लाखों अफगानी शरणार्थियों को पाकिस्तान खदेड रहा है, इसके लिए वह न्याय और अंतर्राष्टीय संहिताओं को कुचल रहा है, मानवता का खून कर रहा है, अफगान शरणार्थियों की बस्तियों और घरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। अब तक पांच लाख शरणार्थियों को पाकिस्तान ने खदेड दिया है, शेष शरणार्थियों को खदेडने के लिए पुलिस व सेना की हिंसा और बुलडोजर का सहारा लिया जा रहा है। एक तरफ दुनिया के नियामक और अन्य श्रेणी के लोग गाजा पट्टी पर इजराइल के हमले के खिलाफ जिहादी बने हुए पर दूसरी ओर अफगानिस्तान के शरणार्थियों के प्रश्न पर इनकी खामोशी टूट क्यों नहीं रही है?
खामोशी की करतूत देखिये। खामोश संयुक्त राष्टसंघ है, खामोश यूरोपीय यूनियन है, खामोश राष्टमंडल है, खामोश दुनिया के मानवाधिकार संगठन हैं, खामोश ईरान-सउदी अरब जैसे मुस्लिम देश हैं, खामोश मुस्लिम देशों के मजहबी संगठन हैं, खामोश दुनिया भर के मुस्लिम आतंकवादी संगठन हैं, खामोश भारत के मुस्लिम समर्थक सेक्युलर पार्टियां हैं, खामोश भारत के मुस्लिम संगठन हैं, खामोश भारत की कम्युनिस्ट जमात हैं।
क्या अफगानिस्तान के शरणार्थियों का कोई मानवाधिकार नहीं है, क्या उनका कोई शरणार्थी अधिकार नहीं हैं, क्या उनके जीवन का कोई मूल्य नहीं है, क्या उन्हें अपने भविष्य की सुरक्षा करने का कोई अधिकार नहीं हैं? क्या लाखों अफगानी शरणार्थियों को आतंकवादी मान लिया जाना चाहिए, क्या लाखों अफगानी शरणार्थियों को तालिबानी मान लिया जाना चाहिए? कभी अफगानी शरणार्थी आपके उपयोग के हथकंडा थे, आपने कभी इन्हें सोवियत संघ के खिलाफ हथकंडे की तरह उपयोग किया था, कभी आपने इन्हें अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए हिंसक बनाने की कोशिश की थी, आपने कभी इन्हें सुविधाएं, हथियार देकर पाला पोशा था, कभी आपने इन्हें अपनी भूमि पर बसाया था।
फिर आप इन्हें दुख की मक्खी की तरह निकाल कर नहीं फंेंक रहे हैं बल्कि इन्हें अपमानित कर रहे हैं, इनके भविष्य पर कुठराघात कर रहे हैं, इनके घरों पर बुलडोजर चला रहे हैं, इनके उपर पुलिस और सेना की हिंसा को लागू कर रहे हैं, इनके बच्चों को स्कूलों और कालेजों से खदेड रहे हैं। ऐसी करतूत और ऐसी मनुष्यता विरोधी कार्य कौन कर रहा है, ऐसा जुल्म कौन ढा रहा है? वही पाकिस्तान जिसकी छबि और करतूत दुनिया के सामने एक आतंकवादी देश के रूप में सामने है, वही पाकिस्तान जिसने आतंकवाद की आउट सोर्सिंग के माध्यम से दुनिया भर में मुस्लिमों को परचम लहराना चाहता था, वही पाकिस्तान जो दुनिया को आतंकवाद के माध्यम से इस्लाम के नीचे खडा करना चाहता था।
पाकिस्तान में कितने अफगानी शरणार्थी हैं? कितने अफगानी शरणार्थियों पर पाकिस्तान छोडने की तलवार लटक रही है और कितने अफगानी शरणार्थी पाकिस्तान छोड चुके हैं और अफगानी शरणार्थियों की कितनी पीढियां रह रही हैं पाकिस्तान के अंदर? इन सभी पर विवाद है और सही आंकडे मिलने बहुत ही मुश्किल है। सबसे बडी बात यह है कि शरणार्थियों की पहचान भी संभव नहीं है। इसलिए कि पाकिस्तान के लोगों और अफगानिस्तान के लोगों की मूल संस्कृति एक ही है, उनकी मजहबी पहचान एक ही हैं, उनकी भाषा भी लगभग सामान्य है, अफगान शरणार्थी सालों-साल रहने के बाद उर्दू, सिंघी और बलूच , पंजाबी भाषा जान लिये हैं और बोली के रूप में इन भाषाओं का प्रयोग कर रहे हैं। सबसे बडी समस्या बलूच आबादी की है और बलूच राष्टीयता की है। बलूचिस्तान की जो माग हो रही है उसमें अफगानिस्तान के भी कुछ इलाके हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान की एक नीति भी बहुत विवाद का विषय है जिस पर पाकिस्तान को हमेशा परेशानी होती है। अफगानिस्तान अंग्रेजों की संधि और सीमा रेखाकंन को नहीं मानता है। अंग्रेजों ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा की लक्ष्मण रेखा खीची थी। अफगानिस्तान का आरोप है कि पाकिस्तान उसके इलाके से ही लोगों को शरणार्थी बता कर खदेड रहा है। इसलिए कौन शरणार्थी है और कौन शरणार्थी नहीं है? इसकी पहचान करना और इस फैसला लेना बहुत ही मुश्किल है। शरणार्थियों की पहचान करने के फैसले में अन्याय भी हो सकता है? ऐसी आशंका को नजरअंदाज करना मुश्किल है।
