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दिवाली तो हर साल मनाते हैं, पर जो बात मायके की दिवाली में थी, वह बात और कहाँ।
दिवाले से पहले स्कूल के, बंद होने का इंतज़ार।
बाज़ार से जाकर, पटाखे लाने का इंतज़ार । इनमें छुपा होता था, कितना सुखद संसार । सजना- संवरना, सुंदर दिखना और इंतज़ार होता था माँ की दालपुरी और मालपुए का आज ज़िंदगी बड़ी बेस्वाद – सी लगती है क्यूंकि बाज़ार की मिठाइयों में माँ के हाथों का स्वाद कहाँ दिवाली तो हर साल मनाते हैं पर जो बात मायके की दिवाली में थी वह बात और कहाँ ?
(अनीता सिंह, प्र. स्ना. हिंदी, ज. न. वि. गोलाघाट, असम)





















