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मस्जिद के नीचे मंदिर…5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

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मस्जिद के नीचे मंदिर…5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

ज्ञानवापी में बीते 6 दिन से ASI सर्वे जारी है। गुंबद और सीढ़ी का ताला खुलने के बाद अब बेसमेंट का सर्वे किया जा रहा है। इसमें तहखानों की 3D इमेजिंग- मैपिंग और डिजिटल फोटोग्राफी हो रही है। 6 अगस्त को अचानक सर्वे के दौरान गुंबदों की गोलाकार छत में नागर शैली की डिजाइन मिलीं।

सीलिंग पर मंदिर जैसी संरचना दिखी। त्रिशूल, मूर्ति और भाले जैसी आकृति भी नजर आई। इसके बाद हिंदू पक्ष की वादी महिलाओं के चेहरे खिल उठे। सभी ज्ञानवापी परिसर के बाहर जोर-जोर से ‘हर हर भोलेनाथ’ और ‘ओम नम: शिवाय’ के जयकारे लगाने लगीं।

हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने हाथ से ‘V’ का इशारा किया। कहा- सर्वे में ऐसी चीजें मिली हैं, जो हमारे हक में हैं। उम्मीद है यह सर्वे ऐतिहासिक होगा। उधर…मुस्लिम पक्ष का दावा है कि त्रिशूल, मूर्ति या दूसरी आकृति मिलने की बातें महज अफवाह हैं। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने एक बार फिर सर्वे का बहिष्कार करने की धमकी दी है।

ये मस्जिद नहीं, मंदिर है…ऐसा विवाद सिर्फ काशी की ज्ञानवापी में ही नहीं, बल्कि यूपी के 5 स्थलों पर कई साल से चलता आ रहा है। 3 मामलों में तो इस महीने अहम सुनवाई होनी है। आज हम ऐसी ही मस्जिदों और उनसे जुड़े विवाद को जानेंगे। कोर्ट में चल रहे केस की मौजूदा स्थिति को समझेंगे। साथ ही यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर यह विवाद शुरू कैसे हुआ और कब तक खत्म हो सकता है?

आइए सब जानते हैं। शुरुआत मौजूदा समय के सबसे चर्चित ज्ञानवापी विवाद से करते हैं…

पहला मामला: ज्ञानवापी परिसर, वाराणसी
स्टेटस: यह केस इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है। कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी में ASI का सर्वे हो रहा है। सर्वे रिपोर्ट 2 सितंबर तक सब्मिट करनी है।
सुनवाई की अगली तारीख: 2 सितंबर 2023

साल में सिर्फ 1 दिन मां का मंदिर खुले, यह हमें बर्दाश्त नहीं

ज्ञानवापी के बाहरी छोर पर इस जगह पर मां श्रृंगार गौरी की पूजा होती रही है।

मस्जिद के नीचे मंदिर...5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई
मस्जिद के नीचे मंदिर…5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

वाराणसी के सरायगोवर्धन में एक महिला रहती हैं। नाम है सीता साहू। सीता हाउस वाइफ हैं और घर के काम-काज में व्यस्त रहती थीं। लेकिन साल में एक बार खुलने वाले श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करना नहीं भूलती थीं। ऐसे ही कई सालों तक दर्शन के दौरान सीता की मुलाकात मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक नाम की 3 महिलाओं से हुई। बातचीत हुई, तो इन चारों महिलाओं को मंदिर का साल में सिर्फ एक दिन खुलना बहुत खटकता था।

महिलाओं को लगता था कि जिन श्रृंगार गौरी माता के उन्हें दर्शन करने हैं, उनका असल में कोई मंदिर नहीं बल्कि सिर्फ मां गौरी के मंदिर की चौखट है। सीता बताती हैं, “मंदिर को लेकर दो चीजें हमें परेशान करती थीं। पहली ये कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि हम साल के 365 दिन माता के दर्शन नहीं कर सकते। दूसरी ये कि हमने पढ़ा और सुना था कि ज्ञानवापी परिसर में हमारे देवी-देवता हैं। ऊपर से नंदी बाबा का ज्ञानवापी परिसर की तरह मुंह होना भी हमें बहुत खटकता था।”

सीता कहती हैं कि हम ज्ञानवापी परिसर की असलियत जानना चाहते थे। इसलिए इस मामले में हमने वकील हरिशंकर जैन से मुलाकात की। उन्होंने हमारी बात को गंभीरता से लिया और 17 अगस्त, 2021 को वाराणसी की कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। इसके बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी के आर्कियोलॉजिकल सर्वे को मंजूरी दी। साल 2022 में कोर्ट ने परिसर में वीडियोग्राफी करने के आदेश दिए।

हिंदू पक्ष का दावा: साल 2022 में हुए सर्वे और वीडियोग्राफी के बाद परिसर के अंदर की एक तस्वीर सामने आईं। तस्वीर में गोल आकार की एक ठोस आकृति दिखाई दी। हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यह गोल दिखने वाली चीज शिवलिंग है। इस पर वकील हरिशंकर जैन का कहना था कि मंदिर को तोड़कर जबरदस्ती कब्जा करके उस पर नमाज पढ़ी जाने लगी।

तहखाने के बीचों-बीच आदि विश्वेश्वर का स्थान है, यहीं पहले शिवलिंग स्थापित था। मस्जिद के नीचे का हिस्सा अब भी पुराने मंदिर के ढांचे पर ही खड़ा है। फर्स्ट फ्लोर पर मंदिर के शिखर पर ही गुंबद रख दिया गया। फिलहाल, ASI सर्वे में तीनों गुंबदों के नीचे हिंदू मान्यताओं से जुड़े कुछ प्रतीक-चिन्ह मिले हैं। सर्वे का काम 4 हफ्ते तक चलेगा।

मुस्लिम पक्ष का दावा: मुस्लिम पक्ष का कहना है कि देश की अदालत ने ही ज्ञानवापी को मस्जिद माना है। उसमें नमाज पढ़ने का अधिकार दिया है। उसी हिसाब से सैकड़ों साल से यहां नमाज और धार्मिक कार्य हो रहे हैं। इसलिए इस पर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू होता है। इसके मुताबिक मुस्लिमों को वहां नमाज पढ़ने का पूरा अधिकार है।

इसके अलावा कहा गया कि मुगल शासक औरंगजेब ज्ञानवापी परिसर का मालिक था। उस समय की जो भी संपत्तियां थीं, वो उसी की थीं। उसी की दी गई जमीन पर ज्ञानवापी परिसर बना है। ज्ञानवापी मामले में इसे वक्फ बोर्ड में दर्ज कराने के लिए जो दस्तावेज दिया गया था, उसमें आलमगीर का नाम दर्ज है। मुगल शासक औरंगजेब का नाम आलमगीर है।

ज्ञानवापी परिसर में हो रहे ASI सर्वे को मुस्लिम पक्ष नकार रहा है। उन्होंने दावा किया है कि त्रिशूल, मूर्ति या फिर दूसरी आकृति मिलने की बातें महज अफवाह हैं। इसी वजह से मुस्लिम पक्ष ने एक बार फिर सर्वे के बहिष्कार की धमकी दी है।

दूसरा मामला: शाही ईदगाह, मथुरा
स्टेटस: श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट की 13.37 एकड़ जमीन के एक हिस्से पर शाही ईदगाह बनाए जाने का दावा। उसी जमीन को हिंदू पक्ष को देने की मांग।
सुनवाई की अगली तारीख: 23 अगस्त, 2023

श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद बनाए जाने का दावा
साल 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद एक नारा सबसे ज्यादा पॉपुलर हुआ। वो था ‘अयोध्या तो झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है।’ इसी नारे का जिक्र करते हुए काशी के ज्ञानवापी मामले के बाद मथुरा का शाही ईदगाह मस्जिद भी विवादों के घेरे में आने लगा। फरवरी 2020 में सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की गई।

ऐसा कहा गया कि शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि के ऊपर बनी हुई है इसलिए उसे हटाया जाना चाहिए। उस वक्त कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद साल 2022 में हिंदू पक्ष ने मथुरा जिला कोर्ट में दोबारा याचिका दायर की।

