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प्रो. जी. कमेई स्मृति व्याख्यान में आर्मेनियाई प्रतिनिधि का प्रथम आगमन
विशेष प्रतिनिधि, शिलचर, 17 अक्टूबर:
आर्मेनिया से आई विदुषी एवं समाजसेवी मिस नायरा मार्कसन ने कहा कि भारत और आर्मेनिया के संबंध अत्यंत प्राचीन, सांस्कृतिक और आत्मिक रूप से गहरे हैं। शिलचर में मीडिया के साथ एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि “भारत और आर्मेनिया के बीच आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जुड़ाव हजारों वर्षों पुराना है, जिसे समय के साथ और मजबूती मिली है।”
मिस मार्कसन ने बताया कि इससे पहले वे असम के गुवाहाटी और डिब्रूगढ़ में भी अपने व्याख्यान प्रस्तुत कर चुकी हैं। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के कारण उनका भारत से आत्मिक लगाव है। वर्तमान में वे विश्व की जनजातीय समुदायों में अपनी मूल संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण हेतु जागरूकता फैलाने का कार्य कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि 1915 के आर्मेनियाई नरसंहार (Genocide) के बाद भी आर्मेनिया ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखा है। “आर्मेनिया और भारत दोनों ही अपने मूल्यों, परंपराओं और पारिवारिक संस्कारों को अत्यधिक महत्व देते हैं। आर्मेनियाई लोग स्वयं को आर्य मूल का मानते हैं,” उन्होंने कहा।

इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि पांचवीं शताब्दी की अनेक प्राचीन पुस्तकों में भारत का उल्लेख मिलता है। 1773 में आर्मेनिया का पहला संविधान भारत के कोलकाता में तैयार हुआ था, जबकि 1821 में वहीं पहला आर्मेनियाई विद्यालय स्थापित किया गया।
उन्होंने आगे बताया कि आर्मेनिया दुनिया का पहला देश है जिसने ईस्वी 301 में ईसाई धर्म को राजधर्म के रूप में स्वीकार किया। आर्मेनिया की आबादी लगभग 30 लाख है, किंतु एक करोड़ से अधिक आर्मेनियाई दुनिया के विभिन्न देशों में रहते हैं। भारत के कोलकाता, आगरा, मुंबई, चेन्नई और मैसूर जैसे शहरों में आज भी आर्मेनियाई समुदाय निवास करता है।
मिस नायरा ने कहा कि “200 ईसा पूर्व भारत की दो राजकुमारियां आर्मेनिया गई थीं, और लगभग 500 वर्षों तक उनकी संतानों ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को संजोए रखा।” उन्होंने यह भी बताया कि पंजाब और कश्मीर में आज भी आर्मेनियाई मूल के परिवार बसे हुए हैं। “पंजाब में ‘जोरावर’ नाम बहुत प्रसिद्ध है, जबकि आर्मेनियाई भाषा में ‘जोरावर’ का अर्थ ‘सेनानायक’ होता है,” उन्होंने रोचक तथ्य साझा किया।

तुर्की द्वारा कब्जाए गए आर्मेनियाई क्षेत्रों और वहाँ के ऐतिहासिक स्थलों के विध्वंस का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह मानव सभ्यता की विरासत के लिए चिंता का विषय है।
धर्म और आस्था पर बोलते हुए मिस नायरा मार्कसन ने कहा — “मैं सभी धर्मों का सम्मान करती हूं। ईश्वर एक है, बस उसकी उपासना के मार्ग अलग-अलग हैं।”
इस अवसर पर कल्याण आश्रम के प्रांत संगठन मंत्री राजेश दास, वरिष्ठ अधिकारी केदार कुलकर्णी, तथा प्रांत सह संगठन मंत्री संजीत पाल उपस्थित रहे। उन्होंने आगामी 18 अक्टूबर को आयोजित होने वाले प्रो. जी. कमेई स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम की रूपरेखा और उद्देश्यों की जानकारी दी।





















