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– डा. सुजीत तिवारी
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर एक विलक्षण और अप्रतिम प्रतिभा के धनी होने के साथ-साथ एक बहुआयामी व्यक्तित्व के अधिकारी मनीषी थे। वे एक ही साथ महान साहित्यकार, समाज सुधारक, दार्शनिक, कलाकार एवं संस्थाओं के निर्माता भी थे। वह एक स्वप्न दृष्टा थे जिन्होंने भारत वर्ष के लिए अपने सपनों को साकार करने के लिए अनवरत कर्म योगी की तरह कार्यरत रहे। उनकी कालजयी प्रसिद्धि और रचनाओं से पराधीनता में भी भारतीयों में आत्मसम्मान का भाव पुनर: जागृत हुआ था।
गुरुदेव की उपाधि से विभूषित रविंद्र नाथ टैगोर को भले ही औपचारिक शिक्षा नाम मात्र की मिली थी पर अपने घर के शैक्षिक परिवेश में उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, संगीत, दर्शन, चित्रकला आदि कई विधाओं में श्रेष्ठता प्राप्त किया था।उनके विशाल व्यक्तित्व को राष्ट्र की सीमाएं कदापि बांध नहीं पाई, वे एक विश्व नागरिक थे, उनका शिक्षा, दर्शन संपूर्ण वसुधा के संरक्षण एवं विकास के लिए मार्गदर्शक साबित हुआ।
गुरुदेव का जीवन दर्शन प्राचीन ऋषियों की तरह ही पवित्र और व्यापक था । उनका जीवन दर्शन उपनिषदों के गहन चिंतन मनन से विकसित हुआ था और इसी से वे सच में विश्व बोध की भावना से ओतप्रोत थे। वे वसुधैव कुटुंबकम् के साक्षात स्वरूप थे, जो संपूर्ण जीव जगत में ईश्वर सत्ता को महसूस करते थे। गुरुदेव को मानव मात्र की कल्याण से ईश्वर सेवा में अनंत विश्वास था। उनके के जीवन दर्शन में करुणा का महत्वपूर्ण स्थान रहा था और वह भारतीयों की गरीबी से अत्यधिक द्रवित हो गए थे जिसका की उनकी जीवन दृष्टि पर एक व्यापक प्रभाव रहा था। दूसरी ओर अंधविश्वास तथा को संस्कारों को दूर कर मानव की निर्णय लेने एवं उसे क्रियान्वित करने की इच्छा शक्ति पर उनका दृढ़ विश्वास था। साथ ही दकियानूसी और गलत विचारों से वह समाज को सदैव मुक्त देखना चाहते थे।
गुरुदेव भारतीय ग्रामीण जीवन एवं संस्कृति का पुनरुत्थान चाहते थे 1905 में उन्होंने “स्वदेश समाज” नाम से एक निबंध में कृषि, शिल्प, ग्रामउद्योग आदि के पुनर्विकास पर जोर दिया था अर्थात आज के शब्दों में उन्होंने भारत के आत्मनिर्भरता का सपना देखा था । आत्मनिर्भर ही नहीं स्वप्रबंधित समाज के निर्माण पर उन्होंने अत्यधिक बल दिया था। वे उन महान शिक्षा शास्त्रियों में से थे जिन्होंने न सिर्फ शिक्षा के दार्शनिक अपितु वास्तव रूप देने वाले विधाओं को भी स्वयं स्वरूप दिया । साथ ही साथ अनेको विश्वस्तरीय शिक्षा संस्थान के स्थापन भी किया उनमें से शांतिनिकेतन, शिक्षा सत्र, श्रीनिकेतन विश्व भारती आदि के नाम सदैव उल्लिखित होते रहेंगे।
आज के राजनीतिक परिपेक्ष में अलग अलग राजनीतिक पार्टियां जब अपने तौर पर महापुरुषों का कथन का व्याख्यान करते हैं उस स्थान पर गुरुदेव एक ऐसे मनीषी थे जिनका की संपूर्ण वर्णन बहुत ही असाध्य प्रतीत होता है।
गुरुदेव ने ऐसी देश और समाज की कल्पना की थी जहां “ चित्त भय से शून्य हो,
जहां हम गर्व से मस्तक ऊंचा करके चल सके,
जहां ज्ञान मुक्त हो और जहां दिन-रात विशाल बसुधा को खंडों में विभाजित कर और छोटे-छोटे आंगन न बनाए जाते हो….”
आज हम सोचने पर विवश हैं कि कहां तक हम गुरुदेव के सपने को साकार कर पाए हैं ? आज जब बंगाल।की धरती पर ही छोटे-छोटे राजनीतिक मुद्दों तथा भावनाओं को व्यक्त करने पर लोगों को सताया जा रहा है , घरों से निकाल दिया जा रहा है हिंसायें हो रही है, हमें पुनः अवलोकन करना चाहिए और गुरुदेव के दिखाएं रास्तों पर चलकर भारतवर्ष को सचमुच में पुनः एक बार विश्व गुरु बनाने के पथ पर आगे बढ़ाना चाहिए यही गुरुदेव को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।