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सुखदा यही नाम था उसका। मगर जीवन में उसके नाम के विपरीत परिस्थितियाँ उसे किस मोड़ पर ले आयी ये उसे समझ में न आया। मन में दुख, जलन, पीड़ा और तानों के शर से आहत घाव को लेकर वह सोच में डूबी हुई थी। गोद में नन्हीं सी बच्ची पल्लवी। अभी-अभी दूध पीकर सोई है।
‘हाय री फूटी किस्मत! विधाता ने क्या दिन दिखाया?’ कहते हुए सुखदा की माँ कमरे में प्रवेश करती है। ‘पूरे गाँव में तेरे चर्चे हो रहे हैं। ये क्या हो गया? मैं नहीं जानती थी कि उस मनहूस से शादी करके तेरी ये हालत होगी। हाय-हाय! अब मैं क्या करु?’
‘माँ यहाँ आकर बेकार की बात न करो। मेरा माथा पहले से ही बिगड़ा हुआ है। तुम आकर और गुस्सा न दिलाओ। वो अपने बारे में नहीं बताए, हमसे झूठ बोलते रहे, इसमें मेरी क्या गलती है? तुम ही तो शादी के लिए जोर दे रही थी। भला मेरी उम्र थी कोई जो शादी करती? अठारह की हुई नहीं तुम तो पागल हो चली थी।’
‘मुझसे क्या कहती है, तेरे भाईयों और भाभीयों को भी तो बोल। उनके कारण ही तो तेरी शादी की जल्दी थी।’
‘तो अब फिर क्यों वे लोग मेरे दुश्मन बन बैठे हैं? मैंने तो अपनी पसंद से नहीं पूरे परिवार वालों की पसंद से शादी की है। तुम लोगों ने तब पता नहीं लगाया था कि मेरा खसम शादी-शुदा है? उसकी दो बच्चे हैं बढ़े-बढ़े? वह जब भी मेरे साथ रहने आता तो मैं उसके साथ ससुराल जाने की बात करती थी तो तुम लोगों ने पहले रोक दिया। उसके साथ उसी के घर रहने गयी तो वहाँ वह मेरे साथ मार-पीट करता था। साल-दो-साल उसने मेरे साथ……’ इतना कह उसकी आँखों से आँसु बहने लगे, गला दुख से अवरुद्ध हो गया।
जब से धोलाई बगान के ग्रामीणों के सुखदा के विवाह का रहस्य पता चला तो लोग थू-थू करने लगे थे। मामला यह था कि सिलचर के एक  सरकारी कॉलेज में पियोन के पद पर काम कर रहे मनोहर की सुखदा के साथ दो साल पहले शादी हुई थी। सुखदा के दोनों भाई मजदूरी किया करते थे। वे सिलचर में तब उसी सरकारी कॉलेज में कुछ निर्माण के काम में लगे थे जब मनोहर गुसाई की इनसे मुलाकात हुई। बातों-बातों में मनोहर को सुखदा के बारे में पता चला। मनोहर शुरु से ही व्यभिचारी स्वभाव का था इसलिए उसने सुखदा के बारे में जान लेने के बाद ही उससे विवाह की सोच ली। उसने सुखदा के भाईयों को किसी प्रकार अपने जाल में फँसा लिया और सुखदा को उसकी माँ समेत सिलचर ही ले आने को कहा। उसने उन्हें यह बताया कि वह अभी तक कुंवारा है क्योंकि वह छोटी नौकरी करता है और उसे कोई लड़की नहीं मिली थी। उसके घर में एक बूढ़ी माँ है जिसकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है। वह सुखदा से शादी करना चाहता है। गरीब मजदूर घर की लड़की को एक अच्छा नौकरी पेशा आदमी मिल जाए ब्याहने को तो कौन परिवार वाले रुकते हैं। बस बात यही तय हो गयी और सुखदा को वे लोग सिलचर ले आते हैं। मनोहर से वे पहले ही बता देते हैं कि उनके पास इतने रुपए नहीं है कि वे धूम-धाम से शादी कर सके। मनोहर को भी यही चाहिए थी। क्योंकि वह भी अपनी दूसरी शादी की बात जग जाहिर नहीं करना चाहता था। इसलिए उन्होंने सिलचर के मेहेरुपर के पास वाले दुर्गा मंदिर में चोरी-छिपे बंगाली रीति से शादी कर ली।
शादी के बाद मनोहर ने उसे सिलचर में ही एक घर किराए पर दिलाकर उसकी माँ के साथ रहने के लिए दे देता है। जहाँ वह हफ्ते में कोई एक-आध दिन रहता। सुखदा शादी के बाद से ही पति के साथ ससुराल जाना चाहती थी लेकिन घर वालों को न जाने कौन सी पट्टी मनोहर ने पढ़ा रखी थी कि उसके भाई और माँ दोनों ही मना करते रहते। बात कुछ दिनों में आयी-गयी भी हो गयी। वही उस किराए के घर में रहना भी आसान काम नहीं था। घर का मालिक दूसरे धर्म का था। मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों के साथ उन्हें एक ही शौचालय प्रयोग करना पड़ता था। बरसात के दिनों में घर की छत भी टपकती थी। वही सुखदा का पड़ोसी भी कोई अच्छे स्वभाव का नहीं था, वह अक्सर उनके कमरे में ताका-झांक करता था।
परन्तु कुछ महीनों बाद ही मनोहर के कुछ-कुछ रहस्य सुखदा और उसके परिवार वालों के सामने आने लगे। मनोहर शराब पीता है, घर पर हमेशा नहीं रहता, जब भी उसे फोन आता तो वह घंटों उसी में लगा रहता। सुखदा के साथ मनोहर का स्वभाव भी बहुत बुरा था। वह अक्सर उसे मारता-पीटता, जब जरूरत होती तो उसका शोषण करता। सुखदा इसकी शिकायत माँ से करती तो वे उसे समझाते कि पति का मन जानना जरुरी है। उसे जाने बगैर उसका प्यार पाना मुश्किल है। सुखदा जब कहती कि मनोहर उसे ताने मारता है कि उसे और उसकी माँ को सिलचर में इतने आलीशान घर में रख रखा है तो उसकी जो मर्ज़ी वह करेगा तो माँ उसे कहती कि “क्यों न वह मनोहर के साथ उसके ससुराल चली जाए। सास का इकलौता बेटा है वह ही मनोहर की बुद्धि ठीक कर सकती है।” इसके बात सुखदा और मनोहर में अक्सर बहुत लड़ाई होने लगती।
काफी दिनों की जद्दोजहद के बाद आखिर मनोहर उसे अपने घर धारियारघाट ले जाने को तैयार होता है। पर इसमें भी रहस्य था। वास्तव में मनोहर के पहली पत्नी मनोहर के शराब के नशे से इतनी परेशान थी कि वह अपने दोनों बच्चों के लेकर अपने मायके चली जाती है। उसका भी घर धोलाई बगाने के पास से सटे गाँव में था। मनोहर ने इसी समय का फायदा उठाकर सुखदा को अपने साथ ले आया। परन्तु नियती को जैसे सुखदा का सुख स्वीकार्य नहीं था। मनोहर के अत्याचार रात-दिन बढ़ने लग गये थे। इसी बीच सुखदा माँ बनने वाली होती है। आस-पास के लोगों को भी तब मनोहर के इस कुकृत्य का पता चल चुका था। मनोहर की पत्नी को जैसे ही इस बात का पता चलता तो वह हाय-हाय करते हुए वहाँ पहुँचती है और सुखदा को बाल पकड़कर घसीटते हुए निकालती है। उसे दुनियाँ सभी अश्रव्य भाषा में गालियाँ देती है। पति की बेवाफाई पर उसे पुलिस के हवाले करने की धमकी देती है। आस-पास के पड़ोसी भी आते हैं तो वह बेचारी सुखदा पर हाथ तक उठाने लगते हैं जिसपर वह बुरी तरह घायल हो जाती है। ग़निमत है कि गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान नहीं हुआ। सभी उस दिन सुखदा के माँ और भाई को बुलवाते हैं। रात बारह बजे तक गाँव में पंचायत चलती रही। आखिरकार लांछित, प्रताड़ित, अपमानित सुखदा अपनी माँ के साथ अपने गाँव लौट आती है। उसके दोनों मजदूर भाई भी साथ होते हैं लेकिन घर में भाभियों ने आते ही बवाल मचा दिया। सुखदा के साथ जो कुछ भी हुआ था उसके बाद