हिंदू पक्ष के दावे
हिंदू पक्ष का कहना है कि मथुरा के कटरा केशव देव इलाके को श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है। इसी जगह पर उनका मंदिर बना है। इसी के परिसर से सटी शाही ईदगाह बनी है। हिंदू पक्ष के कुछ लोगों का दावा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। उनका कहना है कि श्री कृष्ण के जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन के हिस्से पर अवैध तरीके से मस्जिद बनाई गई।

साथ ही साल 1968 में जमीन को लेकर एक समझौता हुआ था। इसके तहत 1946 में जुगल किशोर बिड़ला ने जमीन की देखरेख के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया था। साल 1967 में जुगल किशोर की मौत हो गई। कोर्ट के रिकॉर्ड के अनुसार, 1968 से पहले परिसर बहुत विकसित नहीं था। साथ ही 13.37 एकड़ भूमि पर कई लोग बसे हुए थे।

1968 में ट्रस्ट ने मुस्लिम पक्ष से एक समझौता कर लिया। इसके बाद परिसर में रह रहे मुस्लिमों को इसे खाली करने को कहा गया। साथ ही मस्जिद और मंदिर को एक साथ संचालित करने के लिए बीच में दीवार बना दी गई। समझौते में यह भी तय हुआ कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा। यानी यहां उपासना के दो स्थल एक दीवार से अलग होते हैं। इस समझौते को भी याचिका में अवैध बताया गया।

मुस्लिम पक्ष के दावे
ईदगाह मस्जिद कमेटी के वकील और सेक्रेटरी तनवीर अहमद ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने के दावे पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, औरंगजेब ने कटरा केशव देव में मस्जिद बनाई थी। लेकिन, इससे पहले यहां मंदिर होने के कोई सबूत नहीं हैं। यहां 1658 से ही मस्जिद बनी हुई है और 1968 में समझौते से विवाद खत्म हो गया था। उन्होंने कहा, “अगर ये समझौता अवैध है और सोसाइटी को अधिकार नहीं है, तो ट्रस्ट की तरफ से कोई आगे क्यों नहीं आया? याचिका डालने वाले बाहरी लोग हैं।”

मस्जिद के नीचे मंदिर...5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

हिंदू पक्ष ने याचिका में कहा है, “1815 में जमीन की नीलामी के वक्त वहां कोई मस्जिद नहीं थी। तब कटरा केशव देव के किनारे पर केवल एक जर्जर ढांचा बना हुआ था। अवैध समझौते के बाद यहां कथित शाही ईदगाह मस्जिद बनाई गई है।” लेकिन, सेक्रेटरी तनवीर अहमद का कहना है कि 1658 से ही उस जमीन पर मस्जिद बनी हुई है।

शाही ईदगाह के विवादित हिस्से को हिंदुओं को सौंपने की याचिका पर 7 अगस्त को वर्चुअल सुनवाई होनी थी। लेकिन खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण सुनवाई नहीं हो सकी। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 23 अगस्त रखी है।

तीसरा मामला: टीले वाली मस्जिद, लखनऊ
स्टेटस: टीले वाली मस्जिद में शेषनाग का मंदिर होने का दावा है। इसी मंदिर में पूजा करने और मस्जिद के बाहर भगवान लक्ष्मण की मूर्ति लगवाने की मांग है।
सुनवाई की अगली तारीख: 12 अगस्त 2023

काशी में ज्ञानवापी परिसर और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद मामले की तरह ही लखनऊ में टीले वाली मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है। अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने दावा किया कि यह टीले वाली मस्जिद नहीं, बल्कि लक्ष्मण टीला है। इसलिए उन्होंने टीले वाली मस्जिद के सामने भगवान लक्ष्मण की मूर्ति लगाने की बात कही।

टीले वाली मस्जिद की जगह भगवान लक्ष्मण का किला होने का दावा
ऐसी मान्यता है कि इस जगह पर भगवान लक्ष्मण ने एक किले का निर्माण कराया था। जिसे लक्ष्मण किले के नाम से जाना गया। उनका कहना था कि साल 1877 के प्रोविंस ऑफ अवध और 1904 के गजेटियर ऑफ लखनऊ समेत तमाम ऐतिहासिक किताबों और आर्कियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट्स में भी इस जगह को लक्ष्मण टीला ही बताया गया है।

