कोई बच्चा ना तो अनाथ होता है ना ही नाजायज। हर बच्चा उसी प्रकिया से दुनिया में आता है जैसे हम सब लेकिन उसके भाग्य में विधाता ने क्या लिखा है अथवा क्या निर्धारित किया है उसे ही वह बच्चा भोगता है। दोहरे मांबाप के बच्चे अक्सर दोनों तरफ से सस्ते हो जाते हैं ना तो उसे सही प्यार मिल पाता ना ही सही माता पिता क्योंकि ऐसे बच्चे को दो नोकाओं की सवारी करने से वो दिग्भ्रमित हो जाता है। उसके प्रति कभी अनापशनाप संपत्ति हो जाती है तो कभी कभी दोनों तरफ सिर्फ उपेक्षा ही उपेक्षा। इसलिए बच्चे को जन्म लेते ही तूरंत गोद लेना चाहिए चाहे वो किसी रिश्तेदार का हो अथवा अनाथ। सनद रहे कि ईश्वर प्रदत संतान को अंगीकार करने के बाद नफा नुक्सान से उपर उठकर जी जान से भरणपोषण शिक्षा दीक्षा दिला कर अच्छा कमाऊ बनाने के बजाय अच्छा इंसान बनाने से उसके पास अच्छे अच्छे विकल्प सामने रहेंगे। यदि धन संपत्ति आवश्यकता से अधिक संग्रह की गई है तो जन कल्याण के लिए अपने हाथों से दान कर देनी चाहिए यदि ऐसा ना कर पा रहे हैं तो अपनी बेटियों को भी कम से कम आधी संपत्ति अपने हाथों से दे देनी चाहिए। याद रहे कि जीवन भर कोल्हू का बैल बनकर जो संग्रह किया है उसके बोझ से आपकी संतान दब ना जाए।उद्यमेन हहि सिंधंति कार्याणि न मनोरथ: न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मुखे मृगा यानि संतान को परिश्रमी बनाना चाहिए ताकि वो शिद्धि प्राप्त कर सके जैसे सोये शेर के मूंह में शिकार नहीं आ सकता उसे भी समझाने से बेहतरी है।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम