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गुस्से में अक्सर हर व्यक्ति के मुंह से ये शब्द निकल जाता है। सबका तो पता नहीं लेकिन मेरी कमजोरी है क्योकि मेरे मुँह से तो अक्सर निकल जाता है। जब कोई गुस्सा हो जाता है तब उसे कहती हूं कि अरे! भाड़ में जावो मतलब भाड़ में भुनाने जावो !
भाड़ के अंदर आग में मत जावो ,लेकिन समझने वाले तो समझ ही जाते हैं।
भाड़ मतलब मिट्टी और मिट्टी के बर्तनों से बना हुआ वो पारंपरिक ओवन जिसमे भुनने का कार्य होता है। जो भुनने का काम करता है उसे गांव में भूज कहते हैं। भूज जाति के लोगो का भाड़ चलाना, चिवड़ा कूटना जैसे पारंपरिक कार्य ही आय का स्रोत होते हैं।
पहले के समय में लगभग हर गांव में एक भड़भूज होता था जिसके यहाँ गांव के बच्चे, बूढ़े चना, चावल, मक्का, मटर इत्यादि भुनाने के लिए लाते थे। ताजा गन्ने का रस जिसमे दही डालकर शर्बत बनाया जाता था उसे सिखरन कहते हैं। सिखरन के साथ इन्ही भूने भुजे और तीखे चटपटे मसालेदार नमक के साथ मस्त देशी नाश्ता हर घर में किया जाता था। ताजा ताजा भुने मक्की, चने, मटर के भुजे का स्वाद स्वर्गिक होता था।
गर्मियों में सात प्रकार के मोटे अनाज को लोग भाड़ में भुनवा कर पिसवा लेते हैं इन सातों अनाज के मिश्रण से बने आटे को सत्तू कहा जाता है। सत्तू का क्या उपयोग होता है मेरे ख्याल से मुझे बताने की जरूरत नहीं है।
भड़भूज इन सब अनाजों को भुनने के बदले में उन्ही अनाजों का कुछ हिस्सा अपने पास अपने मेहनताने के रूप में रख लेता था।
सुबह सुबह भड़भूजे के भाड़ से भुने अनाजों से उठने वाली खुश्बू से जिभ्या लपलप करने लगती थी न चाहते हुए भी अनाज लेकर लोग भाड़ में पहुँच जाया करते थे।
मेरे प्रायमरी स्कूल के परिसर में एक भाड़ था हम सब घर से रुमाल में बांधकर मक्की के दाने ले जाते थे और भुनाते थे दोपहर की छुट्टी में वही हमारा लंच होता था। जिस दिन अनाज ले जाना भूल जाते थे उस दिन एक रुपया ले जाते थे भुजइन काकी एक कलछुल अनाज भुज देती थी जिससे हम सब का पेट भर जाता था।
भाड़ में भूजा भुजाने जावो तो भुजइन काकी भाड़ में पत्तियां झोंकने का काम करवाती थी जिसके अनाज को भुजने की बारी होती थी वो तब तक सूखी पत्तियां भाड़ में झोंकता था जिससे आग जलती थी और भूजा बनता था।
अब तो इस पॉपकॉर्न के जमाने में भाड़ लगभग लुप्तप्राय हो रहे हैं लेकिन जो स्वाद भाड़ में भुने भुजे का होता है वो आजकल के पॉपकॉर्न में कहां मिलेगा।
साभार फेसबुक