हिंदू पक्ष का दावा
हिंदू पक्ष का कहना है कि टीले वाली मस्जिद के अंदर शेषनाग का जो बचा-खुचा मंदिर है, जिसे तोड़ा जा रहा है। साथ ही मस्जिद परिसर की दीवार के बाहर जहां हिंदू पूजा अर्चना करते रहे हैं, वहां भी कब्जा करने की कोशिश की गई।

मस्जिद के नीचे मंदिर...5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई
मस्जिद के नीचे मंदिर…5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

उनका कहना है कि औरंगजेब ने अपने शासन के वक्त लक्ष्मण टीले पर बना मंदिर तोड़ दिया था और मंदिर के आधे हिस्से की जमीन पर मस्जिद बना दी।

मुस्लिम पक्ष के दावे
इस पूरे विवाद पर मस्जिद के इमाम शाह फजलुल मन्नान ने कहा कि हम मूर्ति की स्थापना के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन मस्जिद के बाहर मूर्ति बनाने से यहां नमाज पढ़ने में समस्या होगी। नमाजियों की सुविधा को ध्यान में रखकर मस्जिद परिसर को खुला छोड़ा जाए। अगर लक्ष्मण भगवान की मूर्ति बनवानी ही है, तो किसी मंदिर में बनवाई जाए।

टीले वाली मस्जिद केस में पिछली सुनवाई 28 जुलाई 2023 को थी। अदालत के फैसले के बाद अब इस विवाद पर अगली सुनवाई 12 अगस्त 2023 को होगी।

चौथा मामला: जामा मस्जिद, बदायूं
स्टेटस: अखिल भारत हिंदू महासभा का दावा है कि जामा मस्जिद ही पहले राजा महीपाल का किला था। यहां नीलकंठ महादेव का मंदिर था, जिसे ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण हुआ।
सुनवाई की अगली तारीख: 17 अगस्त 2023

महादेव का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई
तस्वीर बदायूं के जामा मस्जिद की है। यहीं महादेव का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का दावा किया जा रहा है।

बदायूं के मौलवी टोला इलाके में जामा मस्जिद है। ये देश की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। इसके साथ ही यह देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से भी एक है। इस मस्जिद में एक समय में 23 हजार से ज्यादा लोग एक साथ जमा हो सकते हैं। जब प्रदेश में ज्ञानवापी परिसर और शाही ईदगाह मस्जिद का मुद्दा गर्मा रहा था, वहीं दूसरी तरफ बदायूं के जामा मस्जिद में भी मंदिर होने के दावे किए जाने लगे।

हिंदू पक्ष का दावा: याचिकाकर्ता और अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल ने दावा किया, “बदायूं की जामा मस्जिद परिसर, हिंदू राजा महीपाल का किला था। मस्जिद की मौजूदा संरचना नीलकंठ महादेव के प्राचीन मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई है। 1175 में पाल वंशीय राजपूत राजा अजयपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। मुगल शासक शमसुद्दीन अल्तमश ने इसे तोड़कर कर जामा मस्जिद बना दिया। यहां पहले नीलकंठ महादेव का मंदिर था।”

मस्जिद के नीचे मंदिर...5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई
मस्जिद के नीचे मंदिर…5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

मुस्लिम पक्ष का दावा: इंतजामिया कमेटी के सदस्य असरार अहमद मुस्लिम पक्ष के वकील हैं। उन्होंने कहा, “जामा मस्जिद लगभग 840 साल पुरानी है। मस्जिद का निर्माण शमसुद्दीन अल्तमश ने करवाया था। कोई भी ऐसा गजेटियर नहीं है, जिसमें यह मेंशन हो कि यहां मंदिर था। यह मुस्लिम पक्ष की इबादतगाह है। यहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है। उन लोगों ने भी मंदिर के अस्तित्व का कोई कागज दाखिल नहीं किया है।”

भगवान नीलकंठ महादेव मंदिर बनाम जामा मस्जिद मामले की 31 जुलाई को सुनवाई थी। अगली सुनवाई 17 अगस्त 2023 को तय की गई है।

पांचवां मामला: ताजमहल, आगरा
स्टेटस: ताजमहल के 20 बंद कमरों को खुलवाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की गई है। इसमें दावा किया गया है कि यह तेजो महालय है और यहां पहले हिंदुओं का मंदिर हुआ करता था। इसलिए दोबारा हिंदुओं को ही कब्जा मिलना चाहिए।
सुनवाई की अगली तारीख: अभी तय नहीं

