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तापमान गज़ब ढा रहा है। चर्चा ‘फ्रीज’ की होनी चाहिए लेकिन फ्रीज नहीं आजकल ‘ब्रिज’ काफी चर्चा में हैं। अजी ! ‘ब्रिज’ मतलब ‘पुल’। अंग्रेजी में डिटेल से समझाएं तो ‘ब्रिज’ का मतलब होता है -‘एक नदी, खड्ड, सड़क, रेलमार्ग या अन्य बाधा के पार सड़क, पथ, रेलमार्ग या नहर ले जाने वाली संरचना।’ खैर, यह तो रही ब्रिज की डिटेल की बात। और डिटेल्ड बात यह है कि बरसात आने से पहले ही बेचारे ‘पुल'(ब्रिज) धड़ाधड़ ‘पुल'(टूटना, उखड़ना) हो रहे हैं। बेचारा ‘विकास’ तो पानी में बह गया, लेकिन यह ‘विकास’ कहने को बहुत कुछ कह गया। अजी ! पुल बनाकर कंक्रीट की दीवार खड़ी करना क्या प्रकृति के साथ विश्वासघात नहीं है। ऐसे में तो पुल का टूट जाना ही लगता हमें सही है। पुल को भी प्रकृति का खूब ख्याल है, पुल टूटने पर फिर मच रहा क्यों बवाल है ? खैर, हाल फिलहाल, एक, दो, तीन; ‘पुल’ गये छीन। क्यों कि सीमेंट, बजरी, ग्रीट, सरिये से ये थे पूर्णतया ‘हीन’। घटिया सामग्री की इनमें रही आवक, इसीलिए तो पुल बन गए जल्दी ‘जावक’। निर्माण में नियम-कानून रखे ताक पर। गिरे पुलों को आपने भी देखा होगा टीवी पर ज़रा झांक कर। पुल हों या सड़कें, दीवारें हों या फ्लैट। आमजन के हितों को कर रहे मटियामेट। अच्छा चलता है ठेकेदारों की कमीशनखोरी का धंधा। अजी ! शेष जगह है मंदा ही मंदा। मोटा मुनाफा और रहती इनमें ठेकेदारों की मनमानी, इसीलिए ढ़हते पुल, सड़कें भरी जवानी। उद्घाटन तक भी ये नहीं पहुंच पाते। उससे पहले ही भरभराकर गिर जाते। निर्माण कार्यों में घटिया सामग्री की खुल रही पोल। मीडिया को मिला मौका, बज रहा है ‘ब्रिज’ का ढ़ोल। आमजन माथे पर हाथ मारे। भ्रष्ट अधिकारी पकड़े जाएंगे क्या अब सारे ? हर तरफ है मिलीभगत का खेल। क्या जाएंगे दोषी अब जेल ? घटिया सामग्री के इस्तेमाल का कच्चा चिट्ठा खुल गया। पानी आने से पहले ही बेचारा ‘ब्रिज’ डर गया। ताज्जुब है, अब तो तेज हवाएं भी पुल गिराने लगीं हैं। हमें डर है कि कहीं कल को बिछी सड़क को तेज हवाएं न उड़ा ले जाएं। भ्रष्टाचार के गुल में आजकल बेचारी आंधियां तक पिस रहीं हैं। यह कलियुग है जनाब, इसे लिखते हुए कलम भी हंस रही है। अजी !पुल गिरने को तो कम से कम ‘एक्ट आफ गाड मत कहना। यूं जज़्बातों में न बहना। सच तो सच रहेगा, इसलिए सच को सच ही कहना। नदी और पानी का न इसमें झोल है। अजी ! करोड़ों की लागत से बनते हैं सड़कें और पुल, इनका बड़ा मोल है। ज्योतिषी कह रहे हैं कि पुल को लगा है तगड़ा कोई वास्तुदोष। हम यूं ही दे रहे निर्माण कार्यों में गड़बड़ी को दोष। पहले पूजा-पाठ करवाओ और बाद में पुल, सड़कें तुम बनाओ। अजी चर्चा में वास्तु को लाना भी तो जरूरी है, क्यों कि बिना वास्तु को बीच में लाए, ज्योतिषियों का काम कैसे चलेगा। अन्यथा ऐसी घोर बेरोजगारी के इस दौर में वह तो हाथ ही मलेगा। काम धंधा बहुत ही जरूरी है, आखिर इस जीवन को भी तो आगे चलाना है। पुल गिरेंगे तभी तो नाव वालों का धंधा चलेगा और उनका परिवार भी फलेगा-फूलेगा। आप जऱा इस विश्व में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को भी समझें। यूं ही पुल(ब्रिज) गिरने के चक्कर में न उलझें। पुल का पिलर ग्लोबल वार्मिंग से ही पिघला है, आप क्यों नहीं हैं मानते ? क्या ग्लोबल वार्मिंग के इफेक्ट्स के बारे में आप तनिक भी नहीं हैं जानते।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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