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महाशिवरात्रि : पौराणिक महत्व, आध्यात्मिक संदेश एवं उपासना विधि — डा. रणजीत कुमार तिवारी

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हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है । यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है और इसे भगवान शिव की आराधना का सर्वोच्च दिन माना जाता है । महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आत्मानुसंधान, भक्ति, ध्यान और आत्मचेतना को जाग्रत करने का अवसर भी है। इस दिन शिव और शक्ति के पवित्र मिलन की स्मृति भी मनाई जाती है, जो सृष्टि के संतुलन और निर्माण का प्रतीक है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन व्रत, रात्रि-जागरण और रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे शिव कृपा प्राप्त होती है। शिव भक्तों के लिए यह दिन सर्वोपरि है, क्योंकि यह शिवतत्त्व के साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
महाशिवरात्रि का पौराणिक महत्व – भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हिंदू धर्म की अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह केवल एक दैवीय विवाह न होकर शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक भी है, जो संपूर्ण सृष्टि के संतुलन और संचालन के लिए आवश्यक है। स्कंदपुराण, शिवपुराण और लिंगपुराण सहित अनेक ग्रंथों में इस विवाह का विस्तार से उल्लेख मिलता है।
माता पार्वती का पूर्व जन्म में देवी सती के रूप में जन्म हुआ था, जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया, परंतु उनके पिता दक्ष भगवान शिव का अपमान करते थे। जब दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और उनका अपमान किया, तो देवी सती ने क्रुद्ध होकर योगाग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया। इस घटना से शिव अत्यंत व्यथित हुए और उन्होंने वीरभद्र को उत्पन्न कर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया।
देवी सती ने पुनः हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। वे पूर्व जन्म से ही शिव की अर्धांगिनी थीं, अतः इस जन्म में भी उन्हें प्राप्त करने के लिए उन्होंने घोर तपस्या की। शिवपुराण के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पुनः प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने हिमालय पर्वत पर कठिन व्रतों का पालन किया और कई वर्षों तक केवल पत्तों का सेवन करते हुए तपस्या की। अंततः उन्होंने निर्जल और निराहार रहकर ध्यान किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और विवाह का संकल्प लिया। शिवपुराण के “विद्येश्वर संहिता” में यह वर्णित है कि माता पार्वती की तपस्या देखकर सप्तऋषियों ने भगवान शिव से इस विवाह के लिए अनुरोध किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
शिव और पार्वती के विवाह की बारात अत्यंत अद्भुत और अलौकिक थी। शिवपुराण में वर्णित है कि भगवान शिव की बारात में भूत-प्रेत, योगी, नाग, सिद्ध, गंधर्व, किन्नर, और अघोरी शामिल थे। उनकी यह विचित्र बारात देखकर पार्वती की माता मैना देवी चिंतित हो गईं, किंतु जब शिव ने दिव्य रूप धारण किया, तब सभी ने उन्हें सहर्ष स्वीकार किया। शिव और पार्वती का विवाह विधिपूर्वक मंत्रों, यज्ञ और देवताओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ। इस विवाह से शिव और शक्ति का मिलन हुआ, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड में संतुलन स्थापित हुआ।
महाशिवरात्रि और विवाह का संबंध
महाशिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का महान पर्व है और इसे शिव-पार्वती विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।
लिंगपुराण में उल्लेख मिलता है कि इस दिन शिव और पार्वती का पवित्र विवाह हुआ था।
स्कंदपुराण में बताया गया है कि इस दिन शिव के तांडव और आनंद तांडव का विशेष महत्व है।
शिवमहापुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने पार्वती को यह आशीर्वाद दिया कि जो भी श्रद्धा-भक्ति से इस दिन व्रत करेगा, वह समस्त इच्छाओं की पूर्ति करेगा।
महाशिवरात्रि की रात्रि को चार प्रहरों में विभाजित किया जाता है, जिसमें प्रत्येक प्रहर में शिव की पूजा विशेष विधि से की जाती है।
दार्शनिक और आध्यात्मिक महत्व
शिव और पार्वती का विवाह केवल लौकिक विवाह न होकर ब्रह्मांडीय संतुलन का प्रतीक है।
शिव – पुरुष तत्व, पार्वती – प्रकृति तत्व : शिव परम तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो निराकार, निर्विकार और ध्यानमग्न रहते हैं, जबकि पार्वती सृजन शक्ति हैं, जो जीवन और गति प्रदान करती हैं। उनके मिलन से ही सृष्टि का संतुलन बना रहता है।
योग और भक्ति का समन्वय – शिव योग के प्रतीक हैं और पार्वती भक्ति की। उनके विवाह से यह संदेश मिलता है कि योग और भक्ति का समन्वय आवश्यक है।
गृहस्थ आश्रम का महत्व  – भगवान शिव संन्यासी रूप में थे, किंतु माता पार्वती के साथ विवाह कर उन्होंने गृहस्थ आश्रम की महत्ता को स्थापित किया। इससे यह संदेश मिलता है कि संतुलित जीवन के लिए योग और गृहस्थ दोनों की आवश्यकता है।
