प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख “भारतीय मुद्रा” विषय पर केंद्रित है, जो सिक्कों के निर्माण और उनके ऐतिहासिक उपयोग को दर्शाता है। इसमें बताया गया है कि धातुओं के प्रयोग के कारण उनका मूल्य बढ़ा और धीरे-धीरे वे मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होने लगीं। पहले तांबा, फिर चांदी और सोना प्रमुख सिक्कों के रूप में प्रयुक्त हुए। सिक्कों पर मुहर लगाई जाती थी, जिससे उनकी प्रामाणिकता साबित होती थी।
बीजशब्द– मुद्रा, सिक्के, कर्षापंस, पंचमार्क, सोना, चांदी, तांबा, कांस्य, मुहर
भारत में मुद्राओं का इतिहास
सिक्के मुख्य रूप से व्यापार, खरीद-फरोख्त, कर भुगतान और राज्य की प्रशासनिक गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाते थे। अलग-अलग धातुओं के सिक्कों का मूल्य भी अलग होता था। प्राचीन भारत में सिक्का प्रणाली महाजनपद काल से प्रचलित थीऔर विभिन्न राज्यों ने अपनी मुद्राएं चलाईं। पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लोहे और चांदी के सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। बाद में, मध्यकाल में मुस्लिम शासकों और 19वीं सदी में ब्रिटिश राज के दौरान सिक्का प्रणाली में और विकास हुआ।
हिमांशु प्रभा रे ने अपनी पुस्तक ‘भारत में सिक्के’ में बताया है कि भारत में सबसे पहले पंच-मार्क वाले सिक्के 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में महाजनपद काल में प्रचलित हुए। ये चांदी के बने होते थे और विभिन्न क्षेत्रों में इनकी अलग-अलग आकृतियाँ थीं। इनका निर्माण कटाई और फिर किनारों को समतल करने की प्रक्रिया द्वारा आकार दिया जाता था।इसके अलावा, इसमें तांबे के सिक्कों का भी उल्लेख है, जिनमें कुछ छिद्रित सिक्के भी थे। यह संकेत मिलता है कि छिद्रित सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्कों में से हो सकते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार, भारत में “डाई-स्ट्रक” (ढाले गए) सिक्कों का प्रचलन मौर्य काल में शुरू हुआ था।1
इस पुस्तक मेंउन्होंने350-315 ईसा पूर्व के कुरुष (कुरुक्षेत्र) क्षेत्र के सिक्कों की छवि भी दी गई है, जो उस समय की मुद्रा प्रणाली को दर्शाती है।
प्राचीन सिक्के (600 ईसा पूर्व – 300 ईसा पूर्व)
वैदिक काल में भारत में जिन सिक्कों का प्रयोग किया जाता था उनमें बहुमूल्य धातुओं से इनका निर्माण किया जाता है। कई व्यापक शोधों से इस बात का प्रमाण मिला है कि इनमें सोने तथा चांदी के धातुओं का प्रयोग सर्वाधिक था। साथ ही कांस्य धातु का भी प्रयोग होता था। कुछ ग्रंथों में इसका भी उल्लेख मिला है कि पशुओं को सोने के पंडो से सुसज्जित किया जाता रहा है। जागरण जोश में छपे एक आलेख के अनुसार भारत में 3000 वर्षों से सोने-चांदी के सिक्कों का प्रचलन रहा है। इस लेख में कहा गया है कि ‘6 वीं शताव्दी ईसा पूर्व में प्राचीन भारत में सिरका में सिक्कों की सबसे पहली शुरूआत हुई थी। उस समय से, सिक्के को पैसे का सबसे सार्वभौमिक अवतार माना जाने लगा था। सबसे पहले सिक्के इलेक्ट्रम से बने होते थे, जो सोने और चाँदी के स्वाभाविक रूप से होने वाले पीले रंग का मिश्रण थे जिसे चांदी और तांबा के साथ फिर से मिश्रित करके बनाया जाता था।’2 इसी प्रकार धीरे-धीरे कालक्रम में भारतीय मुद्राओं की बनावट में कई बार परिवर्तन भी आ चुके हैं जिनके बारे में रसायनिक शोधों से पता चलाया गया है।
भारत में पहले सिक्के 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में महाजनपदों द्वारा जारी किए गए थे। इन्हें आधिकारिक सिक्कों के रूप में माना जा सकता है। इनकी पहचान तथा मान्यता शायद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी रही होगी। भारत में ये महाजनपदीय सिक्के सभी जगह चलते रहे हैं। छठी शताब्दी में महाजनपदों द्वारा जारी सिक्कों को पंचमार्क सिक्के कहा जाता है जो कि चांदी या तांबे से बने होते थे तथा उनपर विभिन्न चिह्न होते थे। पंच-मार्क सिक्के मुख्य रूप से चांदी के होते थे और उनका उपयोग विभिन्न महाजनपदों में किया जाता था।इन सिक्कों पर विशिष्ट चिह्न होते थे, जो विभिन्न प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते थे। निम्नलिखित में सिक्कों के आविर्भाव काल, प्रचलन, तथा उनके प्रकार कुछ इस प्रकार है:-
स्वर्ण और के स्वर्ण सिक्के (4वीं शताब्दी ईसा पूर्व – 1700 ई.)
तक्षशिला क्वार्टर स्वर्ण सिक्का 185-170 ईसा पू
गांधार में तांबे सिक्कों की खोज की गई, जो 185-170 ईसा पूर्व के हैं।
गांधार से प्राप्त तांबे का सिक्का , लगभग 304-232 ई.पू.
