व्यस्त व्यक्ति एवं एक से अधिक संस्था का मुख्य पदाधिकारी ना तो बनना चाहिए ना ही सदस्यों को बनाना चाहिए। ऐसा होने से व्यस्त व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार बिना सहमति बिना नियम बिना तारीख ताबड़तोड़ सभा करता है जबकि साधारण एवं आमसभा पंद्रह दिन पहले सूचना देकर सात दिन बाद रिमाइंडर देने के बाद दो दिन पहले फिर टेलीफोन से सूचित करने की परंपरा एवं नियम है। आपातकाल बैठक कोई परिवर्तन करना हो कोई अप्रिय घटना हो जाए अथवा तत्काल निर्णय लेना हो तो 24 घंटे बारह घंटे अथवा परस्थितियों के अनुसार बुलाई जा सकती है लेकिन ऐसा नहीं होता। जब चाहे एक दिन में ही लोगों को वो भी दिखावे के लिए बुलाया जाता है नाम होता है आमसभा उससे लोग बिदक जाते हैं। बहाना होता है कि कोई आता ही नहीं। ऐसा करना अनुचित है। महापुरुषों के जन्मोत्सव एवं पुण्यतिथि उसी दिन मनाना चाहिए चाहे कुछ भी अङचन हो अपनी सुविधा के अनुसार लिपापोती करने से लोगों का उत्साह खत्म हो जाता है। चंदा तो लोग शर्म से दे देते हैं लेकिन बिना सीजन की बिना तारीख की जयंती एवं पुण्यतिथि में नहीं आते। जब हर समाज धार्मिक सामाजिक साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थान नियत तिथि पर मनाते है। कार्यक्रम संभव होने से दिन में ही होना चाहिए। यदि वर्किंग डे में हो तो रात में करें लेकिन उसी दिन। हर छोटी बङी खबर सूचना हर सदस्य को व्हाट्सएप के जरिये भेजने से वो उपेक्षित नहीं समझता। चाय ओर राय हमेशा एक जैसी नहीं हो सकती लेकिन प्रयास होना चाहिए । पदेन अध्यक्ष सचिव पर बोझ अपने आप कम हो जायेगा जब सर्वसम्मति से उपसमिति बनाकर एक एक सदस्य को दायित्व दिया जाए। मिटिंग में सदस्य नही आते यह विधवा विलाप है उसके लिए आपको परिश्रम एवं काम करके दिखाना होगा। अध्यक्ष एवं सचिव मात्र एक अथवा दो साल के लिए ही दायित्व के साथ पद पर होते हैं उन्हें अपने मृदुल व्यवहार से सबके दिलों में स्थान बना लेना चाहिए ताकि लोग याद करें। मदन सुमित्रा सिंघल





