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह केवल धार्मिक कथा नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्व भी रखता है। यह शिव और शक्ति के दिव्य मिलन का प्रतीक है, जिससे सृष्टि का निर्माण, संचालन और संहार तीनों संभव होते हैं। महाशिवरात्रि को यह विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो हमें भक्ति, साधना और आत्मसंयम का महत्व सिखाता है। इस पवित्र विवाह का स्मरण हमें यह प्रेरणा देता है कि निष्ठा, भक्ति और तपस्या से जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
लिंगपुराण और शिवमहापुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। एक कथा के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु में यह विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। तभी भगवान शिव ने एक अनंत प्रकाशस्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट होकर दोनों की परीक्षा ली। ब्रह्मा ऊपर और विष्णु नीचे इस स्तंभ का अंत खोजने चले गए, लेकिन वे असफल रहे। इस घटना के बाद दोनों ने भगवान शिव की महिमा को स्वीकार किया और उनकी आराधना करने लगे। इसीलिए इस दिन शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
शिवपुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब उसमें से अनेक दिव्य वस्तुएँ निकलीं, लेकिन उनके साथ हलाहल विष भी निकला। यह विष इतना भयंकर था कि इससे संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो सकता था। देवता और असुर भयभीत हो गए और वे भगवान शिव की शरण में पहुँचे। भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। यह घटना महाशिवरात्रि के दिन घटी थी, जिससे यह दिन शिवजी के त्याग और लोककल्याणकारी स्वरूप का प्रतीक बन गया।
महाशिवरात्रि से जुड़ी एक अन्य लोककथा में चित्रभानु नामक एक शिकारी का उल्लेख मिलता है। वह एक दिन शिकार की तलाश में जंगल में भटकता रहा और भोजन न मिलने के कारण एक बेल वृक्ष पर रातभर बैठा रहा। अज्ञात रूप से उसने बेलपत्र शिवलिंग पर गिरा दिए और पूरी रात जागता रहा। यह संयोगवश महाशिवरात्रि की रात थी। इस अनजाने पूजन के कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह कथा इस बात को दर्शाती है कि शिव की भक्ति में सरलताऔर निष्कपटता ही मुख्य हैं।
आध्यात्मिक एवं दार्शनिक संदेश
महाशिवरात्रि केवल उपवास, जागरण और अनुष्ठानों का पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने का भी अवसर प्रदान करता है। इस पर्व का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है।
1. शिवतत्त्व का साक्षात्कार – भगवान शिव न केवल एक देवता हैं, बल्कि वे ब्रह्मांड के मूलभूत तत्त्व के प्रतीक भी हैं। शिव तत्त्व का अर्थ है—शाश्वत सत्य, अनंत ऊर्जा और दिव्य चेतना। महाशिवरात्रि के दिन हम इस तत्त्व को अपने भीतर अनुभव करने का प्रयास करते हैं।
2. आत्मसंयम और साधना का महत्व – इस दिन उपवास, रात्रि-जागरण और ध्यान का विशेष महत्व है। ये साधनाएँ मनुष्य को आत्मसंयम और आत्मचेतना की ओर ले जाती हैं। शिव का ध्यान हमें आंतरिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
3. सांसारिक बंधनों से मुक्ति
शिव को संन्यास और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। वे मोह-माया से मुक्त हैं और हमें भी यह शिक्षा देते हैं कि संसार में रहकर भी हम अपने मन को विकारों से मुक्त कर सकते हैं। महाशिवरात्रि हमें इस वैराग्य की भावना को आत्मसात करने की प्रेरणा देती है।
4. नैतिकता और सद्गुणों का विकास – भगवान शिव सत्य, करुणा, त्याग और भक्ति के प्रतीक हैं। महाशिवरात्रि के दिन उनकी आराधना हमें अपने भीतर इन गुणों का विकास करने की प्रेरणा देती है।
महाशिवरात्रि की उपासना विधि – महाशिवरात्रि के दिन भक्त विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन उपवास रखने और रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है।
1. व्रत एवं उपवास – महाशिवरात्रि के दिन भक्तजन व्रत रखते हैं और केवल फलाहार ग्रहण करते हैं। कुछ लोग निर्जला व्रत भी रखते हैं, जो अधिक तपस्या का प्रतीक माना जाता है।
2. रुद्राभिषेक एवं पूजन – इस दिन शिवलिंग का अभिषेक गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद और बेलपत्र से किया जाता है। शिवपुराण में कहा गया है कि इन पदार्थों से अभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
3. रात्रि-जागरण एवं शिव नाम संकीर्तन – महाशिवरात्रि के दिन रात्रि-जागरण करने का विशेष महत्व है। इस दौरान भक्तजन भगवान शिव के भजन-कीर्तन करते हैं, शिव चालीसा, शिव तांडव स्तोत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं।
4. ध्यान एवं साधना – शिव ध्यान करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह ध्यान हमें आंतरिक चेतना की ओर ले जाता है और शिवतत्त्व का अनुभव कराता है।
महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो हमें शिवतत्त्व को समझने और अपने जीवन में उतारने का अवसर प्रदान करती है। भगवान शिव का ध्यान, उपवास, रुद्राभिषेक और साधना हमें जीवन में संयम, संतुलन और शांति प्रदान करते हैं। इस दिन की गई आराधना और ध्यान मनुष्य को आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर ले जाता है। महाशिवरात्रि का पर्व हमें यह भी सिखाता है कि शिव केवल पूजनीय देवता ही नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि की चेतना के प्रतीक हैं।
डा. रणजीत कुमार तिवारी
सहाचार्य एवं अध्यक्ष,
सर्वदर्शन विभाग,
कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय, नलबारी, असम
ॐ नमः शिवाय । हर हर महादेव!

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