मौर्य काल में पंच-मार्क चांदी के सिक्के प्रचलित थे।
मौर्य साम्राज्य का सिक्का। लगभग चौथी-दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का।
कुषाण और हूण काल में तांबे और चांदी के सिक्के प्रचलन में आए, जिनमें देवताओं और राजाओं के चित्र अंकित होते थे।
भारत के कुषाण राजवंश के सम्राट कनिष्क का एक तांबे सिक्का।
भारत के कुषाण राजवंश के सम्राट कनिष्क का एक स्वर्ण सिक्का।
गुप्त काल में स्वर्ण सिक्कों का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ।
एक चौलुक्य – परमार सिक्का, लगभग 950-1050 ई.
चोल साम्राज्य के सिक्कों में राजा की आकृति और नागरी लिपि में लेख होते थे।
उत्तम चोल का एक प्रारंभिक चांदी का सिक्का जिसमें चोल का बाघ प्रतीक और नागरी लिपि दिखाई गई है
दक्षिण भारत में तांबे और चांदी के सिक्कों का प्रचलन अधिक था।
गंगा राजवंश का दक्षिण भारतीय सिक्का
मराठा साम्राज्य (1674 ई. और आगे)।मराठा शासन के दौरान जारी सिक्कों पर ‘उदगीर ताल’ और अन्य लिखावट अंकित होती थी।इन सिक्कों में हिंदू प्रतीकों और धार्मिक चिह्नों का समावेश था।
मराठा साम्राज्य, छत्रपति शिवाजी, स्वर्ण सिक्का, 1674-80 ई
उपरोक्त बिन्दुओं से पता चलता है कि किस प्रकार प्राचीन काल से सिक्के अलग-अलग समय तथा राज्यों में अपने आकार में परिवर्तित होते रहे हैं तथा इनमें धातुओं के प्रयोग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है। परन्तु इतना कहा जा सकता है कि इन सिक्कों में छपने वाले चित्र तथा चिह्न में परिवर्तन अवश्य हुआ है। आगे हम निम्नलिखित बिन्दु में भारतीय मुद्राओं की अलग-अलग काल में कुछ विशेषताओं के बारे में जानेंगे जो कि इस प्रकार है।
प्राचीन काल – इसमें मौर्य साम्राज्य, कुषाण साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य के सिक्कों का विवरण दिया गया है। मौर्यकाल में पंचमार्क चांदी के सिक्के प्रचलित थे, जबकि गुप्त काल में सोने के सिक्कों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया।
प्राचीन पंच मार्क सिक्का गांधार महाजनपद बेंट बार सिल्वर 1 शतमान यूएलएस
मध्यकाल – इसमें चोल साम्राज्य और दक्षिण भारत के अन्य राजवंशों के सिक्कों का वर्णन किया गया है। चोल साम्राज्य के सिक्कों पर बाघ प्रतीक और नागरी लिपि में अंकन होता था।
गहड़वाला या गहरवार राजवंश का सिक्का
मुगलएवंमराठाकाल– इस खंड में मराठा साम्राज्य के सिक्कों का विवरण दिया गया है, जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में जारी किए गए स्वर्ण सिक्के भी शामिल हैं। मराठा सिक्कों पर संस्कृत और देवनागरी लिपि में अंकित लेखन पाया जाता है।
मुगल अकबर मोहर दर उस सल्तनत लाहौर टकसाल सोने का सिक्का
आधुनिककाल – इसमें ब्रिटिश शासन, स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत के सिक्कों का वर्णन किया गया है। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया और उसी के चित्र वाले सिक्के जारी किए गए।
ब्रिटिश इंडिया 1/2 अन्ना जॉर्ज VI 1946-1947
भारत 1 रुपया 1950
निष्कर्ष
भारतीय मुद्रा प्रणाली का विकास प्राचीन काल से आधुनिक युग तक विभिन्न चरणों में हुआ। प्रारंभ में पंच-मार्क सिक्के प्रचलित थे, जिन्हें महाजनपद और मौर्य साम्राज्य ने अपनाया। कुषाण और गुप्त काल में सोने और तांबे के सिक्कों पर राजाओं और देवताओं की छवियां अंकित की गईं। चोल और मराठा साम्राज्य में विशिष्ट प्रतीकों और देवनागरी लिपि में अंकित सिक्के जारी किए गए। ब्रिटिश शासन में सम्राटों की छवियों वाले सिक्के प्रचलित हुए, जो स्वतंत्रता के बाद भी कुछ समय तक जारी रहे। 1950 में भारत गणराज्य बनने के बाद अशोक स्तंभ वाले नए सिक्के जारी किए गए, और समय-समय पर विशेष अवसरों के लिए स्मारक सिक्के भी जारी किए गए।
संदर्भ
भारत के सिक्के-हिमांशु प्रभा रे-2006, मार्ग फांउडेशन प्रकाशन
History of Gold and Silver Coins-शिखा गोयल, पत्रकार, जागरण जोश, तिथि -17 सितंबर, 2018
विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन एवं द्रष्टव्य — एस.के. धवलिकर, हरमन कुल्के, राधाकुमुद मुखर्जी, बी.एन. मुखर्जी, पी.सी. प्रसाद, डी.जी. सेलबट्ट, ए.एन. श्रीवास्तव, सी.एल. सत्यव्रत और बी.आर. हिमांशु द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन।
Shrishgouda N Honnagoudar
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