मंदिर नहीं, इसलिए उपेक्षा?
स्थानीय लोग आरोप लगा रहे हैं कि यह मंदिर मस्जिद या मदरसा नहीं होने के कारण विधायक अब्दुल अज़ीज़ की कोई रुचि इसके संरक्षण में नहीं है। बदरपुर के जनप्रतिनिधि होने के बावजूद वे लगातार हो रही नदी कटाव और मंदिर पर मंडरा रहे खतरे की अनदेखी कर रहे हैं।
स्थानीय एक व्यक्ति की भूमिका पर भी सवाल
इसी क्षेत्र में एक भिन्न धर्म के स्थानीय व्यक्ति द्वारा तालाब खुदवाकर नदी कटाव को और बढ़ावा देने का भी आरोप सामने आया है, जिससे मंदिर की स्थिति और भी दयनीय हो गई है।
शिकायतें व्यर्थ, प्रशासन मौन
स्थानीय निवासियों द्वारा बार-बार विभागीय अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। मंदिर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को नजरअंदाज किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री से गुहार
समाजसेविका मुन्नी क्षेत्री समेत पीड़ित स्थानीय जनसमुदाय ने असम के कर्मठ मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व शर्मा से इस प्राचीन मंदिर को बचाने की अपील की है। वे चाहते हैं कि सरकार तुरंत हस्तक्षेप कर मंदिर की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए।
स्थानीय नेताओं की उपस्थिति
मंदिर की स्थिति का जायजा लेने और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए इस दिन कई स्थानीय शासक दल के नेता और कार्यकर्ता उपस्थित थे, जिनमें बनोज चक्रवर्ती, दिलीप दास, मृण्मय देव, झंटु चंद, तापस मालाकार, मुन्ना दास, अरुण दास, रंजन दास, दीपाली चक्रवर्ती और मंदिर के सेवायत माई जी प्रमुख रूप से शामिल रहे।
अब सवाल यह है कि क्या 200 साल पुरानी सांस्कृतिक धरोहर को यूं ही नदी की गर्त में समा जाने दिया जाएगा, या सरकार समय रहते जागेगी?





















