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प्रत्येक में एक ही जगतनियंता प्रभु का प्रतिबिंब…!– सुनील कुमार महला

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हफ़ीज़ जौनपुरी ने इंसानियत के बारे में क्या खूब लिखा है -‘आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो, इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़।’ इंसानियत यानी कि मानवता ही वास्तविक धर्म है। वास्तव में, धर्म का सार ही है– ‘आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्’ अर्थात् जो व्यवहार हम दूसरों से अपने लिए चाहते हैं वैसा ही सभी के साथ वरतें।वास्तव में, यही तो मानवता है। अब आप यहां कह सकते हैं कि मैं यहां मानवता की बात क्यों कर रहा हूं ? दरअसल, आज दिन-ब-दिन मानवता जैसे मूल्यों का लोप होता चला जा रहा है। लेकिन बावजूद इसके भी कई बार हमें जीवन में ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलते हैं कि मानवता की मिसाल भी देखने को मिल जाती है, जो युगों युगों तक हमारे जेहन में बनी रहती है। वैसे आज के समय में, सड़क पर कोई एक्सीडेंट हो जाए तो लोग एक्सीडेंट स्थल का विडियो जरूर बनाने लगते हैं, फोटो खींचने लगते हैं लेकिन एक्सीडेंट में घायल लोगों की मदद के लिए आगे नहीं आते। आज दुनिया  स्वार्थ की ओर अग्रसर हो गई है और नैतिक मूल्यों का लगातार ह्वास होता चला जा रहा है। तभी शायद महान कवि मैथिलीशरण गुप्त जी को कभी यह लिखना पड़ा था -‘विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी, मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सु-मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए, मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे। उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती, तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती। अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे, वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।’ माना कि आज हर तरफ लालच, स्वार्थ का बोलबाला है, मनुष्य आपा-धापी भरी जिंदगी जी रहा है लेकिन मनुष्य में  एक दूसरे के प्रति आत्मभाव जरूर होना चाहिए। मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है और आना भी चाहिए और यह सृष्टि देखा जाए तो ‘आत्मभाव’ यानी कि ‘मनुष्यता’ या यूं कहें कि ‘मानवीयता’ पर ही चल रही है, जो भारतीय संस्कृति का एक गुण भी है। हाल ही में मानवीयता का एक सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिला, जब एक बच्चे को विदेश से बहुत महंगा इंजेक्शन मंगवाकर , उसे बच्चे को लगाकर उसकी जीवनरक्षा की गई। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले मात्र 23 महीने के बच्चे हृदयांस को स्पाइनल मस्कुलर एस्ट्रॉफी नामक घातक बीमारी से बचाने की मुहिम चलाई गई थी। राजस्थान पुलिस में एक उपनिरीक्षक के बेटे  हृदयांश को नई जिंदगी देने की मुहिम आखिरकार सफल हो गई। हृदयांश को बचाने के लिए हर कोई आगे आया। यह मानवता का एक बहुत अच्छा उदाहरण है। मीडिया के हवाले से आई खबरों से पता चलता है कि बच्चे को बचाने के लिए एक्टर से लेकर क्रिकेटर और सब्जी विक्रेता यानी कि आम आदमी तक ने बच्चे को बचाने के लिए मदद की। मदद के अभाव में बच्चे की जान जा सकती थी। जैसा कि साढ़े सत्रह करोड़ रूपए बहुत बड़ी रकम होती है और आम आदमी से लेकर मध्यम वर्ग तो दूर की बात,किसी करोड़पति के लिए भी इतनी बड़ी धनराशि इलाज के लिए जुटाना शायद ही संभव हो सकता था, लेकिन यह मानवता ही थी, जिसके कारण आज बच्चे की जान बच सकी है। पाठकों को बताता चलूं कि जयपुर के जेके लोन अस्पताल में 24 महीने के हृदयांश को 17.50 करोड़ रुपए का इंजेक्शन लगाया गया और उसकी जान बचाई गई। यह भी बता दूं कि इतना महंगा इंजेक्शन क्राउडफंडिंग के जरिए अमेरिका से मंगवाया गया था। इस साल यानी कि वर्ष 2024 में हृदयांश जब बीस महीने का था, तब राजस्थान पुलिस ने बच्चे के इलाज के लिए क्राउड फंडिंग अभियान शुरू किया था। हालांकि इंजेक्शन बच्चे के दो साल का हो जाने पर लगाया जाना था लेकिन इतनी बड़ी रकम जुटाने के लिए यह अभियान चार महीने पहले ही शुरू कर दिया गया। आज पैसे की अनुपलब्धता के चलते देश में अनेक लोगों की जानें चली जाती है। स्वास्थ्य व शिक्षा की जिम्मेदारी हालांकि सरकार की होती है लेकिन भारत विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है और यहां हर व्यक्ति के संसाधनों को जुटाया जाना इतनी आसान बात नहीं है, लेकिन मानवता बहुत कुछ संभव बनाने की क्षमता रखती है। आज देश में बहुत से एनजीओ कार्यरत हैं, अनेक सामाजिक संस्थाएं भी हैं जो समय समय पर आमजन के हितार्थ बहुत से कामकाज करतीं हैं लेकिन हृदयांश के मामला इसलिए ज्यादा चर्चित हुआ क्यों कि इसमें एक आदमी को इलाज के लिए इतनी बड़ी रकम जुटानी थी। यह बहुत सराहनीय है कि देश, विदेश से अनेक लोग इसके लिए बढ़-चढ़कर आगे आये, लेकिन यहां यह भी सोचनीय है कि आखिर दवाएं इतनी अधिक महंगी क्यों हैं ? साढ़े सत्रह करोड़ के इंजेक्शन में आखिर ऐसा क्या होगा, जो इसे विदेश से इतनी महंगी कीमत पर क्राउड फंडिंग के जरिए मंगाना पड़ा ? दवाओं के मामलों में न तो मरीज और न ही मरीज के परिजन दवा विक्रेताओं से मोलभाव कर सकते हैं। यक्ष प्रश्न यह भी है कि आज देश में दवाओं पर जितनी कीमत लिखी जाती हैं , क्या वास्तव में वे उतनी कीमत की होती हैं अथवा उसमें दवा विक्रेताओं, डिस्ट्रीब्यूटरों, दवा कंपनियों का लाभ अधिक छुपा होता है। बड़ी बीमारियों के नाम पर, स्वास्थ्य के नाम पर आज बहुत पैसा वसूला जाता है, ऐसे में आम आदमी इलाज के लिए जायें तो जाए कहां, यह भी अत्यंत विचारणीय है। हालांकि बहुत से बड़े लोग, कंपनियां, एनजीओ लोगों के इलाज के लिए आगे आते हैं, लेकिन हृदयांश जैसे अन्य मामलों में क्या लोगों को हमेशा आगे नहीं आना चाहिए ? आदमी, आज पैसे के लिए, धन व ऐश्वर्य के लिए भागा फिरता है, लेकिन असली जीवन तो मानवता की रक्षा में ही क्या नहीं है ? मानव को ईश्वर की सबसे बेहतरीन कृति माना जाता है और मानव को यह सर्वोच्च स्थान उसकी बनावट के कारण नहीं, बल्कि उसके गुणों के कारण मिला है। सहयोग, सदाचार, और सद्भावना जैसे मानवीय गुण मानव को धरती पर अन्य जीवों से श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं। मानव का अन्य मानवों और जीवों के प्रति समर्पण ही उसका सर्वोत्तम धर्म है। सच तो यह है कि मानव मात्र की सेवा करने से ही सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। यह दुखद है कि आज लोग मानवता भूल कर एक दूसरे के खून के दुश्मन बने हुए हैं। इसलिए हम सभी को मानवता का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि सभी का भला हो सके।
काम, क्रोध, मोह-माया विकारों के आवेश में आकर आज इंसान क्रूर से क्रूर कृत्य करने से नहीं परहेज करता है। एक दूसरे के प्रति सेवाभाव, कल्याण और परोपकार की भावना को ही मानवता कहा जाता है।  मानवता हमें मानव मात्र से नहीं अपितु संसार के हर प्राणी से प्रेम करना सिखाती है। जाति, संप्रदाय, वर्ण, धर्म, देश आदि के विभिन्न भेदभाव के लिए यहां कोई स्थान नहीं है। मानव धर्म, सभ्यता और संस्कृति की एक तरह से रीढ़ है। इसके बिना सभ्यता व संस्कृति का विकास कल्पना मात्र ही है। प्रत्येक में एक ही जगतनियंता प्रभु का प्रतिबिंब दिखलाई देता है, यह समझकर मनुष्य की ओर अपने स्वार्थों को त्यागकर हमेशा आदर भावना बनाए रखें। हमें यह चाहिए कि हम दुःखी-पीड़ित मानव की सेवा करें। मानवतावाद के संबंध में नेहरू ने कहा था, ” पर सेवा, पर सहायता और पर हितार्थ कर्म करना ही पूजा है और यही हमारा धर्म है यही हमारी इंसानियत है।’ अज्ञात ने लिखा है -‘रखते हैं जो औरों के लिए प्यार का जज्बा,वो लोग कभी टूट कर बिखरा नहीं करते।’ सच तो यह है कि मानव का मानव के प्रति समर्पण ही भारतीय संस्कृति है। हमें चाहिए कि हम मज़हब की हदों को त्यागकर इंसानियत को तवज्जो दें। किसी ने बहुत ही शानदार शब्दों में लिखा है -मनुष्य एक ही सार और आत्मा से निर्मित एक समग्र प्राणी है।यदि एक अंग दर्द से पीड़ित है, तो अन्य अंग बेचैन रहेंगे। यदि आपको मानवीय पीड़ा के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है, तो आप मानव का नाम नहीं रख सकते।’
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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