फॉलो करें

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१६– आनंद शास्त्री

33 Views

प्रिय मित्रों ! मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र का सोलहवां सूत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ-आप सबके ह्यदय में स्थित मेरे प्रिय श्री कृष्ण जी के चरणों में इसके इस सूत्र-पुष्प को चढा रहा हूँ,यहाँ कहते हैं कि-
“पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्य:।।१६।।”
पूजा आदि में अनुराग भक्ति है, ऐसा पाराशर (वेद व्यास जी) कहते हैं ।।
इस सूत्र की ब्याख्या से कुछ मान्यताऐं क्षुब्ध हो सकती हैं,तथापि सत्य तो सत्य ही होता है ! हो सकता है कि देश-काल-परीस्थिति-संयोग के अनुसार उसमें परिमार्जन की आवश्यकता पड़ती हो,किंतु ! उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
भगवद् श्री विगृह की पूजा अर्चना व्रतादि में स्नेह ! अर्थात कर्म-काण्डादि में विश्वास और अनुराग भी भक्ति है-यह महर्षि पाराशर का मत है, मै एक बात स्पष्ट कर दूँ कि कुछ लोग इस सुत्र का मिथ्या आश्रय लेकर मूर्ती पूजा व्रत नियम इत्यादि का विरोध करते हैं ! किंतु श्रुति का ऐसा भृमित करने वाला अर्थ लगाना उचित नहीं है।
मित्रों ! मुझे रहने हेतु मेरे प्रियजी ने जो झोपड़ी,भवन अथवा हवेली दी है ! मैं उसमें द्वितीय तल पर रहता हूँ-मान लेता हूँ कि मुझे अपने देवालय में आने हेतु १८ सीढियाँ चढनी पड़ती हैं-”
मैं इन्हीं सीढियों पर चढकर ऊपर आया_हूँ और इन्ही सीढियों पर चढकर अन्य लोग भी ऊपर आते हैं !” कल मेरे बाद भी ये सीढियाँ तो रहेंगी ही–ताकि इसके द्वारा अन्य लोग उपर तक आ सकें,पर ! अगर मैं ऊपर आ कर इन सीढियों को ही तोड़ दूँ तो ?
मैं नही जानता कि मूर्ती पूजा करनी चाहिये या नहीं, पर अपने पूर्वजों या गुरुजनोंकी पूजा तो आर्य-समाजी भी करते हैं ? कब्रों,मस्जिद,मजारों और चर्च में भी तो किसी न किसीकी बंदगी ही  करते हैं ! अतः मेरा उद्रेश्य किसी समुदाय विशेष का विरोध न होकर सत्य-अर्थ-का प्रकाश मात्र है।
यज्ञ,दान,तप,पूजा, वृत,तीर्थ-यात्रा इत्यादि मेरे प्रिय के आवास की सीढीयाँ हैं,और कोई भी ज्ञानी इन सीढियोंको तोडनेका प्रयास नहीं करता,मित्रों ! यदि कोई स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त कर ले ! तो क्या वह प्राथमिक कक्षा की पुस्तकों को नष्ट कर देगा ?
नारद जी का अभिप्राय भी यही है कि भगवान श्री वेदव्यास जी ने जो पूजा इत्यादी बतायी है ! कि वही सच्ची भक्ति है ! तो उनका अभिप्राय है कि वह भक्ति प्राप्ति हेतु सर्वोत्कृष्ठ संसाधन हैं ! मैं जब १५\१६ साल का था तो आश्रम में निवास और गुरु माँ के प्यार से काफी अभिमानी हो गया था,और वेदांत की दो- चार पुस्तकें पढकर मूर्ति पूजा यज्ञादि कर्म-काण्डों को बकवास कहने लगा था।
हाँ देव ! मुझपर विवेक-चूडामणि,ब्रम्हसूत्र,सांख्य-दर्शन,शाड़्कर  दिग्विजय,सत्यार्थ- प्रकाश,दृग-दृश्य-विवेक के पढे हुवे आधे-अधूरे ज्ञान का भूत सवार था ! मेरे बड़े गुरु तूल्य गुरु भाई “निर्मलानंद सरस्वती “जी से मैं एक बार उलझ गया ! उन्होंने बड़े प्यार से मेरे सर को सहला कर कहा कि बेटा-“विवेक-चूणामणी, शाड़्कर-दिग्विजय के लेखक श्रीशड़्कराचार्यजी ने द्वादस ज्योतिर्लिड़्गों, शक्ति -पीठों, लगभग १७०० देवालयों और सौन्दर्य लहरी जैसे २००० से भी अधिक दिव्य स्तोत्रों की आखिर स्थापना और रचना क्यों कि ?
अतः वेदांत-दर्शनादि वेदांत-योग- भक्ति आदि सभी प्रकार के गृंथों के शिल्पी वेदब्यास जी के पिता पाराशर का सम्बोधन देकर नारद जी का यह संदेश भी हो सकता है कि अनेक वर्षों तक घोर तप और पूजन करने के बाद भी दृढ-निश्चयात्मक बुद्धि के अभाव में वह-“मत्स्यगंधा पर मोहित हो गये थे !” पूजनादि करना अलग है,किंतु उसमें अनुराग होना,उसके प्रति विशुद्ध भावाभिव्यक्ति श्रद्धा का होना बिल्कुल ही पृथक् विषय है ! पूजा तथा अनुरागके संदर्भ में एक अद्भुत कथा आपको सुनाता हूँ,श्रीमद्भा० १०•२३•३४• में कहते हैं कि- महारास की रात्रि-बेला में एक ब्राम्हणीको उसके पती ने बाँध कर रख दिया।
तो उसने मन ही मन अपने द्वारा सुने गये स्यामसुँदरजी के रूप-माधूर्यका स्मरण करते हुवे ! उनका भाव-जगत् में आलिड़्गन करते हुवे अपने प्राण तत्काल त्याग दिये ! वही ब्राम्हणी कालान्तर में -“चित्रा सखी_दासी”-“मीराबाईके”रूप में अवतरित हुयीं-
“तत्रैका विधृता भर्त्रा भगवन्तं यथाश्रुतम्।
ह्रदोपगुह्य विजहौ देहं कर्मा नुबन्धनम्।।”
हाँ मित्रों ! यही अनुराग स्वरूपा भक्ति है, भक्ति-सूत्र का ! शेष अगले अंक में……..भक्तिसूत्र के अगले अंक के साथ पुनश्च उपस्थित होता हूँ  …-आनंद शास्त्री….सचल दूरभाष क्रमांक ६९०१३७५९७१

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल