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देश-दुनिया के किसी भी मुल्क की लोकतंत्र में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। पुलिस का काम है निष्पक्षता के साथ कानून लागू करना, जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना और अपराधों पर अंकुश लगाना।
लेकिन जब पुलिस का राजनैतिक दलों के साथ गठजोड़ बन जाता है, तो यह न केवल कानून व्यवस्था को प्रभावित करता है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी कमजोर करता है। पुलिस और राजनीति के गठजोड़ का स्वरूप बहुआयामी होता है। चुनावों के दौरान नेताओं द्वारा पुलिस का दुरुपयोग, राजनैतिक विरोधियों को दबाने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल या फिर पुलिस अधिकारियों के तबादलों और पदस्थापनाओं में राजनैतिक दखल, इस गठजोड़ के आम उदाहरण हैं। नेताओं द्वारा पुलिस का उपयोग करने की बात करे तो, विभिन्न रिपोटों में यह सामने आया है कि चुनावी लाभ उठाने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर चुनावों में देशभर में 5,000 से अधिक स्थानों पर सुरक्षा तैनाती में अनियमितता की शिकायतें दर्ज होती है। राजनैतिक संरक्षण के तहत, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भारत में हर साल 30% से अधिक पुलिस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें से अधिकांश को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। भ्रष्टाचार की बात करे तो, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुलिस विभाग सबसे भ्रष्ट संस्थानों में से एक है। जबरदस्ती और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में 2022 में पुलिस हिरासत में हुई मौतों के 500 से अधिक मामलों में से 70% मामले राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण प्रभावी ढंग से जांचे नहीं जा सके। 2021 के श्लोकनीति-सर्वेक्षण में 65% भारतीय नागरिकों ने कहा कि वे पुलिस पर भरोसा नहीं करते क्योंकि वे उन्हें राजनैतिक दलों का रहथियार मानते हैं। पुलिस का राजनैतिक गठजोड़ लोकतंत्र को कई तरीकों से कमजोर करता है जैसे न्याय प्रणाली पर असर जब पुलिस निष्पक्ष रूप से काम नहीं करती, तो न्याय प्रणाली भी प्रभावित होती है।
उदाहरण के तौर पर, कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पुलिस पर जांच को मोड़ने का आरोप लगता रहा है। स्वतंत्रता का हनन नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी पर असर पड़ता है। कई बार शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल किया जाता है। लोकतांत्रिक मूल्यों की हानि, जब पुलिस राजनीतिक दबाव में कार्य करती है, तो यह लोकतंत्र के श्समानता और न्यायर के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। पुलिस और राजनीति के इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं जैसे पुलिस में सुधार करना। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2006 में दिए गए पुलिस सुधार के निर्देशों को सख्ती से लागू करना चाहिए। स्वतंत्र निगरानी तंत्र को मजबूत करने के लिए पुलिस के कामकाज की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र तंत्र की स्थापना करनी चाहिए, जिसमे राजनीतिक दखल न हो तथा पुलिस अधिकारियों के तबादले और पदस्थापनाओं में राजनीतिक दखल को पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए एवं जनभागीदारी को सुरक्षित करते हुए जनता को पुलिस की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया में शामिल करना होगा। लोकतंत्र की मजबूती निष्पक्ष संस्थानों पर निर्भर करती है और पुलिस एक ऐसी ही संस्था है। जब तक पुलिस राजनीति के प्रभाव से मुक्त नहीं होगी, तब तक लोकतंत्र कमजोर रहेगा। यह जनता, सरकार और पुलिस तीनों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे इस गठजोड़ को खत्म कर एक निष्पक्ष और प्रभावी कानून व्यवस्था सुनिश्चित करें। जब जनता पुलिस पर विश्वास करती है, तो कानून और व्यवस्था को बनाए रखना आसान हो जाता है।
विश्वास के बिना लोग अपराधों की रिपोर्ट करने में झिझकते हैं और पुलिस न्याय प्रणाली का पहला चरण होती है। जब पुलिस पर विश्वास नहीं होता है तो पीड़ति अपनी शिकायतें दर्ज कराने में असहज महसूस करते है, गलत आरोपों या भ्रष्टाचार के मामलों में वास्तविक न्याय मिलने की संभावना कम हो जाती है। पुलिस पर जनता का विश्वास लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों को बनाए रखने में सहायक है, कानून की निष्पक्षता और पारदर्शिता कायम रहती है। भ्रष्टाचार और अन्याय की संभावना कम हो जाती है। जब पुलिस स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करती है तो यह सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में सहायक होता है। पुलिस और जनता के बीच विश्वास समाज में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देता है और अपराधों को रोकने के लिए जनता पुलिस के साथ मिलकर काम करती है। गुमशुदा व्यक्तियों, आपदाओं और अन्य संकटों के समय पुलिस को जनता का समर्थन मिलता है, सामाजिक विवादों और सामुदायिक समस्याओं का समाधान पुलिस की मदद से आसानी से हो सकता है। जनता और पुलिस के बीच विश्वास की मजबूत कड़ी के बिना न तो कानून व्यवस्था सही तरीके से काम कर सकती है, न ही समाज में शांति और सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो सकती है। एक ऐसी पुलिस व्यवस्था, जो जनता की समस्याओं को समझे, उनके अधिकारों की रक्षा करे और निष्पक्षता से कार्य करे, यही सुरक्षित लोकतंत्र की नींव है।
लेखिका वरिष्ठ अधिवक्ता हैं,रीना एन सिंह अधिवक्ता सुप्रिम कोर्ट