ताजमहल के नीचे शिव मंदिर होने का दावा
इतिहासकार पुरुषोत्तम नाथ ओक और योगेश सक्सेना ने ‘ताज महलः द ट्रू स्टोरी’ नाम की एक किताब लिखी। उसमें दावा किया गया कि ताजमहल एक मकबरा नहीं, बल्कि शिव मंदिर है। उनकी किताब के मुताबिक, ताजमहल एक शिव मंदिर है, जिसका असली नाम तेजो महालय है। ताजमहल को शाहजहां ने नहीं, बल्कि 1212 में राजा परमारदेव ने बनवाया था।

मस्जिद के नीचे मंदिर...5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई
मस्जिद के नीचे मंदिर…5 विवाद और तारीख-पर-तारीख:अगस्त में यूपी की अदालतें एक्सट्रा बिजी; ज्ञानवापी से हू-ब-हू मिलते 3 बड़े मामलों पर सुनवाई

इन्हीं सब तर्कों के आधार पर 7 मई 2022 में भाजपा के एक कार्यकर्ता डॉ. रजनीश ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की। इस याचिका में ताजमहल के शिव मंदिर या तेजो महालय होने का दावा शामिल था।

ताजमहल के तहखाने में कुल 22 कमरे हैं। इनमें से 20 कमरे खोलने की इजाजत देने के लिए याचिका दर्ज की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसे 20 कमरों में तेजो महालय के सबूत होने की जानकारी मिली है। इसीलिए 22 में से 20 कमरे खुलवाने के लिए याचिका दायर की है। यह साफ होना चाहिए कि वह शिव मंदिर है या मकबरा।

हिंदू पक्ष के दावे:
पहला दावा: ताजमहल में मुमताज की कब्र पर बूंद-बूंद कर पानी गिरता है। कहीं भी किसी कब्र पर पानी नहीं गिरता। ऐसा सिर्फ शिव मंदिरों में होता है।
दूसरा दावा: ताजमहल की संगमरमर की जाली में 108 कलश बने हुए हैं। हिंदू परंपरा में कलश और 108 की संख्या को शुभ माना जाता है।
तीसरा दावा: ताजमहल के दक्षिण तरफ एक पशुशाला है, जहां पालतू गायों को बांधा जाता है। कभी किसी मुस्लिम कब्र में गौशाला नहीं होती।

मुस्लिम पक्ष के दावे: ताजमहल की सरकारी वेबसाइट, जिसे यूपी का पर्यटन विभाग देखता है, उसमें भी ताजमहल बनवाने वाले में मुगल बादशाह शाहजहां का नाम लिखा है। उसमें लिखा है कि मुमताज महल की मौत के बाद साल 1632 में शाहजहां ने ये मकबरा बनवाया था।

इसके अलावा साल 2015 में केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा था कि सरकार को ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के दावे से जुड़ा कोई सबूत नहीं मिला है। वहीं, 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ताज महल के पक्ष में फैसला सुनाया। हिंदू पक्ष की तरफ से याचिका दर्ज करने वाले डॉ. रजनीश से कोर्ट ने कहा कि वो पहले ताज महल की पूरी जानकारी पढ़ लें फिर कोर्ट आएं। फिलहाल ये केस पेंडिंग है।

ज्ञानवापी के ASI सर्वे का 6वां दिन: व्यास तहखाने के मलबे की करेगी जांच, गुंबद पर चढ़ते युवक के वीडियो की पुलिस ने शुरू की जांच

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम आज 6वें दिन ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कर रही है। लगातार तीसरे दिन गुंबद और व्यासजी के तहखाने में ASI की टीम सर्वे कर रही है। आज गुंबद की नक्काशी की कार्बन कॉपी तैयार की जानी है। टीम के सदस्य श्रृंगार गौरी की दीवार का सर्वे कर रहे हैं। वह गुंबद में झरोखे से झांक कर जांच पड़ताल कर रही हैं। वादी के वकील और मुस्लिम पक्ष मौजूद है। जिसे देखने के लिए बाहर भीड़ जमा है।
साभार दैनिक भास्कर

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