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असम विश्वविद्यालय विवाद के संदर्भ में, गलती स्वीकार करने या माफी माँगने के बजाय, विवादित प्रोफेसर प्रशांत चक्रवर्ती ने बराक घाटी के लोगों को “रीढ़विहीन” कह दिया और बराक बंगालियों को दोनों घाटियों की एकता में बाधा करार दिया। इस मानसिकता का कड़ा विरोध करते हुए बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट (बीडीएफ) ने बराक भाजपा इकाई और मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर तुरंत और स्पष्ट प्रतिक्रिया की माँग की है।
बीडीएफ कार्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में, बीडीएफ के मुख्य संयोजक प्रदीप दत्ता राय ने कहा कि न तो प्रशांत चक्रवर्ती और न ही बंगला साहित्य सभा किसी भी रूप में असम के बंगालियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर द्वारा बार-बार बराक बंगालियों का अपमान करना पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इस आपत्तिजनक बयान के लिए उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
दत्ता राय ने यह भी कहा कि जिस तरह पहले बंगाली हिंदू और मुसलमानों के बीच विभाजन की कोशिशें हुई थीं, उसी तरह अब राज्य के बंगाली हिंदुओं के बीच भी साजिशन फूट डालने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि ब्रह्मपुत्र घाटी के कुछ बुद्धिजीवी और बराक घाटी के कुछ ‘राजाकार’ (सहयोगी प्रवृत्ति के) बंगाली इस विभाजनकारी एजेंडे को समर्थन दे रहे हैं। उन्होंने बराक के लोगों से इन तत्वों के प्रति सतर्क रहने की अपील की।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि असम विश्वविद्यालय प्रशासन ने 19 मई जैसे महत्वपूर्ण दिन पर प्रशांत चक्रवर्ती को भाषण देने के लिए किसने और किस आधार पर आमंत्रित किया? इस पर विश्वविद्यालय को स्पष्ट उत्तर देना चाहिए।
बीडीएफ के एक अन्य संयोजक, हृषिकेश डे ने कहा कि बराक की जनता इस भावनात्मक विषय पर मुख्यमंत्री का वक्तव्य सुनना चाहती है। उन्होंने कहा कि चूँकि बराक की जनता मुख्यमंत्री को विशेष सम्मान देती है, इसलिए यह जानने का अधिकार रखती है कि क्या असम विश्वविद्यालय वास्तव में असम आंदोलन की उपज है। डे ने यह भी पूछा कि बराक से चुने गए 15 विधायक और 3 सांसद इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि वे अगले 48 घंटों के भीतर इस मुद्दे पर अपना पक्ष नहीं रखते, तो आने वाले चुनावों में बराक की जनता उन्हें मतदान के माध्यम से बहिष्कृत करेगी।
बीडीएफ मीडिया सेल के संयोजक जयदीप भट्टाचार्य ने याद दिलाया कि अक्सा (ACKHSA) आंदोलन में भाजपा ने पहले समर्थन दिया था। उस समय भाजपा नेता बिमलांशु राय, अधिवक्ता रातुल दास और मिहिरेश भट्टाचार्य इस आंदोलन के सलाहकार थे। भाजपा उस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थी। अब वही भाजपा इस मुद्दे पर चुप क्यों है, यह बीडीएफ जानना चाहता है। भट्टाचार्य ने बराक की तीनों जिलों की भाजपा जिला कमेटियों से विश्वविद्यालय विवाद पर तुरंत स्थिति स्पष्ट करने की अपील की।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाषा आंदोलन के दौरान बराक के तीनों जिलों के कांग्रेस नेताओं ने पार्टी लाइन के विरुद्ध जाकर इस आंदोलन का समर्थन किया था। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बराक की भाजपा नेतृत्व को भी इसी प्रकार स्पष्ट और साहसिक रुख अपनाना चाहिए।
यह जानकारी बीडीएफ के संयोजक देबायन देब द्वारा जारी एक आधिकारिक प्रेस बयान के माध्यम से साझा की गई।





