से भाभिओं को यही डर था कि कही इसका असर उनके जीवन या बच्चों पर न पड़े। दोनों भाभियों का व्यवहार भी सुखदा के प्रति बदल चुका था। वे उससे बात-बात पर लड़ती-झगड़ती और ताने देती। गाँव वालों के ताने अलग से माँ-बेटी को बिंध रहे थे। उनके लिये अब गाँव में जीना ही दुश्वार हो चुका था। वही जब सुखदा बच्ची को जन्म देती है तो गाँव में आग की तरह बात फैल जाती है। सभी सुखदा के चरित्र पर लांछन लगाते हैं। थक हार कर माँ-बेटी दुबारा सिलचर आती है। दुबारा वे मनोहर से संपर्क करने की कोशिश करते हैं तो मनोहर का कोई अता-पता नहीं मिलता। अपने किराए वाले मकान जाते हैं तो मकान मालिक भी उन्हें महिनों से किराया न देने पर डांट कर भगाता है। सुखदा की माँ किसी प्रकार उन्हें मना लेती है तो वे उन्हें वहाँ कुछ दिन ठहरने के लिए स्वीकृति दे देते हैं। परन्तु अब सुखदा की माँ और सुखदा को अपने गुजारे के लिए काम की तलाश करने की पड़ी थी। जवान लड़की साथ में बच्चा देख कोई काम तो न देता मगर कई सवालों की झड़ी लगाकर उन्हें अपमानित कर देता। मगर दोनों को काम की बहुत जरूरत थी।
अपने जीवन की दुख भरी कथा सुनाकर सुखदा और उसकी माँ चक्रवर्ती बाबू के पास रोने लगती है।साथ ही उन्हें नए किराएघर की जरूरत भी थी। चक्रवर्ती बाबू कभी किसी जमाने में मिलिट्री में काम कर चुके थे। दिल के बहुत नर्म और स्वभाव से ही परोपकारी थे। उनके तीन बच्चे थे जिनमें बड़ी लड़की की शादी हो चुकी थी। छोटी लड़की साथ रहती और लड़का दूसरे शहर में नौकरी करता था। चक्रवर्ती दम्पति बूढ़े हो चुके थे। छोटी लड़की ही घर और अपनी छोटी से नौकरी सम्भाल रही थी। लिहाजा उन्हें काम के लिए कोई तो चाहिए थी। सुखदा को उन्होंने अपने घर में एक छोटा सा कमरा किराए पर दे दिया। लेकिन जब किराया देने की बात आयी तो सुखदा की माँ ने कहा कि उसके दोनों भाई उसे महिने का कुछ खर्चा भिजवा दिया करेंगे। साथ ही सुखदा ने कहा कि वह उनके घर में कुछ काम वगैरह कर दिया करेगी क्योंकि उसे अब कुछ तो काम करके जीने की जरूरत पड़ गयी थी। वही नन्हीं पल्लवी जो कि पाँच महिने की थी उसे देख घर वालों के मन में ममता उमड़ पड़ी। सुखदा की माँ ने उसे काम मिलता देख उसी दिन वह अपने गाँव रवाना हो जाती है। अब सुखदा अपनी बच्ची को लेकर चक्रवर्ती बाबू के घर रहने लगी। उसे मिसेस चक्रवर्ती घरेलु काम-काज समझाने करवाने लगी थी। वही चक्रवर्ती बाबू तथा उनकी छोटी लड़की ने नन्हीं पल्लवी के लिए नरम काथा का बिछौना लगा दिया था। वे उसे बिस्तर के ऊपर या फिर जमीन में ही चटाई के ऊपर नरम बिछौने पर सुलाते थे। उन्हें डर था कि कही बच्ची बिस्तर से न गिर जाए। वही बच्ची के लिए मिसेस चक्रवर्ती ने अपनी पुरानी साड़ियों से कुछ प्यारी-प्यारी फ्रॉक बना दी थी। नन्हीं पल्लवी के पास अक्सर चक्रवर्ती बाबू बैठे रहते। उसे प्यार से पुचकारते, उसे गोद भी लेते, लोरी भी सुनाते। उन्होंने बच्ची के लिए ग्वाले से दूध लेना शुरु कर दिया था। वैसे उनके घर में कोई दूध नहीं पीता था। मिसेस चक्रवर्ती मधुमेह से ग्रस्त थी तो चक्रवर्ती बाबू भी पेट की समस्या के कारण दूध कम ही रखते। केवल उनका बेटा ही घर आता तो ही रखा करते थे।
अक्सर काम करते समय सुखदा बच्ची को दुध पिला सुलाकर जाया करती थी। परन्तु अब नन्हीं पल्लवी बड़ी हो रही थी। वह पलटना भी जानती थी। माँ के काम में जाते ही वह अक्सर उठ जाती और पलटती। कभी कमरे में कोई होता तो वह मुस्कुराती या फिर कमरे में किसी को न देख रोना शुरु कर देती। सुखदा मालकिन के कहने पर काम पूरा करने में लगी रहती थी कि बच्ची के रोना सुन वह दौड़ पड़ती। मालकिन समझ चुकी थी कि सुखदा के लिए घर के काम-काज करना उसके बस का नहीं है। लिहाजा बच्ची के रोने पर वह उसे जाने देती। सुखदा कभी बच्ची को दुध पिला शान्त करा देती। लेकिन प्रत्येक दिन ही अब ये होने लगा था। सुखदा घर के काम में मालकिन की मदद करे या बच्ची को सम्भाले? वही चक्रवर्ती बाबू तथा उनकी छोटी लड़की भी अपने-अपने काम से समय निकाल बच्ची को सम्भाल लेते थे लेकिन नित्य से क्रम चला तो घर वालों के लिए मुश्किलें बढ़ने लगी। सो कुछ दिन बाद ही वे सुखदा की माँ को बुला भेजते हैं तथा सुखदा की बच्ची को सम्भालने के लिए कहते हैं। अब सुखदा और उसकी माँ दोनों ही चक्रवर्ती बाबू के घर डेरा डाल लेती है। दोनों स्त्रियों के भोजन का अतिरिक्त भार उनपर आ गया था। परन्तु उन्होंने मानवता की खातिर दोनों को ही घर में रहने दे दिया था। पीछे के बने अतिरिक्त कमरों में उन्होंने अपनी छोटी रसोई तथा सोने का कमरा बना लिया था। अब माँ या बेटी दोनों ही मिसेस चक्रवर्ती के साथ घर के काम में मदद कर दिया करती थी। कपड़े धोना, बर्तन साफ करना, सब्जियाँ साफ कर उन्हें काटना, चावल से दाने-कंकड़ बीनना, बाहर आँगन में झाड़ु लगाना, पोछा लगाना सबकुछ। इतने दिनों तक मिसेस चक्रवर्ती और उनकी लड़की सारे काम अपने-अपने हिसाब से किया करती थी। मिसेस चक्रवर्ती मधुमेह के साथ-साथ मोटे शरीर और गठिया रोग से पीड़ित थी। साथ ही उन्हें उच्च रक्तचाप भी था। सो उनके बस में सारा काम करना किसी पहाड़ चढ़ने से कम न था। सो दोनों की मदद मिल जाने पर उन्हें भी बड़ा अच्छा लगने लगा था।
एक रात की बात है। पागुन-चैत का महीना चल रहा था। काल बैसाखी की बौछार जोरों से पड़ने लगी थी। पूरा शहर पानी से सराबोर हो रहा था। रात को अचानक तेज बारिश की आवाज़ से दोनों दम्पति उठ बैठे। उनका घर काफी पुराना हो चुका था। घर की कई बार मरम्मत करवाने पर भी कोई-न-कोई कसर रह ही जाती थी। चारों तरफ पानी बढ़ने से उनके घर के पीछे के कमरों में भी कभी-कभी पानी आ जाता था। पोखर भी बारिश से लबालब भर चुका था। चक्रवर्ती बाबू बोले –‘सुनो तुम जरा सुखदा की माँ को आवाज़ दो तो। उनसे कहो कि वे अरुण के कमरे में चली आए।’
मिसेस चक्रवर्ती-‘क्यों जी क्या हुआ? उन्हें इतनी रात गए क्यों जगा रहे हो? इतनी गर्मी है आज बारिश में दोनों खर्राटे मारकर सो रही होगी। बुलाएँगे तो बच्ची भी जाग जाएगी। पता है न परसों रात तेज बिजली की आवाज़ सुन जाग गयी तो कितना रोयी थी। सारी रात फिर तुमने क्या कम जतन किए बच्ची को शांत करने में?’
चक्रवर्ती बाबू –‘अरे तुम देखती नहीं कितनी तेज बारिश है। पीछे स्टोर रूम में पक्का पानी आने लगा होगा। वे तीनों कैसे इस कमरे में रहेंगी। बड़ों की बात अलग है लेकिन बच्ची साथ में है। कही बिचारी को ठंड न लग जाए?’
मिसेस चक्रवर्ती-‘तुम भी बड़े परोपकारी बनते फिरते हो। ये तो चार दिन पहले भी हुआ था। तब उन्हें तुमने कितनी बार समझा दिया था कि कमरे से जल निकासी के वहाँ से सीमेंट का घोल न निकाले। पता नहीं बुढ़िया और उसकी ये चंट लड़की कुछ समझती ही नहीं। कमरे में खाना पकाती है बर्तन धोती है। जबकि सब व्यवस्था कर रखी है बाहर लेकिन उनकी बेवकूफी से हमेशा उनके कमरे में पानी आ जाता है और हमें भुगतना पड़ता है। मैं तो नहीं जाती बुलाने। छुटकी से कहो वह बुला लेगी।’ ये कहकर वह करवट लेकर सोने लगती है। चक्रवर्ती बाबू अपनी छोटी लड़की से कहकर सुखदा और उसकी माँ तथा नन्हीं बच्ची को अपने बेटे अरुण के कमरे में ले आते हैं। बेटे का कमरा खाली पड़ा था सो तीनों को बरसात का पानी उतरने तक उसी कमरे में रहने के लिए कह देते हैं। वे तीनों उस रात से वही रहती है। पीछे बने स्टोर रूम का कमरा अब केवल रसोई के लिए काम आता था।
इस प्रकार देखते-देखते कई महीने गुज़रने लगे। इस बीच अक्सर सुखदा और मिसेस चक्रवर्ती जी के बीच काम-काज को लेकर बहस हो जाती थी। बात दरअसल ये थी कि मिसेस चक्रवर्ती को हर काम सफाई और शुद्धता से करने की आदत थी। रसोई में तो सबसे अधिक ही उनकी निगरानी रहती। ये गुण छुटकी में भी थी। कभी-कभी बर्तनों में झुठन या साबुन रहने पर सुखदा को बताया जाता तो वह न सोच-समझ कर उन्हीं से लड़ पड़ती थी। वही अब नन्हीं पल्लवी भी बड़ी होने लगी थी। कुर्सी-मेज सहारे खड़ी होने की कोशिश करती। मिसेस चक्रवर्ती के ड्रेसिंग टेबल पर रखे पाउडर की डिब्बियाँ हो या बिंदी की पाकिट उसके प्रिय खिलौने होते। वह अक्सर इन्हें पकड़कर खेलती और खेल-खेल में बिंदी या पाउडर फ़र्श पर गिरा देती थी। छुटकी या चक्रवर्ती बाबू होते तो वे प्यार से बच्ची को पुचकारकर उसे इन चीज़ों से दूर रखते मगर मिसेस चक्रवर्ती से उसे डांट पड़ जाती। छुटकी ने इसका उपाय ढूंढ लिया था। चैत्र माह था सो सिलचर शहर में चैत्र सेल लगी हुई थी। छुटकी अपने पैसों से उसके लिए दो खिलौने भी ले आयी थी। साथ दो प्यारी-प्यारी फ्रॉक भी। वही मिसेस चक्रवर्ती जी बच्ची को रसोई में आने पर उसे छोटे चौकी में बिठाकर उससे बांग्ला के छड़े1 सुनाया करती थी। वैसे बच्ची जाने-अनजाने में मिसेस चक्रवर्ती से थोड़ा डरती थी। उनका गुस्सा जो वह देख चुकी थी। लेकिन मिसेस चक्रवर्ती बच्ची के साथ नर्मी से ही पेश आती। बच्ची को अक्सर अपने हाथों से दुध पिलाना हो या बिस्किट खिलाना हो या उसे लेकर कभी-कभार टलहा भी करती थी। लेकिन कभी-कभार बच्ची की चंचलता या फिर उसको कोई महंगी या जरूरी चीज पकड़ते देख उसे मना भी करती। कभी-कभार डांट भी देती थी। परन्तु बच्ची को क्या पता था कि ये उसके अनुशासन की पहली सीख है। लिहाजा बच्ची में भय का संचार होना स्वाभाविक ही था। बच्ची को चक्रवर्ती बाबू का साथ ही अच्छा लगता था। वह उन्हें ताता-ताता कह कर बुलाया करती थी। इसी तरह अब कई महीने बीतने लगे थे। नन्हीं पल्लवी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। उसने अब तोतली बोली में बोलना शुरु कर दिया था।