पाकिस्तान का कहना है कि उसके यहां दो करोड अफगानिस्तान के लोग अवैध ढंग से रहे हैं। अफगानी शरणार्थी आतंकवाद के पर्याय बन चुक हैं, हिंसा के भी पर्याय बन चुके हैं। इनके कारण पाकिस्तान का आबादी संतुलन बदल रहा है, इनके कारण पाकिस्तान के अंदर कानून का शासन लागू नहीं हो रहा है, इनके कारण आतंकवाद पर दमन चक्र नहीं चल रहा है, इनके कारण अर्थव्यवस्था भी चौपट हो रही है, हमें अपनी आबादी के खर्च के लिए संसाधनों की कमी हो रही है, हमारे खेतों पर अफगानी शरणार्थियों का बोझ बढ रहा है, हमारे शहर इनके बोझ त्राहिमाम कर रहे हैं।
पाकिस्तान सीधे तौर झूठ बोल रहा है और खूदगर्ज बन रहा है। पाकिस्तान ने अफगानी शरणार्थियांें को खुद आमंत्रित किया था, अफगानिस्तान शरणार्थियों को हथकंडा के तौर पर प्रयोग किया था। ऐसा इसलिए किया था कि अफगानिस्तान में सोवियत संघ समर्थित सरकार और राजनीतिक व्यवस्था का पतन हो जाये और उसकी समर्थक सरकार भी बने और उसकी समर्थक राजनीतिक व्यवस्था भी खडी हो जाये। इसी नीति के तहत पाकिस्तान ने अपने यहां लाखों अफगानिस्तान के लोगों को आमंत्रित कर शरण दिया था और उन्हें पाकिस्तान के नागरिक के सामान अधिकार दिये थे, कालोनिया भी बसायी थी। इसके लिए पाकिस्तान को अमेरिका से पैसा मिलता था और हथियार भी मिलता था। अमेरिकी पैसे से पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान के नागरिक मौज काटते थे। लेकिन ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अमेरिका ने यह मान लिया कि पाकिस्तान ने उसकी पीठ में छूरी घोपी है, उसके साथ धोखा किया है। अफगानिस्तान से निकलने के बाद अमेरिका का कोई एजेंडा नहीं रहा। इसलिए अमेरिका ने सोचा कि अब पाकिस्तान को पालने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसा करना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए बूरी नीति तो होगी ही इसके अलावा उसकी चौधराहट को भी खतरा होगा, भारत, इजराइल जैसे मित्र देश भी नाराज होंगे और उनकी सुरक्षा की चुनौतियां भी बढेगी। इसी सोच का प्रभाव पडा और अमेरिका ने डालर देना बंद कर दिया। जब अमेरिका का डालर मिलना बंद हो गया तब पाकिस्तान की दुर्गति शुरू हो गयी, उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा गयी, उसकी सेना की हिंसक नीतियां सकते में आ गयी, पाकिस्तान के नागरिको के लिए जरूरी सुविधाएं और संसाधनों की कमी हो गयी। एक तरह से पाकिस्तान कंगाल हो गया। कंगाल होने के बाद पाकिस्तान सउदी अरब और ईरान सहित सभी उम्मीदों की ओर कटोरा लेकर दौड़ लगायी फिर भी उसे भीख और सहायता नहीं मिली।
इधर तालिबान भी किसी उपयोग के नहीं रहे, जिसके उपयोग से पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था की झोली भरता? तालिबान खुद ही अपने आप को नरम करने और पाकिस्तान के मोहरे की छबि से निकलने की कोशिश कर रहा है। अब तालिबान के आतंकवादी अपनी खूनी मानसिकता को संतुष्ट और तृप्त करने के लिए पाकिस्तान की दौड लगा दी। इस कारण पाकिस्तान में भी आतंकवाद की समस्याएं तेज हुई है,पाकिस्तान के अंदर भी विभिन्न राष्टीयताओं की लड़ाई चल रही है। इस कारण अब पाकिस्तान की इच्छा सभ्य बनने की है। पाकिस्तान लाखों शरणार्थिों को खदेड कर अपनी अर्थव्यवस्था को समृद्ध करना चाहता है, अपनी राष्टीयता का अक्षुण रखना चाहता है और आतंकवाद पर काबू करना चाहता है।
लाखों अफगानी शरणार्थियों के सामने भूख से मरने और अपना भविष्य चौपट करने की स्थिति खडी है। अगर वे पाकिस्तान से खदेड दिये गये तो फिर अफगानिस्तान में उनका क्या होगा? अफगानिस्तान ऐसे ही तालिबान की हिंसा और जिहादी मानसिकता से त्रस्त है। सबसे बडी बात यह है कि अफगानी शरणार्थियों की कई पीढियां पाकिस्तान में ही आगे बढी है। उनकी तीसरी और चौथी पीढी अपने पूर्वजों के देश का मुंह भी नहीं देखा है। दुनिया में मान्यता यह भी है कि जिस देश में जन्म होता है उसी देश का वह नागरिक होता है। फिर अफगानी शरणार्थियों की तीसरी और चौथी पीढी को पाकिस्तान दूसरे देश का नागरिक कैसे घोषित कर सकता है? लेकिन पाकिस्तान को अंतर्राष्टीय कानून और मान्यताओं का पाठ कौन पढायेगा? अफगानी शरणार्थियों के अधिकार को लेकर दुनिया बोलने तक भी तैयार नहीं है।
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आचार्य विष्णु हरि
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