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बंदर की आत्मीयता ( कहानी)

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एक बंदरी के दो बच्चे थे वो काका रुङीमल की हवेली पर ही इधर उधर फुदकते थे। काकी सरबती मोटी मोटी रोटी व छाछ हवेली पर रखवा देती तो आराम से खा पीकर पेङो पर चले जाते। एक दिन बहेलिये ने बंदरी एवं एक बच्चे को बंधक बनाकर सांकली डालकर ले गया। छोटा सा बच्चा देखता रहा लेकिन कुछ नहीं कर पाया। दो दिन वो कुछ नहीं खाया निढाल होकर छत पर पङा रहा तो काकी उसे उठाकर नीचे ले आई। एक दो दिन दुध पिलाने के बाद वो फुदक कर फिर छत पर चला गया। जब देखता काकी खाना बना रही है तो आकर पास में बैठ जाता। दुध निकाल रही है अथवा जब अकेली होती तो पास में बैठकर चुपचाप काकी की बात सुनता रोटी खिचड़ी थाली में खाकर पानी पीकर चला जाता। काकी के साथ साथ बंदर भी बुड्ढा होने लगा तो काकी राधे राधे पुकारती तो झट से प्रकट हो जाता। भले ही वो बोल नही पाता लेकिन एहसास पूरा था। काकी बिमार हो गई तो संदुक पर बैठकर सबकुछ देखता। काकी की अर्थी बांधकर तैयार हो गई तो आकर पास में बैठ गया आंखों से पानी बह रहा था। शमशान तक साथ गया जब सब चले गए तो प्रणाम करते हुए लोटपोट हो गया। अंतिम संस्कार के बाद सभी रश्म रिवाज में शामिल घर के सदस्य की तरह होता। रोजाना गरूड़ पूराण सुनता। जब श्राद्ध हो रहा था तब घर के लोग रश्म करने के साथ साथ रो भी रहे थे कि हवेली के उपर बैठे बंदर की आंखों से पानी एक बेटी के उपर गिरा तो सोचा कि बंदर मुत्रत्याग किया है तो गुस्से से चिलाते हुए कहा कि इस बुड्ढे बंदर को बांधकर खेतों में छोड़ आओ तो सबने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि यह सरबती का बेटा है सबने राधे राधे कहकर बुलाया लेकिन वो नहीं आया तो उपर जाकर देखा कि दोनों आंखों बह रही थी वो कौने में चिपक कर बैठा था।  जब उसे छुकर देखा तो पाया कि वो अब जीवित नहीं है। पता चला कि उसने काकी मरने के बाद कुछ भी नहीं खाया लेकिन रोजाना कथा भजन में शामिल होता रहा। पंडित जी ने कहा कि सरबती का श्राद्ध संपन्न अवश्य हो गया अब राधे का अंतिम संस्कार के बाद सरबती की तरह ही मैं सबकुछ निशुल्क करूँगा।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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