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कितनी विश्वस्त होती हैं, पेड़ों की शाखाएं
कितने घर, कितने परिवार अपनी डालियों पर
बसने देती है।
कितने नन्हे परिंदे जीते है इनपर
कभी जो शत्रु आता है तो
छुपा लेती है, नन्हे परिंदों को।
बचा लेती है, इनको शत्रु पाश के बंधन से।
कितनी मजबूत होती हैं, पेड़ों की शाखाएं
अनगिनत झूलती है झूले इनमें
सावन के, सखियों के, प्रेम के प्रतीकों के
झूलती हैं बांहे, नन्हे चहको से भरी हुई बांहें
कभी झुकती हैं, कभी टूटती हैं
ये शाखाएं,
मगर फिर से कही से निकल आती हैं
ये शाखाएँ
नन्हे परिंदों के लिए,
सावन के झूलों के लिए
नन्हे बाहों के लिए
कितनी आतुर होती हैं ये पेड़ों की शाखाएं।
डॉ. मधुछंदा चक्रवर्ती
सरकारी प्रथम दर्जा कॉलेज
के आर पूरम बेंगलुरु





















