं परमात्मानां वा सः कृष्ण” अर्थात श्रीकृष्ण और शिव दोनों ही-“क्षयशील पुरूष” के तारणहार पुरुषोत्तम हैं।
आप जानते हैं कि अभी देवशयनी एकादशी व्यतीत हो चुकी दिनांक १७ जुलाई को आने वाली कर्क संक्रान्ति अर्थात यह दक्षिणायन की प्रथम संक्रान्ति है ! इस संदर्भ मे मुहूर्तचिन्तामणि में कहते हैं कि-
“वाप्यारामतडागकूपभवनारम्भप्रतिष्ठे व्रते।
रम्भोत्सर्गवधूप्रवेशनमहादानानि सोमाष्टके॥”
आदरणीय मित्रों ! भगवान श्री शंकराचार्य जी ने कहा है कि-” यथा देहे-तथा देने, यथा देवे-तथा गुरूः” मुझे भूख लगती है,स्वादिष्ट भोजन की इच्छा होती है ! अर्थात देवताओं को भी भूख लगती है ! उनके लिये भी स्वादिष्ट अन्न होने चाहिए ! हमें नींद आती है,अच्छी शय्या की इच्छा रहती है ! देवताओं को भी नींद आती है ! इसी हेतु दक्षिणायन की व्यवस्था शास्त्रों ने की है, उनके लिये भी उत्तम आसन और शय्या की व्यवस्था होनी चाहिये।
मैं जब सोता हूँ,रात ! आधीरात प्यास लगती है, उठने का मन नहीं होता ! अतः पानी लेकर सोता हूँ,अर्थात घर के अथवा बाहर के किसी भी मन्दिर में रात भगवान के लिये भी जल रखकर सोना चाहिए। अब यहाँ अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप विचार करना ! आप सो रहे हैं ! आपको प्यास लगी ! और आपने अपने आप में सामर्थ्य होते हुवे भी केवल आलस्य के कारण पत्नी,माँ, बेटी को जगा दिया कि -“पानी पिलाओ” ! इसे अत्याचार कहते हैं, आप सो रहे हैं और आपको कोई अनावश्यक कहे कि उठो ! यहाँ नहीं वहाँ सोना है ! इससे आपको अच्छा लगेगा ? इसी हेतु अधिमास में (यथा सम्भव दक्षिणायन में भी) देवालय की प्रतिष्ठा अर्थात देवता को उठाकर कहीं और बैठाना ! यज्ञोपवीत,मुन्डन,
विवाह,कर्णवेध जैसे अनुष्ठान नहीं करने चाहिए-
“दीक्षामौञ्जिविवाहमुण्डनमपूर्वं देवतीर्थेक्षणं।
सन्यासाग्निपरिग्रहौ नृपतिसंदर्शाभिषेकौ गमम्॥”
किन्तु रात आप सो रहे हैं ! आपका स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया ! तो आप क्या करोगे ? किसी अपने को याद करोगे, बुलाओगे आप ! बिलकुल ऐसे ही अधिमास ,क्षय मास,भद्रा,शुक्र अस्त होने पर भी प्राणघातक व्याधियों के निवार्णार्थ महामृत्युंजय , शत्रु षड्यंत्र से बचने हेतु बगलामुखी, नरसिम्हाभिषेक, अनावृष्टि हेतु,कपिल षष्ठी ऋणमोचन मंगल अनुष्ठान,श्राद्ध,दान,अंतिम संस्कार,तर्पण,गर्भाधान आदि सभी संस्कार किये जाते हैं इसमें कोई भी संशय नहीं रखना चाहिये।
आदरणीय मित्रों ! वशिष्ठसिद्धान्त में स्पष्ट कहते हैं कि-
“द्वात्रिंशभ्दिर्गतैर्मासैर्दिनैः     षोडशभिस्तथा।
घटिकाना चतुष्केण  पतति ह्याधिमासकः ॥:
इन ३२ मास १६ दिवस के उपरांत आने वाले महा पर्व को आप मलीन मास न समझें ! इस मास में निःस्वार्थ भाव से केवल -“शिव(कल्याण)संकल्पित किये हुवे कृत्य,साधु सेवा, भगवान शिव का अभिषेक,श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ नाम संकीर्तन आदि अक्षय फल को प्राप्त कराते हैं।
इस पुरुषोत्तम श्रावण मास में ब्रम्हवैवर्त पुराण का पाठ,गौ सेवा, कुवाँरी कन्याओं की सेवा,दीप दान,किसी निर्धन को छतरी का दान, किसी गरीब रोगी को आवश्यक औषधियां दिलवाना,
आदि ऐसे अनेकानेक कार्य हैं जिनके द्वारा आप धर्म पालन के साथ-साथ समाज के हितार्थ अपने तन-मन-धन का सदुपयोग कर कृतकृत्य हो सकते हैं-“आनंद शास्त्री”

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