फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं?
—- नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल
गणतंत्र दिवस पर आज
मैंने ख़ूब बधाइयां पाई!
पर सच्ची गणतंत्रता देखने को
अब भी है आंखें पथराई !
हिस्से में आज जनता के
कैसी बदहाली आईं,
काम बिना रिश्वत के कोई
आज भी न बन पाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
घर में बच्चे भूखे तड़पते
उदासी की चादर ओढ़े लुगाई,
आदमी दर – दर हैं भटकते फिरते
नहीं होती घर चलाने लायक भी कमाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
परमार्थ की भावना तजकर
निज स्वार्थ की भावना अपनाई,
जनता के हक के पैसों से
नेताओं ने ख़ूब मौज उड़ाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
कहीं हो रही आत्महत्याएं
तो कहीं चल रही हाथापाई,
कहीं फैला आतंकवाद का साया
तो कहीं मुंह बाए है महंगाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!
देशभक्तों के संघर्ष बलिदानों की
हमने ये कैसी कीमत चुकाई,
बदलेगा कब ये देश हमारा
कब लेगी इंसानियत फिर अंगड़ाई!
फिर कैसी गणतंत्रता यह आईं
पर सबने आज ख़ूब बधाइयां पाई!