– मस्तिष्क आघात से वर्ष 2050 तक दुनिया भर में एक करोड़ लोगों की मौत हो सकती है। विश्व स्तर पर मस्तिष्क आघात को लेकर चार अध्ययन सामने आए हैं। विश्व स्ट्रोक संगठन और लैंसेट न्यूरोलॉजी आयोग के सहयोग से किए गए चारों अध्ययनों में कहा गया है कि साल 2020 में स्ट्रोक की वजह से दुनिया में 66 लाख से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक यह संख्या बढ़कर 97 लाख पार कर जाएगी।
गीता यादव, वरिष्ठ पत्रकार
मस्तिष्क आघात दुनिया भर में मौत का दूसरा कारण और विकलांगता का तीसरा प्रमुख कारण है। भारत में हर मिनट तीन लोग मस्तिष्क आघात से पीड़ित होते हैं। कुछ मामलों में आघात के चेतावनी संकेत स्पष्ट हो सकते हैं, लेकिन शरीर के अंदर जो चल रहा है, वह जटिल है। 80 प्रतिशत आघात को रोका जा सकता है, लेकिन एक बार जब मस्तिष्क आघात हो गया तो दोबारा होने की संभावना बढ़ जाती है। बदलती जीवन-शैली लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रही है। देर से सोना, जल्दी जागना, तनाव में रहना, हाइपरटेंशन, अनियमित खान-पान, शराब और स्मोकिंग की वजह से मस्तिष्क आघात के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो हॉस्पिटल के अध्ययन के अनुसार, युवाओं में मस्तिष्क आघात का खतरा पहले से अधिक बढ़ गया है। 35 से 50 आयु वर्ग वाले लोगों में मस्तिष्क आघात के मामले बढ़ रहे हैं, जो काफी चिंताजनक हैं। हालांकि चिकित्सक मानते हैं कि बच्चों सहित सभी उम्र के लोगों को मस्तिष्क आघात होता है, लेकिन उम्र जितनी अधिक होगी, जोखिम उतना ही अधिक होगा।
विख्यात कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. रामगोपाल यादव के मुताबिक, भाग-दौड़ भरी जिंदगी में अधिकांश लोग मस्तिष्क आघात की गंभीरता को नजरअंदाज करते हैं। खासकर गर्मी के मुकाबले सर्दी में इसका खतरा अधिक बढ़ जाता है। अत्यधिक ठंड में होने वाली मौतों का प्रमुख कारण मस्तिष्क आघात और हार्ट अटैक होता है। सर्दियों में शरीर का रक्तचाप बढ़ता है, जिसके कारण रक्त धमनियों में क्लॉटिंग होने से मस्तिष्क आघात का खतरा बढ़ जाता है। मस्तिष्क आघात का एक प्रमुख कारण रक्तचाप है। रक्तचाप अधिक होने पर मस्तिष्क की धमनी या तो फट सकती है या उसमें रुकावट पैदा हो सकती है। इसके अलावा इस मौसम में रक्त गाढ़ा हो जाता है और उसमें लचीलापन बढ़ जाता है। रक्त की पतली नलिकाएं संकरी हो जाती हैं, जिससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है। अधिक ठंड पड़ने या ठंडे मौसम में अधिक समय तक बाहर रहने पर खासकर उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों की स्थिति अधिक गंभीर हो जाती है।
सर्दियों में अक्सर प्यास कम लगती है और लोग कम पानी पीते हैं, लेकिन यह छोटी सी चूक हमारे जीवन के लिए घातक साबित होती है। दरअसल पानी का सेवन कम करने से डिहाइड्रेशन हो जाता है, जिसके कारण रक्त गाढ़ा हो जाता है और इसका प्रवाह कम या रुक जाता है। यही स्थिति हार्ट अटैक और मस्तिष्क आघात के खतरे को बढ़ा देती है, इसलिए सर्दियों में अधिक मात्रा में पानी और तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-कुछ खाते रहना चाहिए। मस्तिष्क आघात महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक आम है। हालांकि इससे होने वाली सभी मौतों में आधे से अधिक महिलाएं होती हैं। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में भी पुरुषों के समान ही जोखिम होता है। पारिवारिक इतिहास और कुछ आनुवंशिक विकारों से भी मस्तिष्क आघात का खतरा बढ़ जाता है। पिछले आघात का इतिहास दोबारा आघात की संभावना को बढ़ाता है। अन्य जोखिम कारक जैसे हाइपरहोमोसिस्टेनिमिया, ओएसए जैसे नींद संबंधी विकार, कुछ संक्रमण टीआईए का इतिहास भी मस्तिष्क आघात के जोखिम को बढ़ाता है।
