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द्वयक्षरीय रचना
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प्रिय मित्रो ! पूर्व में आपको मैंने अपनी एकाक्षरीय रचनाओं से परिचित कराया था । आज भी मात्र दो वर्णों “त” तथा “ल” के मेल से रची अपनी एक ताजी रचना से परिचय कराता हूँ। इसे चित्र काव्य के अन्तर्गत लिया जाता है। रचना की किसी भी पँक्ति को द्रुत गति से आवृत्त करऩे से वक्ता की स्वयं के दाँतों से जीभ कटने का डर रहता है। अनुप्रास के अनुशासन में बँधी द्वयक्षरीय रचना का आनन्द लीजिए।
१-
तुतला तुतला तुल्लू तेली तेल तौलता तौल तिली।
तुलती तिली तुलाती तातिल लता तुलाती तेल लली।।
आशय
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तुल्लू नाम का एक तेल का व्यापारी तुतलाते तुतलाते तिल्ली तौलने के बाद तेल तौल रहा है।तातिल नाम की महिला तिली तुला रही है और लता नाम की बालिका तेल तुलाती है।
२-
ताती तिली तोतले तुल्लू लूली ललिता लोल लली।
तोला तोला तिल्ली तुलती तिल-तिल तुलता तेल तिली।।
आशय
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भुनी हुई गरमा गरम तिली है। तुल्लू तोतला होने से अच्छी तरह बोल नहीं पाता तो उसकी पत्नी ललिता दोनों हाथों से लूली होने के कारण न तो तिली को सँभाल पाती है न ही तेल को।तब तुल्लू बालिका लता से कहता है सब नाश हो रहा है क्यों कि तिल्ली इतनी मँहगी है कि तोला-तोला के बाँट से तिल्ली मिल रही है और तेल इतना मँहगा है कि तिल-तिल को बाँट मानकर तौला जा रहा है।
ताती = गर्म
तिल्ली = तिल्ली, तिल
तोला = लगभग १२ग्राम बजन की इकाई।
तिल = बजन की लगभग सबसे छोटी इकाई।
निवेदन
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रचना पूरी तरह काल्पनिक है। यहाँ लूली व तोतला शब्द मेरे लिए स्तरीय नहीं है। ऐसे ही तेली शब्द जाति सूचक न मानकर तेल के व्यापारी से लिया गया है।अलंकारोचित बाध्यता स्वीकारिए। आशीर्वाद दीजिए।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
9424044284
6265196070
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