दूसरे शहर में रह रही चक्रवर्ती बाबू की बड़ी बेटी कुछ दिनों के लिए मायके आयी हुई थी। कई साल हुए शादी के मगर अभी तक दुखियारी की गोद न भरी थी। नन्हीं पल्लवी को अपने मायके में देख उसके मन में ममता उमड़ पड़ी। वह भी अब सारा दिन नन्हीं पल्लवी को गोद में लिए इधर-उधर घूमती फिरती। बच्ची को भी बड़की के साथ मज़ा आने लगा था। सुबह नींद से जगाने की बात हो या शाम को ड्रॉइंग रूम में बैठ कर सबके साथ चाय-मूड़ी खाने बैठना हो बच्ची अब उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी थी। नन्हीं पल्लवी को बिस्किट बहुत पसन्द थी। लिहाजा जब भी उसे एक बिस्किट देते तो वह अपना दूसरा नन्हा हाथ बढ़ा देती एक और मांगने के लिए। बच्ची के मुँह से निकली तोतली बोली में ‘आलेत्ता’ सुनकर वे बहुत हंसते और एक और बिस्किट उसे थमा देते। उसकी तोतली बोली सुनने के लिए ही वे जानबूझकर उसे एक-एक कर बिस्किट देते थे। सुखदा भी खुश थी कि उसकी बच्ची को घर वालों से बड़ा प्यार मिल रहा है। पर कहते हैं न कि दुष्ट को चाहे जितना भी प्यार दो खयाल करो वह अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता। सुखदा में भी न जाने ये अवगुण कैसे आ गए थे। शायद उसके जीवन में घटी घटनाओं का असर था या फिर वह चक्रवर्ती बाबू के घर में रहकर उनके सद्-व्यवहार का अनुचित लाभ लेने लगी थी।
एक घटना घटी जिसने लोगों का भला करने सीख चक्रवर्ती बाबू को ऐसी मिली कि उसके बाद से उन्होंने तौबा कर ली। बात कुछ यूं हुई कि काल बैसाखी की आफत जाते-न-जाते एक नहीं आफत अब शहर वालों को परेशान करने लगी थी। सिलचर नाम का शहर है लेकिन हरियाली के मामले में वह किसी गाँव से कम नहीं है। हाँ शहर होने के बावजूद भी लोगों के घरों के चारों तरफ पेड़ों की कतारे या फिर पोखर। कई-कई जगह जहाँ अभी तक घर नहीं बने हैं वहाँ-वहाँ तो जंगली घास या पानी में उगने वालें पौधों की भरमार थी। लिहाजा अक्सर लोगों के घरों में सांप घुस जाया करने लगे थे। सांप के बिलों में पानी भर गया था। तो बरसात थमते ही वे भी धूप में निकल आया करते थे। उस दिन भी उनके घर में यही हुआ। चक्रवर्ती बाबू घर के पीछे बने बाथरूम की सफाई कर रहे थे। साथ ही उससे सटा हुआ बरामदा भी। वही मिसेस चक्रवर्ती भी कुछ कपड़े धो रही थी। शायद ठाकुर जी के थे। तभी कही से एक सांप वहाँ निकल आया। मिसेस चक्रवर्ती घबरा कर चिल्ला कर वहाँ से निकल आयी। वही नन्हीं पल्लवी न जाने कब आकर उनके पीछे खड़ी हो गयी थी। वह ताता और दिद्दा के साथ रहना चाहती थी। आज उसकी माँ सुखदा रसोई में अच्छे से सफाई कर रही थी। बांग्ला नव वर्ष था तो सभी घर की सफाई में लगे थे। बड़की ने काफी देर तक पल्लवी को सम्भाल रखा था। अब उसे भी नहाने जाना था सो वह उसे रसोई में सुखदा के पास ही छोड़कर दूसरे बाथरूम में घुस गयी।
दोंनों दम्पति सांप के निकल आने पर उसे किसी तरह घर के अन्दर न  जाने देने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। मिसेस चक्रवर्ती भय के मारे चिल्ला पड़ती थी। वह जब चक्रवर्ती बाबू को सांप को जल्दी से खदेड़ने का कहकर पीछे हटती है तो पीछे आकर रुकी पल्लवी उनसे टकरा जाती है। वह वहाँ गिर जाती है और लोहे के बने ग्रिल से टकरा जाती है। उसके सर पर चोट लगती है तो वह चिल्ला कर रो पड़ती है। बच्ची की चीख सुनकर सुखदा दौड़कर रसोई से पीछे चली आती है। वही बड़की भी नहाकर बाहर निकलकर वही आ जाती है। चक्रवर्ती बाबू अपनी मिसेस पर भड़क रहे थे कि कैसे उन्हें पल्लवी दिखाई नहीं दी। बेचारी कितनी जोर से गिरी होगी। वही मिसेस चक्रवर्ती कहती है कि बच्ची को सुखदा ने अकेले क्यों छोड़ा जबकि वह उसे अपने पास बिठाए रख सकती थी। पहले भी वह बता चुकी थी कि पल्लवी को कभी भी अकेला न छोड़ा करे। मगर बहस होने लगी थी। उसके चोट देख चक्रवर्ती बाबू ने उसे आनन-फानन में गोद में लेकर सहला रहे थे। काफी देर बाद बच्ची का रोना शांत हुआ। चक्रवर्ती बाबू से कमरे में लाकर उसे होमियोपेथी के बक्से से चोट और दर्द की दवा नाप कर देते हैं। बच्ची शान्त हो जाती है तथा वह चक्रवर्ती बाबू के गोद में ही चिपक कर रहती है। थोड़ी देर बाद बड़की अपने हाथों में कुछ मूड़ी ले आती है तथा पल्लवी को खिलाने के लिए ले जाती है। वही चक्रवर्ती बाबू फिर अपने काम में लग जाते हैं। लेकिन घर में कलह तो अब शुरु होता है। चक्रवर्ती बाबू के पास जाकर सुखदा मिसेस चक्रवर्ती के रूखे व्यवहार और आज उनकी वजह से लगी चोट को लेकर लड़ने लग जाती है। वह काम छोड़कर जाना चाहती थी। चक्रवर्ती बाबू ने भी यही ठीक समझा कि अब सुखदा को उसके घर भेज देना चाहिए। परन्तु उन्हें भी तब गुस्सा आने लगा जब सुखदा ने अपनी पगार से अधिक रुपयों की माँग कर दी तथा अपनी बेटी को चोट लग जाने के कारण मिसेस चक्रवर्ती पर आरोपों की बौछार लगाने लगी। हालांकि मिसेस चक्रवर्ती का इसमें कोई दोष नहीं था। वे डर गयी थी। नन्हीं पल्लवी कब वहाँ आकर उनके पीछे खड़ी हुई थी इसका पता उन्हें नहीं चला था। निर्दोष होते हुए भी उन्हें चक्रवर्ती बाबू बहुत कुछ सुना चुके थे। सुखदा ने इसी अवसर का लाभ उठाने की सोची। मगर उन्हें ये बिलकुल स्वीकार नहीं था कि कोई राह चलता व्यक्ति या घर में काम करने वाली उनकी सहधर्मिणी को कुछ कह सुनाए। अपनी पत्नी का अपमान वे सहन न कर सके। वही उन्हें सुखदा के बारे में एक सच्चाई भी पता चली थी जिससे उनको क्रोध आता है। सुखदा चक्रवर्ती बाबू को काका कहकर ही संबोधन करती थी लेकिन इस सम्बन्ध का वह लाभ भी लेती थी। वह उन्हें अक्सर अपना दुखड़ा सुना-सुना कई बार पैसे ले चुकी थी। कभी बच्ची के बहाने तो कभी घर में माँ की सहायता के बहाने। जबकि वह ये पैसे लेकर न तो बच्ची के लिए कुछ करती न ही अपनी माँ को भेजती वरन अपने पति मनोहर को भेजती थी। इसका पता चक्रवर्ती बाबू को तब चला जब उन्हें एक दिन किसी अपरिचित नम्बर से उन्हें सुखदा की माँ का कॉल आया। सुखदा की माँ ने अपने गाँव में किसी दुकान वाले से फोन लेकर उनसे बात करी तो सारी स्थिति स्पष्ट हो गयी। उन्हें पता चला कि सुखदा अपनी हर महिने का वेतन तथा यदाकदा चक्रवर्ती बाबू से पैसे लेकर अपने पति मनोहर को चोरी छुपे भेज रही थी। मनोहर जो कि उस समय कही गायब हो चुका था उसने दुबारा अपनी पहली पत्नी से सुलह कर ली। मगर उसकी नौकरी जा चुकी थी। उसकी पत्नी अब दूसरों के घर खाना बनाने का काम कर घर चला रही थी। लेकिन मनोहर को कही भी काम नहीं मिल रहा था। वही उसकी शराब की लत भी नहीं छूटी थी। उसने सुखदा के गाँव में चोरी-छुपे सारी खोज-खबर कर ली थी। फिर एक दिन शहर आकर उसने सुखदा से मिलन की भी कोशिश की। जिस दिन वह मिला था उस दिन चक्रवर्ती बाबू सपरिवार कही गए हुए थे। उसी का फायदा उठाकर उसने सुखदा को फिर से अपने जाल में फांस लिया था। इन बातों की जानकारी के बाद से ही सुखदा के प्रति चक्रवर्ती बाबू के मन में घृणा उत्पन्न हो गयी थी। जिस लाचार, बेसाहारा, लांछित लड़की को सामाजिक दबावों के चलते भी अपने घर में पनाह दी। जिसकी बच्ची को उन्होंने नाना का प्यार दिया। जिसे अपनी बेटी की तरह रखा वह इस प्रकार उनके साथ विश्वासघात कर रही थी।
उनके झगड़े को सुन बड़की वहाँ आती है तथा सुखदा को समझाती है लेकिन सुखदा उसे भी आनन-फानन में कह देती है कि उन्होंने बच्चा नहीं जना है इसलिए उन्हें नहीं समझ में आएगा कि बच्चे को चोट लगती है तो माँ पर क्या बितती है। सुखदा को अपनी छोटी बहन की तरह समझने पर भी सुखदा के मुख से निकली बात उसे चोट कर गयी। बड़की के आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह वहाँ से रोकर चली जाती है। वही चक्रवर्ती बाबू जब सुखदा के चोरी-छुपे मनोहर को पैसे देने की बात उठाते हैं तो वह कहती है कि वह उसका पति है और अपने पति की मदद वह करना चाहती है। इस बात पर चक्रवर्ती बाबू उससे कह देते हैं कि वह उसे केवल उसके काम की पगार दे सकते हैं इससे अधिक एक रुपया भी ज्यादा नहीं देंगे तो वह उन पर कृतघ्नता का आरोप लगाने लगती है। जवाब में चक्रवर्ती बाबू भी उससे कहते हैं वह खुद एक कृतघ्न है क्योंकि जब उसे पूरे शहर में कही भी न काम मिल रहा था न रहने की जगह तब उन्होंने उसे अपने घर काम और रहने की जगह दी। उसकी बच्ची की देखभाल की। मगर उसने उनकी अनुपस्थिति में मनोहर जैसे शराबी और चरित्रहीन व्यक्ति को घर में घुसने देकर पहले ही विश्वासघात कर चुकी है। वह उसे उसी दिन अपनी बच्ची के साथ घर से चले जाने का आदेश दे देते हैं।
इस पर सुखदा उन्हें भी न जाने क्या-क्या कहकर लोगों के सामने तमाशा करने की कोशिश करती है। मगर घर में मौजूद बड़ी बेटी के रहते वह कोई तमाशा नहीं कर पाती है तथा उसे वहाँ से चुपचाप चले जाना पड़ता है। हालांकि नन्हीं पल्लवी के चले जाने के गम से हर कोई दुखी था क्योंकि इन सब झगड़ों में उस नन्हीं सी परी का कोई दोष नहीं था। वह तो घर में सबके दुलार की पात्र बन गयी थी। परन्तु अपनी माँ के कुकृत्यु के कारण उसे अब वहाँ से जाना पड़ रहा था। घर से निकलते वक्त एक तरफ जहाँ सुखदा गुस्से में तमतमायी हुई थी तो वही नन्हीं पल्लवी ताता से बिछड़ने के कारण रो रही थी।
छड़े-बांग्ला में छोटी-छोटी पहेली नुमा कविताएँ या बच्चों के लिए लिखी कविताओं को छड़ा कहा जाता है।
डॉ मधुछन्दा चक्रवर्ती
अतिथि व्याख्याता, हिन्दी विभाग
सरकारी प्रथम दर्जा कॉलेज, के आर पुरम
8217797037

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