सर्द मौसम में मधुमेह, बीपी, कोलेस्ट्रॉल, एनीमिया, माइग्रेन, गर्भवती महिलाओं, जटिल, गंभीर बीमारी का इलाज करा रहे मरीज, 50 वर्ष से अधिक आयु के लोग रोजाना सिगरेट और शराब का सेवन करने वाले लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। मस्तिष्क आघात के लक्षणों को पहचानना भी बहुत जरूरी है। इसमें मरीज का आधा चेहरा सुन्न हो जाता है, मरीज के एक हाथ व पैर में हरकत कम हो जाती है, मरीज को सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है, धीरे-धीरे मरीज को भोजन व पानी निगलने में भी परेशानी होने लगती है। यही नहीं, बिना इच्छा के आंख की हलचल तेज होने लगती है, मरीज चलने-फिरने पर संतुलन नहीं बना पाते हैं और सिर दर्द तेज हो जाता है। ऐसे लक्षण नजर आने पर बिना समय गंवाए मरीज को तुरंत उपचार के लिए अस्पताल ले जाना चाहिए।
मस्तिष्क आघात होने के साढ़े चार घंटे के भीतर यदि मरीज को समुचित उपचार मिलना शुरू हो जाए तो मस्तिष्क की क्षति और संभावित जटिलताओं को कम किया जा सकता है। उसकी रिकवरी जल्दी हो सकती है। मस्तिष्क आघात के मरीजों की सीटी स्कैन जांच कराई जाती है। लक्षण व जांच रिपोर्ट के आधार पर मरीज के इलाज की दिशा तय की जाती है। यदि किसी मामले में ब्लड क्लॉटिंग बन गया है तो इसका इलाज दवा से किया जा सकता है, लेकिन अगर धमनी फटने के कारण दिमाग के किसी हिस्से में खून का थक्का जम जाए तो सर्जरी ही विकल्प है। 85 प्रतिशत मरीजों के दिमाग की नसों में खून का थक्का जमा मिलता है। 15 प्रतिशत मरीजों में दिमाग को खून पहुंचाने वाली नस फटने के लक्षण मिल रहे हैं। मस्तिष्क आघात झेल चुके मरीज को चलने-फिरने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट विभिन्न एक्सरसाइज करवाते हैं। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट व स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट भी चलने और बोलने में मदद करते हैं।
मस्तिष्क आघात से बचने के लिए सबसे पहले हाइपरटेंशन और दिल से जुड़ी बीमारियों को ठीक करना जरूरी है। इसके साथ ही मरीज शराब, सिगरेट से परहेज करें, शरीर में मोटापा न बढ़नें दें, फास्ट फूड से बचें, सब्जियां, अंगूर, एवोकाडो, पालक, बीन्स जैसे पोटेशियम युक्त पदार्थों का सेवन करें। कद्दू के बीज जैसे मैग्नीशियम युक्त खाद्य पदार्थ भी मस्तिष्क आघात से बचाव में सहायक होते हैं। भोजन में नमक की मात्रा सीमित रखें। सर्दियों में धूप की कमी होने से स्ट्रेस और डिप्रेशन बढ़ने का खतरा बहुत अधिक रहता है। सर्दियों में धूप न निकलने की वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी होने लगती है और आघात का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में विटामिन डी से भरपूर आहार दूध, अंडे, मछली, सोया का सेवन करें।
सर्दियों में फिजिकल एक्टिविटी में भी कमी आने लगती है, इसलिए सर्दियों में रोजाना योग और प्राणायाम करें, एक्सरसाइज करें। कम से कम 20 मिनट का वॉक जरूर करें। कड़ाके की ठंड में नंगे पैर घास में चलने से परहेज करें, बुजुर्ग बिना जरूरत घर से बाहर न निकलें, लेकिन घर में ही व्यायाम अवश्य करें, यह शरीर को गर्म रखने में मदद करेगा। ब्लड प्रेशर नियमित चेक कराएं, कोलेस्ट्रोल नियंत्रित रखें, अचानक बिना गर्म कपड़ों के कमरे से बाहर न निकलें। मस्तिष्क आघात आने पर सबसे जरूरी है पीड़ित को फिर से पहले की तरह आम दिनचर्या में आने के लिए प्रेरित करें। इसके लिए कुछ विशेष बातों को जीवन में शामिल करना जरूरी है। कुछ सामान्य सी बातों-उपायों को ध्यान में रखकर इसके खतरे से बचा जा सकता है।
गीता यादव
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