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वेस्ट कामेंग, अरुणाचल प्रदेश, 24 मार्च: केन्द्रीय हिमालयीय संस्कृति शिक्षण संस्थान, वेस्ट कामेंग, अरुणाचल प्रदेश में तेरवहा छोना गोन्तसे रिनपोछे की स्मृति में आयोजित द्वि-दिवसीय व्याख्यान माला में कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय, नलबाड़ी (असम) के सर्वदर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत कुमार तिवारी ने “भारतीय संस्कृति में बौद्ध दर्शन का प्रभाव” विषय पर गहन एवं प्राञ्जल व्याख्यान प्रस्तुत किया।
अपने उद्बोधन में डॉ. तिवारी ने भारतीय संस्कृति पर बौद्ध दर्शन के बहुआयामी प्रभावों को ऐतिहासिक, दार्शनिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में विस्तृत रूप से प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि बौद्ध दर्शन ने भारतीय समाज को अहिंसा, करुणा, समता एवं सहिष्णुता जैसे उच्च नैतिक मूल्यों की ओर उन्मुख किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति को न केवल धार्मिक दृष्टि से समृद्ध किया, बल्कि कला, साहित्य, स्थापत्य एवं सामाजिक संरचना को भी नवीन आयाम प्रदान किए।
डॉ. तिवारी ने अपने भाषण में प्रतीत्यसमुत्पाद (सापेक्ष अस्तित्व) और शून्यवाद (निरपेक्षता) जैसे बौद्ध सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए बताया कि इन अवधारणाओं ने भारतीय दार्शनिक विमर्श में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म का प्रभाव केवल वैचारिक जगत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने भारतीय समाज में नैतिक अनुशासन और लोकमंगल की भावना को भी जाग्रत किया।
उन्होंने सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात् उनके शासनकाल में हुए सामाजिक एवं नैतिक सुधारों की भी चर्चा की। डॉ. तिवारी ने बताया कि अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप में अपनाकर समाज में अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता और कल्याणकारी योजनाओं को प्रोत्साहित किया, जिससे भारतीय संस्कृति को नई दिशा मिली।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए डॉ. तिवारी ने कहा कि वर्तमान समय में जब विश्व अनेक संघर्षों एवं तनावों से जूझ रहा है, तब बौद्ध धर्म का अहिंसा, करुणा एवं समभाव का संदेश वैश्विक शांति की स्थापना में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
अपने सारगर्भित व्याख्यान के अंत में डॉ. रणजीत कुमार तिवारी ने इस महत्वपूर्ण व्याख्यान माला में सहभागिता का अवसर प्रदान करने हेतु संस्थान के निर्देशक डॉ. गुरमेत दोर्जे सहित समस्त आयोजन समिति के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह मंच न केवल ज्ञान-विनिमय का माध्यम है, बल्कि विभिन्न विचारधाराओं को समीप लाकर एक समावेशी संवाद की संस्कृति को भी प्रोत्साहित करता है।
व्याख्यान के उपरांत आयोजित प्रश्नोत्तर सत्र में छात्र-छात्राओं ने अत्यंत उत्साहपूर्वक भाग लिया। डॉ. तिवारी ने उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए बौद्ध दर्शन की दार्शनिक गहराई एवं सांस्कृतिक योगदान को सरल एवं प्रासंगिक रूप में प्रस्तुत किया।
डॉ. रणजीत कुमार तिवारी का यह विद्वत्तापूर्ण एवं ओजस्वी व्याख्यान भारतीय संस्कृति में बौद्ध दर्शन की महत्ता को समझने में एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ। उनकी गहन अंतर्दृष्टि और स्पष्ट शैली ने उपस्थित विद्वानों, छात्रों एवं श्रोताओं को बौद्ध दर्शन के विविध पक्षों पर गंभीर चिन्तन के लिए प्रेरित किया।