फॉलो करें

महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस पर विशेष,  “जैन परंपरा और दीपावली” 

39 Views
जियो और जीने दो के महान प्रेरक अहिंसा के अवतार, चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी का 2550वां निर्वाण दिवस पुरे भारत में धूमधाम से मनाया गया।
मनुष्य प्रकाश का स्वागत करता है पर अंधकार से डरता है। बाहर का अंधकार दूर करने के लिए वह दीप जला सकता है विद्युत का उपयोग कर सकता है उसे मिटाने के लिए अध्यात्म दीप कौन जलाएगा ऐसे दीप जलाकर ही हम वास्तविक दीपावली मना सकते हैं।
भारतीय संस्कृति पर्व प्रधान है, जिसमें पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, लौकिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व है। इस पर्व के साथ विभिन्न संस्कृतियों एवं महापुरुषों की स्मृतियां इस प्रकार जुड़ी हुई है कि यह पर्व किसी एक समुदाय, जाति या वर्ग विशेष का नहीं है, समस्त भारत की रचनात्मक एकता का प्रतीक है।
जैन परंपरा के अनुसार दीप मलिका का पर्व चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर के परम पावन स्मृति का जाज्वल्यमान प्रतीक है। प्रभु महावीर के निर्वाण की स्मृति आज के दिन ताजा हो जाती है। दीर्घ तपस्वी श्रमणोंत्तम महावीर जैसे लोकोत्तर महापुरुष की स्मृति में मनाए जाने के कारण यह पर्व भी लोकोत्तर पर्व है। आज की इस मंगलमय बेला में हम भगवान महावीर की स्मृति को ताजा कर उन स्मृतियों से जीवन निर्माण का पथ प्राप्त करते हैं।
भगवान महावीर एक राजपुत्र थे। उन्हें सब भौतिक सुख प्राप्त थे। भरा पूरा परिवार था परंतु उन्होंने 30 वर्ष की भरी जवानी में इन सबको छोड़कर सन्यास का मार्ग ग्रहण कर लिया। उसके बाद वर्षों तक उन्होंने एकांत तपश्चार्य की। भगवान 72 वें वर्ष में चल रहे थे। वे राजगृही से विहार कर पावापुरी में आए। वहां की जनता और राजा हस्तीपाल ने भगवान के पास धर्म का तत्व सुना। भगवान के निर्वाण का समय समीप आ रहा था। भगवान ने अपने शिष्य गौतम को आमंत्रित कर कहा, गौतम पास के गांव में सोम शर्मा नाम का ब्राह्मण है, उसे धर्म का तत्व समझाना है। तुम वहां जाओ और उसे संबोधि करो। भगवान का आदेश शिरोधार्य कर गौतम वहां चले गए। भगवान ने दो दिन का उपवास किया। 2 दिन रात तक प्रवचन करते रहे। भगवान ने अपने अंतिम प्रवचन में पुण्य और पाप के फलों का विशद विवेचन किया।
भगवान प्रवचन करते-करते निर्वाण को प्राप्त हो गए। उस समय रात्रि चार घड़ी शेष थी। वह ज्योतिपुंज मनुष्य जगत से विलीन हो गई, जिसका प्रकाश असंख्य लोगों के अंतःकरण को प्रकाशित कर रहा था‌ वह सूर्य क्षितिज के उस पर चला गया जो अपने पुंज से जनमानस को आलोकित कर रहा था। महावीर के परिनिर्वाण के अवसर को एक पुण्यक्षण मानकर उनके शिष्यों ने रत्नदीपों से धरती को सजाया था। कार्तिक अमावस्या की रात्रि जगमगा उठी। आज रत्नदीप तो नहीं रहे पर तो भी तेल के दीप जलाकर महावीर के परिनिर्वाण को मनाया जाता है। तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव रूप एवं गौतम स्वामी को केवल ज्ञान होने के कारण यह पर्व जैन समाज द्वारा मनाया जाता है।
– श्रीमती सुंदरी पटवा शिलचर, असम

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल