चर्चा में क्यों?
इस वर्ष पेरिस पैरालंपिक 2024, 28 अगस्त से 8 सितंबर तक आयोजित किए गए। इन खेलों में भारत के कुल 84 पैरा-एथलीटों ने विभिन्न खेलों में भाग लिया। जिसमें भारत ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए कुल 29 पदक जीते। भारत ने रिकॉर्ड प्रदर्शन के साथ इस वर्ष पैरालंपिक में इतिहास रच दिया।
पेरिस पैरालंपिक (Paris Paralympics 2024) : मुख्य बिंदु
पेरिस पैरालंपिक 2024 दुनिया भर के विकलांग एथलीटों के लिए सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय मल्टी-स्पोर्ट इवेंट है।
इस आयोजन में 22 खेलों में 4,400 से अधिक एथलीटों ने हिस्सा लिया, जिसमें 549 पदक स्पर्धाएँ शामिल थीं।
पेरिस मे पैरालंपिक 2024, इस वर्ष 17वा ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक आयोजित किया गया। यह पहली बार था जब पेरिस ने ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक खेलों की मेजबानी की।
उद्घाटन समारोह प्लेस डे ला कॉनकॉर्ड, पेरिस मे हुआ। समापन समारोह स्टेड डी फ्रांस में हुआ।
उद्घाटन समारोह में भारत के ध्वजवाहक सुमित अंतिल और भाग्यश्री जाधव थे।
चीन ने लगातार छठी बार पदक तालिका में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, 94 स्वर्ण पदक सहित कुल 221 पदक जीते।
ग्रेट ब्रिटेन ने 49 स्वर्ण सहित कुल 124 पदक जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया।
इस बार मॉरीशस, नेपाल और शरणार्थी पैरालंपिक टीम ने अपने पहले पैरालंपिक पदक जीते।
मेजबान देश फ्रांस ने 19 स्वर्ण और कुल 75 पदक जीतकर आठवां स्थान प्राप्त किया।
इन खेलों के लिए कार्यक्रम की घोषणा जनवरी 2019 में की गई थी।
महिलाओं के लिए रिकॉर्ड 235 पदक इवेंट्स हुए, जो 2020 की तुलना में आठ अधिक थे।
पैरालंपिक खेलों का इतिहास
● पैरालंपिक खेलों की शुरुआत 1948 में इंग्लैंड के स्टोक मैंडविले में हुई।
● सर लुडविग गुट्टमैन, जो रीढ़ की हड्डी की चोटों से पीड़ित द्वितीय विश्व युद्ध के दिग्गजों का इलाज कर रहे थे, ने इस विचार को जन्म दिया।
● 1960 में रोम, इटली में पहले आधिकारिक पैरालंपिक खेलों का आयोजन हुआ।
● 1976 में पहली बार शीतकालीन पैरालंपिक खेलों का आयोजन स्वीडन में हुआ।
● अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (IPC) का गठन 1989 में किया गया, जिसने पैरालंपिक खेलों के संगठन और संचालन को संरचित किया।
● IPC ने खेलों के नियम और दिशानिर्देश तय किए और पैरालंपिक के आयोजन को वैश्विक मंच पर और अधिक प्रभावशाली बनाया।
● 1988 में सियोल, दक्षिण कोरिया में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के साथ पैरालंपिक खेलों का आयोजन किया गया।
● 1992 में अल्बर्टविले, फ्रांस में शीतकालीन पैरालंपिक का आयोजन भी ओलंपिक के समान शहर और स्थानों पर हुआ। इसमें अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) और IPC के बीच एक समझौता हुआ।
● पैरालंपिक खेलों का उद्देश्य विकलांग एथलीटों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक खेलों का एक मंच प्रदान करना है, जहां वे अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC)
● अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) एक स्वतंत्र, अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो आधुनिक ओलंपिक खेलों का संचालन और संगठन करता है।
● इसकी स्थापना 1894 में पियरे डी कूबर्टिन द्वारा की गई थी। इसका मुख्यालय लॉज़ेन, स्विट्ज़रलैंड में है।
● IOC का उद्देश्य खेल के माध्यम से वैश्विक शांति और सहयोग को बढ़ावा देना है।
● यह ओलंपिक खेलों के आयोजन, नियम-निर्धारण, और ओलंपिक आंदोलन का नेतृत्व करता है।
अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (IPC)
● अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (IPC) एक वैश्विक संगठन है।
● इसकी स्थापना 1989 में की गई थी, और इसका मुख्यालय बॉन, जर्मनी में है।
● IPC का उद्देश्य विकलांग एथलीटों को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर देना और विकलांगता के प्रति समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना है।
पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत का प्रदर्शन
