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“अगर तू फिल्मों में काम करने गई तो मेरा मुंह मत देखना कभी। तुझसे मेरा रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।” शायद ऐसा ही कुछ निरूपा रॉय जी के पिता ने उनसे तब कहा होगा जब उन्हें पता चला था कि उनकी बेटी फिल्मों में काम शुरू करने जा रही है।
वैसे तो अधिकतर दर्शक निरूपा रॉय जी को फिल्मी मां के रूप में ही जानते-पहचानते हैं। लेकिन बहुत पुरानी फिल्मों की जानकारी रखने वाले लोग इस बात से वाकिफ़ हैं कि निरूपा रॉय जी ने अपने करियर की शुरुआत में कई फिल्मों में बतौर हीरोइन काम किया था। और उस दौरान कई शानदार गीत भी निरूपा रॉय जी पर पिक्चराइज़ हुए थे। मगर बदलते वक्त के साथ पहले निरूपा रॉय ने चरित्र भूमिकाएं निभानी शुरू की। और फिर मां के किरदार भी निभाने लगी। एक वक्त के लगभग हर बड़े स्टार की मां का किरदार निरूपा जी ने पर्दे पर जिया। हालांकि लोग इन्हें अमिताभ बच्चन की फिल्मी मां कहना अधिक पसंद करते हैं।
4 जनवरी 1931 को निरूपा रॉय जी का जन्म गुजरात के वलसाड में रहने वाले एक गुजराती चौहान परिवार में हुआ था। निरूपा जी के पिता रेलवे में नौकरी किया करते थे। जबकी मां गृहणी थी। निरूपा रॉय जी की एक बहन भी थी। माता-पिता ने इन्हें नाम दिया था कांता। और इनके प्यार का नाम हुआ करता था छिबी। निरूपा रॉय मात्र 14 साल की ही थी, और स्कूल में पढ़ाई कर रही थी जब साल 1945 में इनकी शादी करा दी गई थी। इनके पति का नाम था कमल बलसारा। कमल बलसारा एक राशनिंग इंस्पैक्टर थे और मुंबई में पोस्टेड थे। उनसे शादी करने के बाद कांता चौहान बन गई थी कोकिला बलसारा।
शादी के बाद कांता चौहान उर्फ कोकिला बलसारा पति संग मुंबई आ गई। इनके पति कमल बलसारा को एक्टिंग का शौक था और वो एक्टर बनना चाहते थे। मगर किस्मत उनका साथ नहीं दे रही थी। मुंबई आए कोई तीन-चार महीने ही बीते थे कि एक दिन कमल बलसारा जी ने अखबार में एक विज्ञापन देखा। वो विज्ञापन सनराईज़ पिक्चर्स की तरफ़ से था। वो एक फिल्म शुरू करने जा रहे थे और उन्हें नए कलाकारों की ज़रूरत थी। उस फिल्म का नाम था राणकदेवी। वो फिल्म गुजराती भाषा में बननी थी। कमल बलसारा ने ऑडिशन के लिए अप्लाय कर दिया। और कुछ ही दिन बाद उन्हें बुलावा भी आ गया। इत्तेफ़ाक से जिस दिन ऑडिशन होना था, कमल बलसारा कोकिला जी को भी साथ ले गए।
ऑडिशन हुआ और कमल बलासारा की किस्मत ने इस दफ़ा भी उनका साथ नहीं दिया। वो रिजेक्ट कर दिए गए। मगर ऑडिशन लेने वालों को कोकिला बलसारा की पर्सनैलिटी बहुत पसंद आई। बिना किसी ऑडिशन या इंटरव्यू के फिल्म वालों ने कोकिला जी को सीधे फिल्म की हीरोइन का रोल ऑफर कर दिया। कोकिला जी तो घबरा गई। उन्होंने इन्कार कर दिया। मगर पति ने इन्हें समझाया कि कोई दिक्कत नहीं है। पति ने ज़ोर दिया तो आखिरकार कोकिला जी ने राणकदेवी नाम की उस गुजराती फिल्म में बतौर हीरोइन काम करने का ऑफर स्वीकार कर लिया। सनराईज़ पिक्चर्स के मालिक हुआ करते थे वी.एम.व्यास। उन्होंने ही कांता चौहान उर्फ कोकिला बलसारा को निरूपा रॉय नाम दिया था।
निरूपा जी ने राणक देवी फिल्म साइन तो कर ली थी। पर किन्हीं वजहों से कुछ दिन बाद इनसे हीरोइन का रोल वापस ले लिया गया और एक छोटा सा किरदार दिया गया। कहीं-कहीं दावा किया जाता है कि चूंकि निरूपा जी तब एकदम अमेच्योर थी तो वो उस शिद्दत से एक्टिंग नहीं कर पा रही थी जिसकी ज़रूरत उस फिल्म की हीरोइन के रोल के लिए थी। इसी वजह से उनसे हीरोइन का रोल वापस लिया गया था। बहरहाल, निरूपा रॉय जब आगे चलकर कामयाब एक्ट्रेस बन गई तो उनके पति कमल बलसारा ने भी अपना नाम कमल रॉय कर लिया था। निरूपा रॉय जी की पहली फिल्म राणक देवी साल 1946 में रिलीज़ हुई थी।
साथियों ये वो दौर था जब फिल्मों में काम करने वाले लोगों को समाज में बहुत अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता था। और अच्छे घरों की लड़कियों का फिल्मों में काम करना तो बहुत ही खराब बात समझी जाती थी। उस वक्त तक यूं तो कुछ बड़े नाम बतौर हीरोइन फिल्म इंडस्ट्री में इस्टैब्लिश हो चुके थे। मगर अधिकतर भारतीय परिवारों में फिल्मों में काम करने वाले लोगों, खासतौर पर लड़कियों को खराब समझा जाता था। यही वजह है कि जब निरूपा जी के फिल्मों में काम करने की खबर इनके माता-पिता व समाज के लोगों को मिली तो बड़ा हंगामा हुआ।
लोगों ने निरूपा जी को बहुत भला बुरा कहा। यहां तक की निरूपा जी के पिता भी बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने तो धमकी दे दी कि अगर कांता(निरूपा रॉय) ने फिल्मों में काम किया तो वो उसके साथ अपने संबंध हमेशा के लिए खत्म कर देंगे। फिल्म राणक देवी जब रिलीज़ हुई तो समाज के लोगों का मुंह तो बंद हो गया। लेकिन पिता का गुस्सा खत्म नहीं हुआ। वो अपनी ज़िद पर ऐसे अड़े कि वाकई में आखिरी सांस तक उन्होंने निरूपा जी का मुंह नहीं देखा। उनके ज़िंदा रहने के दौरान अपनी मां से भी निरूपा जी छिप-छिपकर मिला करती थी।
निरूपा रॉय जी की पहली हिंदी फिल्म थी “लाखों में एक” जो साल 1947 में रिलीज़ हुई थी। ये फिल्म सेठ चंदूलाल शाह की कंपनी रणजीत मूवीटोन में बनी थी। लेकिन निरूपा जी ने जो हिंदी फिल्म सबसे पहले साइन की थी वो थी अजीत पिक्चर्स के बैनर तले बनी गुणसुंदरी। गुणसुंदरी हिंदी और गुजराती, दोनों भाषाओं में बनी थी। और उस फिल्म में निरूपा रॉय जी के हीरो थे मनहर देसाई। जबकी रतिभाई पुणातर ने ये फिल्म डायरेक्ट-प्रोड्यूस की थी। प्रोडक्शन में हुई देरी की वजह से गुणसुंदरी फिल्म साल 1948 में रिलीज़ हो सकी थी।
ये वो समय भी था जब धार्मिक, एतिहासिक और सामाजिक फिल्में भी बड़े पैमाने पर बनती थी। और इस तरह की फिल्मों के अलग कलाकार होते थे। मगर निरूपा रॉय जी हर तरह की फिल्मों में काम कर रही थी। उन्होंने अनेकों धार्मिक फिल्मों में काम किया था। कई एतिहासिक फिल्मों में भी काम किया। महिपाल, मनहर देसाई, त्रिलोक कपूर व साहू मोदक जैसे कलाकारों संग उन्होंने स्क्रीन शेयर की। और जयराज व भारत भूषण संग भी उनकी जोड़ी बनी। जबकी सामाजिक फिल्मों में भी उनका खूब नाम हुआ। उस वक्त की उनकी कुछ प्रमुख सामाजिक फिल्में थी हमारी मंज़िल, मन का मीत, भाग्यवान, धर्मपत्नी, दो बीघा ज़मीन, गरम कोट, कंगन, हीरा मोती, बेदर्द ज़माना क्या जाने, घर की लाज इत्यादि।
1950 के दशक के शुरुआती सालों तक तो निरूपा रॉय हीरोइन के रूप में फिल्मों में नज़र आती रही। लेकिन फिर उन्होंने चरित्र भूमिकाओं का रुख किया। और साल 1956 में आई “भाई भाई” नामक फिल्म में उन्होंने पहली दफ़ा कोई चरित्र किरदार निभाया था। ये वही फिल्म है जिसमें अशोक कुमार व किशोर कुमार ने भी पहली दफा साथ अभिनय किया था। निरूपा रॉय इस फिल्म में अशोक कुमार की पत्नी के रोल में दिखी थी।
लेखक व फिल्म इतिहासकार तथा ब्लॉग “बीते हुए दिन” के संचालक श्री शिशिर कृष्ण शर्मा जी को कई साल पहले दिए एक इंटरव्यू में निरूपा रॉय जी ने बताया था कि साल 1955 की फिल्म “मुनीमजी” में पहले उन्हें हीरोइन लिया गया था। उन्होंने हीरोइन की जवानी से बुढ़ापे तक के दृश्य शूट किए थे। वो उनके लिए बड़ी चुनौती थी। और उस चुनौती को स्वीकार करते हुए निरूपा रॉय जी ने बहुत कुशलता से वो किरदार निभाया।
