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बिनणी ( लघुकथा)

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धन्या अपर्णा देवी जयसिंह के पांव छु कर आशीर्वाद लिया तो धन्या बोली दादी पहचाना नहीं मैं आपकी धन्नू तो अपर्णा बोली बिनणी तु विदेशी शिक्षा लेकर मेरे पोते शुक्र के साथ वैज्ञानिक बनकर आई हो। हम उतराखंड के तुम्हारे माँ बाप मुबंई के मराठी तो भला तुझे कैसे पहचान सकती हुं। शुक्र ने इसारा किया तो नवनवेली बिनणी को नृत्य गीत एवं सामाजिक परंपरा के साथ होटल में ही ग्रहप्रवेश करवाया। शुक्र ने धन्या को समझाया कि यह प्रेम विवाह है किसी तरह मैंने इनको राजी कर लिया लेकिन अतीत हमारे जीवन को भयभीत नहीं करे इसलिए उचित अवसर तक चुप्पी साध लेने में ही भलाई है। दो तीन दिन बाद सिंगापुर में चले गए।  जब सोम की शादी के समय देहरादून में सब इक्कठे हुए तो शुक्र एवं धन्या भी अपने परिवार के साथ मस्ती में मशगूल थे कि अचानक धन्या के पिताजी पुलिस के साथ आकर शुक्र के पिता दयानंद चाचा शोभानंद को गिरफ्तार करवा लिया। शादी में मातम छा गया। शुक्र ने पांव पकङ कर अपने ससुर से अतीत के पन्नों को ना खोलने का आग्रह किया। राम प्रसाद इतने बड़े उद्योगपति होने के साथ ही धार्मिक व्यक्ति थे इसलिए सुदर्शन जंवाई एवं बेटी के अनुनय विनय के बाद पुलिस को लौटा दिया। शादी के बाद पुराने इतिहास के पन्ने खोलने लगे कि दयानंद एवं शोभानंद डेढ़ करोड़ रुपये लेकर उन्नीस साल पहले भागे थे तो वो सारी रकम ब्याज सहित चाहिए वरना सबको जेल में सङना पङेगा। अपर्णा ने हाथ जोड़कर कहा कि यह आज भी संभव नहीं है। तो धन्या बिनणी बोली कि पापाजी आप मेरी शादी में पांच करोड़ खर्च करना चाहते थे तो आप यह समझ लिजीए कि खर्च कर दिया आप हमें आशीर्वाद देने के साथ साथ मेरे ससुर को कर्ज मुक्त कर दिजिए।  रामप्रसाद की दोनों आंखों के साथ दर्जनों आंखों में इतने आंशु बहे कि बाढ मे अतीत गुम हो गया।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653   

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