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प्रेरणा प्रतिवेदन शिलचर, 22 जुलाई: असम सरकार ने चाय बागान शुरू होने के 200 वर्ष पूर्ति समारोह तो मनाया लेकिन धीरे-धीरे बेगानों की हालत बिगड़ रही है बागान बंद हो रहे हैं इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। रिकॉर्ड के अनुसार बराक घाटी में 115 चाय बागान थे जो 100 रह गए, उसमें भी 15-20 की हालत बहुत खराब है। जो निकट भविष्य में कभी भी बंद हो सकते हैं। यदि बंद हुए बागानों का सर्वे किया जाए तो देखा जाएगा की उन स्थानों पर चाय बागान के लोग धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं और बाहरी लोगों का कब्जा बढ़ता जा रहा है।
चाय उद्योग के एक विशेषज्ञ के अनुसार चाय के पौधों की आयु बहुत लंबी होती है उनके रखरखाव के लिए टीबोर्ड से कंसोलिडेशन सब्सिडी मिलती थी। फैक्ट्री में भी मशीनरी रिप्लेसमेंट के लिए सरकार से सहायता मिलती थी। इससे उत्साहित होकर बागान प्रबंधन प्लांटेशन और फैक्ट्री को अपडेट करता रहता था। भाजपा सरकार आने के बाद से यह सहायता बंद हो गई, इसके चलते बागान बहुत तेजी से कमजोर हो रहे हैं, पतनोन्मुख है।
बागान प्रबंधन को चाय बिक्री करने की पूरी स्वतंत्रता नहीं है। आक्शन के चलते चाय की उचित कीमत नहीं मिलती, खरीददार सिंडिकेट बनाकर चाय का दाम बढ़ने नहीं देते। इसके चलते चाय बागान कभी-कभी उत्पादित मूल्य (लागत से भी कम) से कम दाम पर चाय बेचने के लिए बाध्य हो जाते हैं। प्रबंधन की ओर से सरकार को इस बात के लिए बार-बार ज्ञापन दिया जा रहा है ताकि चाय का बाजार ठीक हो सके लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है। लगता है सरकार जानबूझकर चाय उद्योग को कमजोर करने पर तुली हुई है।
चाय बागानों के लिए आवश्यक सामग्री जैसे खाद, केमिकल्स आदि का मूल्य भी कई गुना बढ़ गया है। पहले जो इस पर सब्सिडी मिलती थी वह भी बंद हो गई। बागान प्रबंधन चाय श्रमिकों को 1951 से सरकारी मूल्य पर खरीद कर 54 पैसे प्रति किलोग्राम के मूल्य से राशन देता आ रहा है जो लगभग फ्री ही था। भाजपा सरकार आने के बाद से सरकारी मूल्य पर चावल मिलना बंद हो गया और खुले बाजार से खरीद कर परंपरा के अनुसार श्रमिकों को 54 पैसा प्रति किलो राशन देना पड़ता है। इससे भी बागान पर बोझ बढ़ गया है और बागान कमजोर हो रहे हैं।
चाय बागानों की आय बढ़ाने का कोई उपाय नहीं हो रहा और व्यय बढ़ता ही जा रहा है। चाय बागान कमजोर होने का मुख्य कारण यही है। चाय का मूल्य न्यूनतम 250 से ₹300 प्रति किलोग्राम होना चाहिए जो आक्शन में 100-150 रुपया प्रति किलोग्राम भी बेचना पड़ रहा है। उसी चाय को बाजार में व्यापारी ₹400 में बेच रहे हैं। यदि सरकार चाय का न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP 250 से ₹300 प्रति किलोग्राम कर दे तो चाय उद्योग बच सकता है, चाय उद्योग बचेगा तभी श्रमिक भी बचेंगे। इसके लिए सरकार की इच्छा शक्ति जरूरी है जो वर्तमान में दिखती नहीं है।
चाय उद्योग पर प्रकृति की भी मार पड़ रही है। चाय बागानों के लिए एक निश्चित तापमान की जरूरत होती है जो नहीं मिल रहा है। कभी अति वृष्टि तो कभी गर्मी के कारण चाय के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। चाय उत्पादकों का कहना है कि इसके वजह से उत्पादन एक तिहाई कम हो गया है। अगर ऐसे ही 4-5 साल चलता रहा तो चाय उद्योग समाप्त होने में देर नहीं लगेगी। प्रकृति के प्रकोप से चाय की गुणवत्ता और उसके स्वाद पर भी असर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन के कारण चाय उद्योग बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है और मौसम के पैटर्न में लगातार बदलाव के कारण चाय की पत्तियों की गुणवत्ता कम हो गई है।
जिन कारणों से चाय उद्योग धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है और बंद होने के कगार पर जा रहा है, संभवतः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी सही जानकारी नहीं मिल रही है अन्यथा वे ऐसा नहीं होने देते और चाय उद्योग को बचाने के लिए उपाय अवश्य करते। रेलवे के बाद रोजगार देने वाला सबसे बड़ा चाय उद्योग ही है जहां बिना पढ़े लिखे गरीब लोगों को रोजगार मिलता है। अगर चाय बागानों को बंद होने से नहीं बचाया गया तो असम में बेरोजगारी में भारी वृद्धि हो सकती है।