शिलचर — “बांगाली की कोई पहचान हिंदू या मुसलमान के रूप में नहीं होती, बांगाली की असली पहचान है कि वह बांग्लाभाषी है।” — यह मार्मिक संदेश दिया शिलचर के विधायक दीपायन चक्रवर्ती ने। वे भाषाशहीद स्मरण समिति की 20वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे, जो स्व. सुखेंदु बिकाश सोम स्मृति मंच में सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर लंबे समय से लंबित मांग को दोहराया गया कि शिलचर रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘भाषा शहीद स्टेशन शिलचर’ रखा जाए। यह मांग समिति पिछले 20 वर्षों से लगातार अलग-अलग माध्यमों से केंद्र और राज्य सरकार के समक्ष रख रही है, पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
भाषा आंदोलन के शहीदों को उचित सम्मान देने की दिशा में यह पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 19 मई 1961 को बांग्ला भाषा के अधिकार के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां देशभर में अन्य रेलवे स्टेशनों का नाम बिना किसी बड़ी अड़चन के बदला जा रहा है — जैसे पश्चिम बंगाल में “खुदीराम बोस पुशा स्टेशन”, बिहार के समस्तीपुर जिले में “वायनी स्टेशन” का तीन बार नाम बदला गया — वहीं शिलचर में इतने वर्षों के संघर्ष के बावजूद भी कोई समाधान नहीं निकल पाया है।
कार्यक्रम में विधायक दीपायन चक्रवर्ती के अलावा कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें शामिल थे — डॉ. राजीव कर, बाबुल होड़, कछार जिला कांग्रेस के अध्यक्ष अभिजीत पाल, ‘रूपम’ सामाजिक-सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संस्था के सचिव निखिल पाल, पूर्व नगर आयुक्त मानिक दास व साधन पुरकायस्थ, बिप्लब देवनाथ, देवाशीष पुरकायस्थ, गौरा चक्रवर्ती एवं सब्यसाची पुरकायस्थ आदि।
इस मौके पर “बর্ণमालार রোद्दুর” नामक एक विशेष स्मारिका का भी विमोचन किया गया, जो भाषाशहीद दिवस (19 मई) की स्मृति में प्रकाशित की गई थी। इसे उपस्थित सभी लोगों के बीच वितरित किया गया।
विधायक चक्रवर्ती ने अपने संबोधन में कहा:
“मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हमें अपनी भाषा और संस्कृति के ध्वज को ऊँचा उठाकर रखना है। मातृभाषा सिर्फ एक माध्यम नहीं, बल्कि हमारी आत्मा है। हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम करना और दूसरों को भी सिखाना होगा कि सभी भाषाओं का सम्मान करें।”
उन्होंने यह भी दोहराया कि बांग्ला एक मधुर, सजीव और मातृदुग्ध जैसी भाषा है — जिसका कोई विकल्प नहीं हो सकता। यही वह भावना है जो बांगालियों को एकजुट करती है।
शिलचर रेलवे स्टेशन का नाम “भाषा शहीद स्टेशन” किए जाने की मांग अब केवल एक नामकरण की नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भाषाई आत्मसम्मान की प्रतीक बन चुकी है। अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस ऐतिहासिक मांग पर सकारात्मक कार्रवाई करें।




