मगर बहुत बाद में उन्हें पता चला कि जवानी के उनके सभी दृश्य तो काट दिए गए हैं और उन्हें एक्ट्रेस नलिनी जयवंत पर फिर से फिल्माकर मुनीमजी फिल्म रिलीज़ किया गया है। यूं तो निरूपा रॉय जी के जो दृश्य उस फिल्म में बचे थे उन्हीं के लिए निरूपा जी को फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस अवॉर्ड मिल गया था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि निरूपा रॉय जी ने कितने सशक्त तरीके से वो किरदार निभाया होगा। निरूपा जी ने कहा था कि वो अवॉर्ड भी उनका दुख कम नहीं कर सका था।
उस वक्त के दर्शकों के बीच निरूपा रॉय जी की छवि धार्मिक फिल्मों में काम करने वाली एक्ट्रेस की ही थी। निरूपा जी कई फिल्मों में देवी के किरदार निभा चुकी थी। और ऐसे में कुछ लोग तो इन्हें ऐसे भी मिल जाते थे जो सच में देवी मानकर इनकी पूजा करते थे और इनसे आशीर्वाद देने की गुज़ारिश भी करते थे। मगर निरूपा जी एक वक्त के बाद धार्मिक फिल्मों की हीरोइन की अपनी छवि को बदलना चाहती थी। इसलिए उन्होंने 1952 की सिंदबाद द सेलर व 1959 की बाज़ीगर नामक दो स्टंट फिल्मों में काम किया। लेकिन निरूपा रॉय जी को देवी मान चुके लोगों को परदे पर इनका मार-पिटाई करना रास नहीं आया। उन लोगों ने निरूपा जी को ख़त लिखकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की। कुछ ने तो बहुत सख़्त भाषा भी ख़तों में इस्तेमाल की। इसका नतीजा ये हुआ कि दोबारा कभी निरूपा रॉय स्टंट फिल्मों में काम करने का साहस नहीं जुटा सकी।
1960 का दशक शुरू होने तक निरूपा रॉय एक फुल टाइम कैरेक्टर एक्ट्रेस के तौर पर स्थापित हो चुकी थी। 1961 की छाया और 1964 की शहनाई फिल्म के लिए निरूपा जी को फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इसी दशक में उन्होंने मां के किरदार निभाने भी शुरू कर दिए थे। मगर जब 1775 में दीवार फिल्म में वो अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की मां के रोल में दिखी तो फिर तो वो पूरी तरह से फिल्मी मां ही बन गई। वैसे तो निरूपा जी ने उस दौर के लगभग हर स्टार की मां का किरदार फिल्मों में निभाया था। मगर लोगों ने उन्हें अमिताभ बच्चन की मां कहना शुरू कर दिया।
1980 के दशक के मध्य तक तो निरूपा रॉय जी फिल्मों में लगातार काम करती रही। मगर फिर धीरे-धीरे उन्हें काम मिलना कम होता चला गया। निरूपा जी की आखिरी कुछ फिल्में थी लाल बादशाह, लव यू हमेशा और जहां तुम ले चलो। ये सभी फिल्में साल 1999 में रिलीज़ हुई थी। लाल बादशाह में निरूपा रॉय जी एक बार फिर से अमिताभ बच्चन की मां के किरदार में दिखी थी। इन्हीं फिल्मों के बाद से निरूपा रॉय जी ने एक्टिंग से फुल टाइम रिटायरमेंट ले लिया।
निरूपा रॉय जी की निजी ज़िंदगी की बात करें तो इनके दो बेटे, योगेश और किरण हैं। निरूपा जी ने अपनी ननद की एक बेटी को भी गोद ले रखा था जिसका नाम था रेखा। निरूपा जी ने ही रेखा की शादी भी कराई थी। रेखा अब अपने पति व परिवार संग लंदन में रहती हैं। निरूपा रॉय जी का करियर तकरीबन 55 साल चला। इस दौरान उन्होंने लगभग तीन सौ हिंदी फिल्मों व सौलह गुजराती फिल्मों में काम किया था। साल 2004 में फिल्मफेयर वालों ने निरूपा रॉय जी को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया था। मगर विडंबना देखिए, इसी साल, यानि 2004 की 13 अक्टूबर को 73 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निरूपा रॉय जी का निधन हो गया। आज निरूपा रॉय जी की पुण्यतिथि है। किस्सा टीवी निरूपा रॉय जी को बहुत सम्मान के साथ याद करते हुए उन्हें नमन करता है। शत शत नमन।
साभार फेसबुक





















