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“भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी: 21वीं सदी का नया शक्ति समीकरण”— सीमा अग्रवाल

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21वीं सदी में अमेरिका और भारत के बीच संबंध सबसे रणनीतिक और महत्वपूर्ण संबंधों में से एक हैं। अमेरिका भारत को एक अग्रणी वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने और एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में समर्थन करता है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति, स्थिरता, और समृद्धि को बढ़ावा देने में सहायक है।
अमेरिका और भारत ने एक मजबूत रक्षा औद्योगिक सहयोग स्थापित किया है, जो दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण सैन्य क्षमताओं के सह-विकास और सह-उत्पादन के अवसरों की ओर देखता है। इसके साथ ही, भारत और अमेरिका संयुक्त राष्ट्र, जी20, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान)-संबंधित फोरम, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन जैसे बहुपक्षीय संगठनों और मंचों में घनिष्ठ सहयोग करते हैं।
भारत के आसपास का भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से तनावपूर्ण होता जा रहा है। चीन का अपने पड़ोसियों, जिनमें भारत भी शामिल है, के प्रति आक्रामक और आक्रामक रवैया क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा रहा है। इसके साथ ही, पाकिस्तान भी भारत के लिए एक स्थायी चुनौती बना हुआ है।
चीन और पाकिस्तान के साथ दो-फ्रंट संघर्ष के खतरे का मतलब है कि भारत को सैन्य और आर्थिक रूप से तैयार रहना होगा। हालांकि, भारत का सैन्य आधुनिकीकरण धीमा रहा है, और पुरानी हथियार प्रणाली अभी भी उसकी सशस्त्र सेनाओं की मुख्य धारा का हिस्सा हैं। आत्मनिर्भर पहल, जिसका उद्देश्य आत्म-निर्भरता प्राप्त करना है, को प्रभावी होने में समय लगेगा।
इसके अतिरिक्त, रूस के साथ जारी युद्ध और संबंधित आपूर्ति में कमी के कारण भारत रूस पर महत्वपूर्ण सैन्य हार्डवेयर के लिए निर्भर नहीं हो सकता। रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध इस समस्या को और जटिल बना देते हैं। इसलिए, भारत अपने फाइटर और बख्तरबंद बेड़े को फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों की मदद से उन्नत करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, आधुनिक सैन्य उपकरणों में महत्वपूर्ण अंतर को दूर करने के लिए यह पर्याप्त नहीं होगा।
भारतीय वायुसेना वर्तमान में केवल 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन के साथ काम कर रही है, जबकि स्वीकृत क्षमता 42 स्क्वाड्रन की है। अनुमान है कि 2030 के मध्य तक यह संख्या केवल 35-36 स्क्वाड्रन तक ही पहुंच पाएगी। अगर इस बीच कोई संघर्ष उत्पन्न होता है, तो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।
इस स्थिति में, भारत की सैन्य क्षमताओं को सुदृढ़ करने में अमेरिका एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभरता है। पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने अमेरिका के साथ कई अरब डॉलर के रक्षा समझौते किए हैं, जो रणनीतिक संबंधों की गहराई को दर्शाते हैं। पिछले 15 वर्षों में अमेरिका से भारत को आपूर्ति किए गए प्रमुख रक्षा उपकरणों में C-130J सुपर हरक्यूलिस, C-17 ग्लोबमास्टर III और P-8I पोसाइडन जैसे परिवहन और समुद्री विमान; CH-47F चिनूक, MH-60R सीहॉक और AH-64E अपाचे जैसे हेलीकॉप्टर; हार्पून एंटी-शिप मिसाइलें और M777 हॉवित्जर शामिल हैं।
नई दिल्ली में हाल ही में आयोजित दो दिवसीय ‘यूएस-इंडिया डिफेंस न्यूज़ कॉन्क्लेव: स्टोरीज़ ऑफ यूएस-इंडिया डिफेंस एंड सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ में अमेरिका के भारत में राजदूत एरिक गार्सेटी ने यूएस-भारत रक्षा साझेदारी की संभावनाओं को रेखांकित किया। इस कार्यक्रम का आयोजन अमेरिकी वाणिज्य दूतावास कोलकाता और कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी (CUTS) इंटरनेशनल द्वारा किया गया था।
राजदूत गार्सेटी ने अमेरिका की भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदारी के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि दोनों देशों के नेता प्रौद्योगिकी, रक्षा, स्टार्टअप्स और अंतरिक्ष में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने भारत को एक ऐसा केंद्र बनाने में रुचि व्यक्त की जहां अमेरिकी जहाजों की मरम्मत हो सके, गुणवत्तापूर्ण नौकरियों का सृजन हो सके, और आपसी सिस्टम और प्रशिक्षण को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
मुक्त व्यापर और नियमों से बंधे हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिये दोनों देशों के बीच साझेदारी महत्त्वपूर्ण  है। अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभांश अमेरिकी और भारतीय कंपनियों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, विनिर्माण, व्यापार एवं निवेश के लिये विशाल अवसर प्रदान करता है।
अतःअभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रही अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भारत एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है और वह अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग अपने महत्त्वपूर्ण हितों को आगे बढ़ाने के अवसरों का पता लगाने के लिये कर सकता है।

सीमा अग्रवाल ,स्वतंत्र लेखक, देहरादून
7895510643

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