पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का शनिवार दोपहर दिल्ली के निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ। डॉ. मनमोहन सिंह को जिस भव्यता के साथ विदा किया गया, वे वास्तव में उसके अधिकारी थे। देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु, उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल वरिष्ठ सहयोगी राजनाथ सिंह और अमित शाह सहित अनेक केन्द्रीय मंत्री पूर्व प्रधानमंत्री के अंतिम संस्कार के समय उपस्थित रहे। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान सहित सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों की उपस्थिति में पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ और 21 तोपों की सलामी देकर पूर्व प्रधानमंत्री के प्रति सम्मान प्रकट किया गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और गांधी परिवार की उपस्थिति का यहां इसलिए उल्लेख करना अनावश्यक है क्योंकि उन्हें तो उपस्थित रहना ही चाहिए था।
कौन नहीं जानता कि एक बेहद ईमानदार छवि वाले और पूर्ण सादगी से जीवन जीने वाले मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही देश में सबसे ज्यादा घपले-घोटाले सामने आए थे। यह बात सही है कि मनमोहन सिंह एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे। वे कैसे प्रधानमंत्री बने, वह एक अलग कहानी है। हां, पर वे पहले एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर (प्रधानमंत्री) नहीं थे। सही मायने में राजीव गांधी पहले एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे। उसके बाद चंद्रशेखर, एच.डी. देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और डॉ. मनमोहन सिंह को इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। वैसे, किसी दिवंगत व्यक्तित्व की कठोर आलोचना ठीक नहीं होती। पर वस्तुतः डॉ. मनमोहन सिंह राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे। जो इतिहास है वह यह लिखा जाएगा कि डॉ. मनमोहन सिंह बड़े अर्थशास्त्री, विचारक, शिक्षक और एक समर्पित नौकरशाह थे। इसीलिए सोनिया गांधी के संवैधानिक कारणों से प्रधानमंत्री न बन पाने और उसे त्याग प्रचारित कर मनमोहन सिंह का चुनाव किया। सरकार के ऊपर नेशनल एडवाइजरी कमेटी बनाकर जैसे देश का शासन सोनिया परिवार ने पर्दे के पीछे से चलाया, वह भारत की राजनीति में कभी नहीं हुआ था।
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए टूजी, थ्रीजी, कोयला, एशियन गेम्स आदि घोटलों की लंबी फेहरिस्त को दोहराने की आवश्यकता नहीं। मनमोहन सिंह की साफ-सुथरी छवि को सामने रखकर कांग्रेसियों ने घपले-घोटालों का ऐसा दौर चलाया कि जनता खुद ही जतंर-मंतर पर जुटने लगी और कुछ नौसिखियों ने उन्हें भुना लिया। यह अलग बात है कि आज वे उसी भ्रष्टाचार की दलदल में डूबे दिल्ली व पंजाब की सत्ता पर काबिज हैं। उस दौर में प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर होने से पहले सरकारी फाइलें सोनिया गांधी तक जाती थीं, यह एक ओपन सीक्रेट है। इतना ही नहीं, कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल द्वारा पारित एक प्रस्ताव को दिल्ली के प्रेस क्लब में आकर जैसे फाड़ा, वैसा अपमान आज तक देश के किसी प्रधानमंत्री का नहीं हुआ होगा। वह ऐसा मामला था जब प्रधानमंत्री के छोटे भाई ने ही बयान दिया था कि कुछ तो अपनी सरदारी का ख्याल रखिए। घपले-घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों, प्रधानमंत्री कार्यालय से ऊपर एक सत्ता केन्द्र से संचालित होने और कांग्रेस द्वारा ही अपमानित किए जाने के अनेक मामलों को लेकर मनमोहन सिंह को भारी आलोचना का सामना करना पड़ता था, पर वे शांत रहकर उसे आत्मसात कर लेते थे। कांग्रेस की कारगुजारियां छिपाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनकी कटु आलोचना करते हुए यहां तक कह दिया था कि वे ‘रेनकोट पहनकर नहाते थे।’
इस सबके बावजूद भारत की मौजूदा सरकार ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के प्रति जो सम्मान और संस्कार प्रकट किया है, वह सीख लेने लायक है। इसे पूर्व प्रधानमंत्रियों के प्रति प्रकट की जाने वाली राजनीतिक शालीनता और आदर्श व्यवस्था की तरह देखा जाना चाहिए। डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के समाचार के बाद सरकार ने प्रोटोकॉल के तहत जो संभव था, वह तो किया ही। उससे भी कहीं अधिक जाकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार उनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित हुई। ऐसा पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के समय भी नहीं हो पाया था। तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम उनके संस्कार में सम्मिलित नहीं हो सके थे। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का विषय अलग है। उनका निधन तब हुआ जब उनके द्वारा रोपे गए बीज से बना विशाल वृक्ष देश की सत्ता पर आसीन था और उनके सहचरी ही सत्ता को संचालित कर रहे थे।
