110 Views
धरती पुत्र
आंदोलन कर रहे हैं
बेरोज़गार आंदोलन कर रहे हैं
हर तरफ संघर्ष है
जिसे तुम कहते हो जीवन
जीवन, जीवन नहीं है यहां
हर तरफ मुखौटाधारी मौजूद हैं
अपने वजूद के लिए
दूसरे के वजूद को
खत्म करने पर तुले हैं
अपने स्वर्णिम कल के लिए
हर तरफ लालच और स्वार्थ की नदियां बह रहीं हैं
पदार्थ में लोग
अपनी जड़ों को तलाशते हैं
यह पत्थर युग है
यहां कोई किसी की नहीं सुनता
यहां भेड़िए हर समय झपटने पर उतारू रहते हैं
वे जब जी चाहे तब
नोंचते हैं
वे अपने नुकीले,पैने दांतों को किटकिटाते हैं
यहां गरीबों की झोंपड़ियां झुलसती हैं
अमीर हंसते हैं
शहरी अट्टालिकाओं में
यहां जश्न पर जश्न मनते हैं
यहां झूठ ही सच है और सच सफेद झूठ
यहां जो जिंदा हैं, वे मुर्दा हैं
यहां भूस से भरे पुतले घूम रहे हैं
बेमतलब
यहां स्वांग ज्यादा है
यहां शांति, संयम खो गये से लगते हैं
दूर कहीं ब्रह्मांड में
यहां कैद है, गिरफ्त है
यहां जलन है, ईर्ष्या के भाव हैं
संस्कार विहीन आदमी
अनुपम प्रेम, क्षमा और भक्ति यहां नहीं दिखते
यहां इच्छाएं हैं, आकांक्षाएं हैं, आसक्ति है
यहां द्वंद्व हैं
उलझे उलझे से आदमी
भूस से भरे आदमी…!
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
मोबाइल 9828108858