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बालम छोटो सो ( लघुकथा)

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श्रीनाथ बंगाल में एक भूसी माल की छोटी सी दुकान करता था। उनके पांचों बेटे कंवारे थे लेकिन कहीं भी रिश्ता नहीं हो रहा था तो एक दिन एक रिश्तेदार ने गरीब लङकी से शादी करवा दी। ईश्वर की दया से इंद्र चंद एवं रूपा के तीन बच्चे हो गये वहीं तीन देवरों की भी शादी हो गयी। छोटा देवर बालचंद बङी भाभी रुपा के बच्चों के साथ साथ पल रहा था। रुपा भी अपने बच्चों के साथ नहलाती दुलार करती‌। बालचंद दस का हो गया तो एक दिन भागते भागते स्कूल से आया व चिल्लाने लगा कि इंद्र भैया को किसी ने मार दिया लाश लेकर लोग आ रहें हैं। गाँव में मातम छा गया।   पगङी रश्म में रिश्तेदारों ने पंचायत में ही फैसला कर लिया कि बालचंद की शादी रुपा से की जायेगी। रुपा ने विरोध किया कि कहाँ मैं तीन बच्चों की माँ कहाँ यह छोटा सा बालक लेकिन फैसला अंतिम मान लिया गया। रुपा ने शादी तो देवर बालचंद से करली लेकिन उसको पति मानने में बहुत साल लग गए। तीनों बच्चे भी पिताजी कहना शुरू कर दिया। एक समय आया कि रुपा एवं बालचंद के भी दो बच्चे हो गये। बङी सयानी बेटी कदम की शादी में रुपा बालचंद ने कन्या दान किया तो एक रिश्तेदार ने हंसकर पुछ लिया कि कदम की माँ तो ठीक है लेकिन इसके पिताजी तो ऐसे लग रहें हैं कि इसके भाई हो। रुपा बिफर पङी कि सामाजिक परंपराओं को तोड़ कर मैं  आज से वो काम करूंगी जो आज तक आप लोग नहीं कर पाये। ( मेरे उपन्यास,, बालम छोटो सो,, का एक अंश लघुकथा के रूप में प्रस्तुत है जो कभी तक छपा नहीं है। उस समय की बेङियां आज स्वत ही टूट रही है।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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