इतना सम्मान दिए जाने के बाद भी कांग्रेस स्मारक बनाने की आड़ में मनमोहन सिंह का एक और अपमान कराने का कारण बनी है। स्मारक का विवाद इसीलिए खड़ा किया गया है। यह जानते हुए भी कि उसकी एक प्रक्रिया है। इस सबके बीच एक पूर्व प्रधानमंत्री का नाम और चर्चा में आ गया- पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव। वे देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें देश की राजधानी में दो गज जमीन तक तो छोड़िए, अंतिम संस्कार का भी अवसर नहीं दिया गया और न ही सैन्य सम्मान। 2004 में जब उनका निधन हुआ तब उनकी ही पार्टी कांग्रेस की सरकार केन्द्र में सत्तारूढ़ थी और मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री थे। जो सोनिया परिवार आज मनमोहन सिंह के लिए स्मारक की मांग कर रहा है, उसने अपने ही नेता नरसिंह राव के लिए कांग्रेस मुख्यालय के दरवाजे तक नहीं खोले थे। नरसिंह राव की पार्थिव देह 10 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर एंबुलेंस में आधे घंटे तक पड़ी रही पर उसे भीतर लाने की इजाजत नहीं दी गई। फिर राव के परिजनों पर यह दबाव बनाया गया कि वे यह बयान दें कि वे अपने पिताजी का अंतिम संस्कार हैदराबाद में करेंगे। यह बयान भी इस शर्त पर दिलवाया गया था कि यदि वे ऐसा करते हैं तो दिल्ली में नरसिंह राव की स्मृति में एक स्मारक बनाया जाएगा। इसके बाद प्रतीकात्मक तौर पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी समेत कुछ लोगों ने एंबुलेंस में पुष्पांजलि अर्पित कर उसे हवाई अड्डे के लिए रवाना कर दिया गया। ऐसा क्यों किया गया, उसका एक कारण है, पर इसी में छिपा कांग्रेसी संस्कार है। यही कांग्रेसी संस्कार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के लिए भी प्रकट किया गया। जीवन भर कांग्रेसी रहे प्रणब दा के निधन पर कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा शोक प्रस्ताव न किए जाने को उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ही सामने लेकर आयीं हैं।
वहीं, भारतीय जनता पार्टी जिस विचारधारा और संस्कारों को साथ लेकर चली और बढ़ी है, उसमें राजनीतिक विरोध को अस्पृश्यता के स्तर तक नहीं स्वीकार किया जाता। यही कारण है कि मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के अंतिम संस्कार और सम्मान में कोई कोर कसर नहीं रखी। यह पहला मौका था जब किसी राष्ट्रपति ने निगमबोध घाट पर जाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए हों। प्रोटोकॉल में यह आवश्यक नहीं था। राष्ट्रपति चाहती तो उनके आवास पर जाकर पुष्पांजलि कर सकती थीं। पर राजनीतिक विरोध और पक्ष-विपक्ष को नजरंदाज कर मोदी सरकार ने एक बड़ा संदेश दिया है।
जहां तक स्मारक बनाने वाले स्थल पर ही अंतिम संस्कार का सवाल है तो यह जानना जरूरी है कि अब राजघाट के आसपास का स्थान इसके लिए एक नियम के अनुसार ही आवंटित किया जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद भी पार्टी की ओर से तत्काल अटल स्मारक न्यास गठित किया गया। जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया और जहां आज ‘अटल सदैव’ स्मारक है, उसके लिए भाजपा ने एक प्रक्रिया का पालन कर जमीन का भुगतान किया है। कांग्रेस भी जब अपने किसी नेता के नाम पर स्मारक बनाकर सरकार से जमीन के लिए आवेदन करेगी, उसे मिल जाएगी। पर कांग्रेस को पहले यह तो बताना ही होगा कि वह पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव का स्मारक कब बनवाएगी? सन् 2004 से लेकर 2014 तक सत्ता में रहने के बावजूद राव की आत्मा से किया गया वादा कांग्रेस नहीं निभा सकी। क्या वह मनमोहन सिंह से पहले नरसिंह राव का स्मारक बनाने का प्रस्ताव लाएगी? कांग्रेस ऐसा करे तभी नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल, डॉ. आम्बेडकर, लाल बहादुर शास्त्री से लेकर सीताराम केसरी, नरसिंह राव और प्रणब मुखर्जी तक को अपमानित किए जाने के पाप से मुक्त हो पाएगी।(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के संपादक हैं।)