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भविष्योन्मुखी बजट— डॉ. अभिषेक कुमार पाण्डेय

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मोदी सरकार का ये बजट 2024-2025, भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत आर्थिक भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावशाली कदम माना जाना चाहिए। जैसा कि लोगो ने एक लोकलुभावन बजट की उम्मीद की थी पर वैसा कुछ भी नहीं हुआ खास कर वेतनभोगी एवं उद्योगपति वर्ग में कर राहत को लेकर कुछ उम्मीद की गई थी। हालांकी ये एक अंतरिम बजट है लेकिन इसमें एक सशक्त भविष्य की आधारशिला रखी गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार की तरफ से संकेत दिया है कि राजनीति शास्त्र कभी भी अर्थशास्त्र पर भारी नहीं पड़ेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था को परफॉर्म, रिफार्म एवं ट्रांसफोर्म की आत्मा के सर्वांगीण एवं समग्र विकास के लक्ष्य को पूरा किया गया है। सरकार की तारीफ करनी चाहिए कि भविष्यमुखी बजट का आधार बताते हुए पिछले 10 साल की उपलब्धियों का विवरण भी देश के सामने रखा है। सुखद अहसास है कि आधारभूत संरचना पर 11.11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गई है, जो निश्चित रूप से प्रभावी मांग को बढ़ाकर उत्पादन और नए रोजगार के अवसर का सृजन करेगा। इसी क्रम में तीन बड़े रेलवे कोरिडोर को बनाना, 40000 रेल बोगियों को वंदे भारत से जोड़ना, राज्यों में पर्यटन हेतु पर्यटन केंद्र विकसित करना निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ायेंगे. प्रधानमंत्री आवास योजना में 2 करोड़ नए घर बनाना, लखपति दीदी योजना जैसी योजना की निश्चित रूप से खुलकार तारीफ की जानी चाहिए खासकर 9 वर्ष से 14 वर्ष की बालिकाओ के सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन योजना आत्मनिर्भर भारत और लांगिक समानता के दावे को मजबूत करता है।
इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों को प्रोत्साहन देने के लिए ऊर्जा संरक्षण की स्थापना की गई है, जो की विकास दर को प्रोत्साहन देने के लिए सक्षम है, लेकिन इनके लिए फंड का जिक्र नहीं किया गया है।
अंतरिम बजट का एक निराशाजनक पहलु यह भी है कि इसमे नौकरीपेशा, बेरोजगारी विद्यार्थी, एवं मध्यम वर्ग को प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है।
नौकरीपेशा वर्ग के लिए कर स्लैब में कोई परिवर्तन ना होना, बेरोजगारी के लिए रोजगार के लिए कोई नवीन उद्योग का ना होना, विद्यार्थियों के लिए नई शिक्षा नीति के उत्पादान के रूप में निकले बाजार और सरकार की नौकरियों में प्रवेश पर प्रश्न होना, सम्‍मान निधि वा फसल बीमा योजना और अनुदान की कोई बात नहीं होने का संकेत देता है कि ये काम चालू और अंतरिम बजट ही है।
राजकोषीय एवं वित्तोय घाटे के पहलू से निश्चित रूप से समस्या चिंताजनक है।आज भी एक रुपये में 28 पैसे का उधार और अन्य देयताओ से आना अर्थव्यवस्था पर अर्थिक बोझ बढ़ा रही है। इसके उपाय के लिए संसाधनो के स्रोत को निश्चित रूप से बढ़ाना एवं नए साधनों की खोज पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
यदि हम 2047 तक विकसित भारत बनाना चाहते हैं तो आंतरिक साधनो विशेष श्रम साधनों को गति देना देना, नए बाजार, नई मंडियां स्थापित करना और ग्रामीण विकास पर बल देना होगा जिसका पूर्ण बजट में होना अपेक्षित है।

डॉ. अभिषेक कुमार पाण्डेय
पी. जी.टी अर्थशास्त्र
केन्द्रीय विद्यालय, अर्जनगढ़ नई दिल्ली

 

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