पैरालंपिक खेलों में भारत ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, जिसमें कुल 29 पदक जीते गए। इन पदकों में 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक शामिल थे। यह संख्या भारत के पिछले पैरालंपिक प्रदर्शनों से कहीं अधिक है।
पेरिस 2024 पैरालंपिक में भारत ने 84 एथलीटों के साथ 12 खेलों में भाग लिया।
इस बार भारतीय पैरा-एथलीटों ने पहली बार तीन नए खेलों – पैरा साइकिलिंग, पैरा रोइंग, और ब्लाइंड जूडो में हिस्सा लिया और शानदार प्रदर्शन किया।
भारत का यह प्रदर्शन सिर्फ पदकों की संख्या तक सीमित नहीं रहा, बल्कि विभिन्न खेलों में एथलीटों ने नए रिकॉर्ड भी बनाए और वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई।
पेरिस 2024 में भारत ने कुल 29 पदक जीते, जो 2020 के टोक्यो पैरालंपिक में जीते गए 19 पदकों से काफी अधिक है।
इस बार पदकों की कुल संख्या और स्वर्ण पदकों की संख्या दोनों में बढ़ोतरी हुई है।
भारतीय एथलीटों ने न केवल अधिक पदक जीते, बल्कि उन्होंने वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के मापदंडों को भी ऊंचा किया।
पैरालंपिक खेलों में भारत की पदक यात्रा: 1972 में हेडलबर्ग में भारत ने अपने पैरालंपिक इतिहास की शुरुआत की, जिसमें एक स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद, 1984 में स्टोक मैनडेविल में भारत ने दो रजत और दो कांस्य पदक प्राप्त किए, जो उस समय का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। 2004 के एथेंस पैरालंपिक में भारत ने एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीते, जबकि 2016 के रियो डी जेनेरो में भारत ने अपनी सफलता को दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक के साथ बढ़ाया। टोक्यो 2020 में भारत ने एक महत्वपूर्ण छलांग लगाई, जहां उसने कुल 19 पदक जीते।
भारत ने अपने पैरालंपिक इतिहास (1972-2024) में कुल 60 पदक जीतकर एक नई ऊँचाई हासिल की है।
खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन: प्रमुख उपलब्धियां और रिकॉर्ड:
अवनि लेखरा: अवनि लेखरा ने पेरिस पैरालंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह दो पैरालंपिक स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 स्पर्धा में उन्होंने अपने खिताब को बरकरार रखते हुए विश्व रिकॉर्ड स्कोर बनाया। उनके इस प्रदर्शन ने न सिर्फ उन्हें, बल्कि पूरे देश को गर्व का अनुभव कराया।
धरमबीर और परनव सूरमा: धरमबीर और परनव सूरमा ने एथलेटिक्स में क्लब थ्रो F51 स्पर्धा में भारत के लिए स्वर्ण और रजत पदक जीते। धरमबीर ने92 मीटर की दूरी तक क्लब थ्रो फेंककर एशियाई रिकॉर्ड स्थापित किया। इस प्रदर्शन के साथ धरमबीर ने एथलेटिक्स में पहली बार भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया।
सुमित अंतिल: भाला फेंक के दिग्गज सुमित अंतिल ने पुरुषों की F64 भाला फेंक स्पर्धा में59 मीटर की थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता। सुमित ने इस प्रतियोगिता में अपने ही पूर्व रिकॉर्ड को तीन बार तोड़ा और पैरालंपिक का नया रिकॉर्ड बनाया। टोक्यो 2020 के बाद सुमित का यह प्रदर्शन उन्हें लगातार दूसरी बार पैरालंपिक में स्वर्ण पदक विजेता बनाता है, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
प्रवीण कुमार: प्रवीण कुमार ने ऊंची कूद T64 स्पर्धा में एशियाई रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। यह पदक भारत के लिए एथलेटिक्स में छठा स्वर्ण था और भारत के पैरालंपिक इतिहास में अब तक का सर्वोच्च प्रदर्शन है।
मरियप्पन थंगावेलु: हाई जंप T42 वर्ग में कांस्य पदक जीतने के साथ मरियप्पन थंगावेलु लगातार तीन पैरालंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गए। उन्होंने रियो 2016 में स्वर्ण और टोक्यो 2020 में रजत पदक जीता था।
प्रीति पाल: प्रीति पाल ने महिलाओं की 100 मीटर T35 रेस में कांस्य पदक जीता। यह भारत के लिए पैरालंपिक ट्रैक स्पर्धाओं में पहला पदक था। इसके बाद 200 मीटर में भी कांस्य पदक जीतकर उन्होंने अपनी पहचान भारत की सबसे सफल पैरा-एथलीट के रूप में स्थापित की, क्योंकि वह एक ही पैरालंपिक में दो पदक जीतने वाली एकमात्र खिलाड़ी बनीं।
दीप्ति जीवनजी: दीप्ति जीवनजी ने महिलाओं की 400 मीटर T20 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता और वह पैरालंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
शीतल देवी: तीरंदाज शीतल देवी ने राकेश कुमार के साथ मिलकर कंपाउंड मिक्स्ड टीम क्वालिफिकेशन इवेंट में विश्व रिकॉर्ड बनाया। केवल 17 साल की उम्र में शीतल ने कांस्य पदक जीतकर भारत की सबसे कम उम्र की पैरालंपिक पदक विजेता बनकर इतिहास रचा।
हरविंदर सिंह: हरविंदर सिंह ने तीरंदाजी में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया। उन्होंने पुरुष व्यक्तिगत रिकर्व ओपन स्पर्धा में यह शानदार उपलब्धि हासिल की।
भारत में खेल विकास और एथलीटों से संबंधित पहल:
खेलो इंडिया: खेलो इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत 2018 में हुई, जिसका उद्देश्य देश में जमीनी स्तर पर खेलों को प्रोत्साहित करना और खेल संस्कृति को बढ़ावा देना है। इसके तहत उभरते हुए युवा खिलाड़ियों को चयनित किया जाता है और उनकी खेल सुविधाओं और प्रशिक्षण का पूरा खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
राष्ट्रीय खेल विकास कोष (NSDF): यह कोष 1998 में खेल और एथलीटों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए बनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना, उच्च स्तरीय खेलों के लिए अवसंरचना विकसित करना, और कोचिंग और प्रशिक्षण सुविधाओं को बढ़ाना है।
भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI): 1984 में स्थापित, SAI देश में खेलों के विकास, खिलाड़ी प्रशिक्षण, और खेल कार्यक्रमों के संचालन के लिए प्रमुख संस्था है। SAI के पास कई खेल प्रशिक्षण केंद्र और संस्थान हैं, जहां एथलीटों को उन्नत कोचिंग दी जाती है।
दिव्यांग जनों के लिये क्रीड़ा और खेल योजना: सरकार ने दिव्यांग एथलीटों के लिए विशेष योजनाएं चलाई हैं ताकि उन्हें खेलों में अवसर और समर्थन मिल सके। इसके तहत उनके लिए विशेष प्रशिक्षण, सुविधाएं, और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जिनमें खेलो इंडिया-पैरा गेम्स भी शामिल है।
टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS): TOPS का उद्देश्य भारतीय एथलीटों को ओलंपिक में पदक जीतने के लिए आवश्यक समर्थन और सुविधाएं प्रदान करना है।
खेलो इंडिया-पैरा गेम्स: यह कार्यक्रम दिव्यांग एथलीटों के लिए खेलों के आयोजन का प्रमुख मंच है। इसके माध्यम से दिव्यांग खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
राष्ट्रीय खेल पुरस्कार: भारत सरकार एथलीटों और कोचों को खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए विभिन्न पुरस्कार देती है, जैसे राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, ध्यानचंद पुरस्कार, और द्रोणाचार्य पुरस्कार। ये पुरस्कार खेलों में उत्कृष्टता को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए हैं।
भारत में पैरालंपिक खेलों की चुनौतियाँ:
संसाधनों और सुविधाओं की कमी: दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए खेल सुविधाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। कई स्टेडियम और प्रशिक्षण केंद्रों में दिव्यांग एथलीटों के लिए उपयुक्त अवसंरचना नहीं है, जिससे उन्हें अपनी खेल प्रतिभा को निखारने में कठिनाई होती है।
जनजागरूकता और मान्यता की कमी: भारत में पैरालंपिक खेलों के प्रति जागरूकता और समर्थन की कमी है। मीडिया कवरेज और लोगों की दिलचस्पी ओलंपिक खेलों की तुलना में पैरालंपिक खेलों के प्रति कम है, जिससे खिलाड़ियों को मान्यता और प्रेरणा कम मिलती है।
नियमित प्रतियोगिताओं का अभाव: पैरालंपिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के लिए नियमित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का अभाव होता है। इससे उन्हें अपने खेल कौशल को सुधारने और प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में खेलने का कम अवसर मिलता है।
कानूनी और नीति संबंधी चुनौतियाँ: पैरालंपिक खिलाड़ियों के अधिकारों और उनके लिए विशेष रूप से बनाई गई नीतियों का क्रियान्वयन अक्सर ठीक से नहीं होता।
स्पॉन्सरशिप की कमी: कॉर्पोरेट क्षेत्र से पैरालंपिक एथलीटों को समर्थन और स्पॉन्सरशिप मिलने में कठिनाई होती है, जिससे खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता प्राप्त करने में कठिनाई होती है।