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भारतीय समाज और संस्कृति में मोर या मयूर एक अलग ही स्थान रखने वाला पक्षी है। जानकारी देना चाहूंगा कि 26 जनवरी सन 1963 में मोर को भारत के राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया गया था। यह बहुत ही चिंताजनक है कि आज इस राष्ट्रीय पक्षी के अस्तित्व पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। कभी इस पक्षी का शिकार करने,कभी अधिक सर्दी व प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों के कारण, कभी जहरीले दाने डालने के कारण, कभी बिजली के तारों से चिपकने से,
तो कभी कुत्तों द्वारा मोर का शिकार होने के कारण यह राष्ट्रीय पक्षी दिन-ब-दिन खतरे में है। पंख और मांस के लिए अवैध शिकार, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की खपत के कारण मृत्यु, किसानों द्वारा फसलों को नुकसान को रोकने के लिए जहर और पारंपरिक दवाओं के लिए विभिन्न भागों का प्रयोग भारतीय मोर के लिए बड़े खतरे साबित हो रहे हैं। यहां तक कि मोर का मांस परोसने का चलन बढ़ रहा है, क्यों कि इसके मांस को स्वादिष्ट माना जाता है और बेंगलुरु, तमिलनाडु, तेलंगाना और मध्य प्रदेश से भी मामले सामने आए हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि मोर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से भी जुड़े हैं। विभिन्न धर्मों, लोक कथाओं और पौराणिक कथाओं में मोर की इस भूमिका ने जहां एक ओर पारंपरिक रूप से मोर को सुरक्षा प्रदान की और संरक्षित किया, वहीं दूसरी ओर दूसरा पहलू उनकी हत्या का कारण बन गया। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में मध्यप्रदेश के जिले के कोलारस वन परिक्षेत्र के संगेस्वर गांव में एक ग्रामीण शिकारी ने नॉन वेज खाने के लिए राष्ट्रीय पक्षी मोर का ही शिकार कर लिया। नवंबर 2023 में अलीगढ़ में राष्ट्रीय पक्षी मोर की बिजली के तारों से चिपक कर मौत हो गई थी। जून 2023 में मीडिया के हवाले से खबर आई थी कि राजस्थान के डीडवाना जिले में गच्छीपुरा थाना इलाके में 12 मोर मृत मिले थे। इसके बाद वहां चार मोर मृत पाए गए।उल्लेखनीय है कि मोरों को जहरीला दाना खिलाकर घुमंतू जाति के लोग शिकार कर रहे हैं। वातावरण में लगातार बदलाव और जंगलों के कटाव, बढ़ती आबादी (जनसंख्या), औधोगिकीकरण, शहरीकरण के कारण मोरों कि संख्या अब धीरे-धीरे घटने लगी है। पाठकों को यहां जानकारी देना चाहूंगा कि भारत के अलावा मोर किसी और देश का राष्ट्रीय पक्षी नहीं है। बहरहाल, यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि इस वर्ष जनवरी में ही नन्दौली के मजरा जमोरिया में संदिग्ध परिस्थितियों में राष्ट्रीय पक्षी मोर का शव मिला था। फ़रवरी 2024 यानी कि इसी महीने में एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से यह खबर आई थी कि सर्दी के कारण निमोनिया संक्रमण से तालछापर अभयारण्य से सटे गांव रामपुर की रोही में पिछले दो दिन में 28 मोर की मौत हो गई। इतना ही नहीं, कुछ समय पहले रामपुरा तहसील मुख्यालय के अंतर्गत आने वाले समीपस्थ ग्राम जन्नोद में राष्ट्रीय पक्षी मोर का शिकार कर उन्हें पकाने की तैयारी में कर रहे तीन शिकारियों को ग्रामीणों ने धार दबोचा था । तलाशी के दौरान उनके कब्जे से पांच मृत मोर मिले थे । कुछ समय पहले किठौर,मेरठ में भी राष्ट्रीय पक्षी मोर के शिकार का एक मामला सामने आया था। पाठकों को बताता चलूं कि कुछ समय पहले मध्य प्रदेश के कटनी जिले में राष्ट्रीय पक्षी मोर से बर्बरता करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था। इस वीडियो में दिखा कि एक लड़का मोर के पंखों को बर्बरता पूर्वक नोंच रहा था और उसके साथ एक लड़की भी मौजूद थी । वर्ष 2022 में हरियाणा के रोहतक मालगाड़ी की चपेट में आने से राष्ट्रीय पक्षी मोर की मौत हो गई थी। कुछ समय पहले
उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में कुछ अज्ञात कार सवार शिकारियों ने राष्ट्रीय पक्षी मोर की हत्या कर दी थी। वर्ष 2017 में भी राजस्थान के बूंदी जिले के घाटोन में भी 16 मोर मृत मिले थे। फ़रवरी 2022 में एक दैनिक के हवाले से यह खबर आई थी कि राजस्थान के प्रतापगढ़ में साल 2018 के 1,078 मोर की संख्या के मुकाबले इस बार 329 घटकर 749 रह गई। यह पिछले 5 सालों की सबसे कम संख्या है। एक साल में ही लगभग एक चौथाई संख्या घटना वन्यजीव प्रेमियों के लिए गंभीर चिंता का विषय बना। एक राज्य से दूसरे राज्य और यहां तक कि विदेशों में भी मोर के पंखों की तस्करी होती है। जानकारी देना चाहूंगा कि सोलह सितंबर 2014 को केरल के कोच्चि हवाई अड्डे पर सिंगापुर जाने वाले एक यात्री से सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा 29.8 किलोग्राम मोर पंख जब्त किए गए थे। वर्ष 2020 में एक फर्म द्वारा लगभग 5.5 करोड़ मोर के पंखों की चीन में तस्करी की गई थी। करीब 2,565 किलोग्राम की खेप की कीमत 5.25 करोड़ रुपये थी और इसे 77 पैकेजों में पैक किया गया था। यह भी जानकारी मिलती है कि आगरा और राजस्थान से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की मोर पंख की मांग पूरी की जाती हैं, जबकि ओडिशा ऐसे पंखों का सबसे बड़ा खरीदार है।हाल फिलहाल खबरें राजस्थान के भीलवाड़ा जिले से आ रही है। भीलवाड़ा से राष्ट्रीय पक्षी मोर के बारे में जो खबर आई है, वह चौंकाने वाली है, क्यों कि इसके अनुसार भीलवाड़ा जिले का शुभंकर कहलाने वाले राष्ट्रीय पक्षी मोर की आबादी चालीस फीसदी घटी है। पुलिस के आंकड़े बताते है कि महज सात साल में मोर की हत्या के दो हजार से अधिक मामले दर्ज हुए हैं, जो कि एक बड़ी संख्या है। इनमें पीपुल फॉर एनीमल्स संस्था ने 359 मुकदमे विभिन्न जिलों में दर्ज कराए। प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से आई खबर में बताया गया है कि पीपुल फॉर एनीमल्स संस्था ने हाल ही में अजमेर जिले के बांदनवाड़ा कस्बे के बगराई चरागाह में 50 से अधिक मोरों एवं बूंदी जिले के नैनवा तहसील के भांडेड़ा में बांसी कस्बे के निकट 5 मोरों की जहरीले दाने डाल हत्या की प्राथमिकी सम्बंधित पुलिस अधीक्षक को दी। वन्य जीव प्रेमियों का आरोप है कि पुलिस और वन विभाग की अनदेखी व ढिलाई से शिकारी प्रतिदिन मोरों की हत्या कर रहे हैं। हत्या का मुख्य कारण मोर पंखों को महंगे दामों में बिकने और उनका मांस हासिल करना है।मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित हुए 60 वर्ष से ऊपर हो गए हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं दिखता। मीडिया के हवाले से आए दिन मोरों की तस्करी या शिकार की जानकारियां लगातार सामने आती रहती हैं। यह विडंबना ही है कि घरेलू बाजार में मोर के पंखों से बनी वस्तुओं के व्यापार और इस्तेमाल की आज छूट है। हालांकि, यह छूट मोर के शिकार की बड़ी वजह है। जानकारी देना चाहूंगा कि धारा 43 (3)ए व 44(1) में दी गयी यह छूट इस आधार पर दी गई थी कि इस्तेमाल किए गए पंख प्राकृतिक रूप से गिरे होने चाहिए। एक अक्टूबर 1999 से विदेश व्यापार नीति के तहत मोर के पंखों या उनसे बनी कलाकृतियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यद्यपि मोर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित है और धारा 51 (1-ए) के अंतर्गत मोर की हत्या के जुर्म में सात साल तक की सजा हो सकती है, फिर भी भारतीय मोर खतरे में है। बहरहाल, जानकारी देना चाहूंगा कि राजस्थान ने सर्वप्रथम मोर की गणना दिसंबर 2017 में शुरू की थी। इसके अनुसार कुल 3,43,869 मोर में से 1,26,015 मोर, 1,55,281 मोरनी और 62,573 युवा पक्षी पश्चिमी राजस्थान में हैं, जिसमें जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, सिरोही और जालोर जिले शामिल हैं। दूसरी गणना जून 2018 में की गई थी। बहरहाल, आज इस राष्ट्रीय पक्षी के अवैध शिकार को देखते हुए, पर्याप्त और उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में मोर की सुरक्षा धारा 51(1-A ) के तहत की जाती है, जिसमें मोर की हत्या या शिकार करना कानूनी अपराध है। अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसको सजा दी जाएगी। बता दें कि इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति मोर की हत्या कर देता है तो उसको कम से कम 7 साल की जेल हो सकती है। इसके अलावा मोर को पालने पर भी कड़ी सख्ताई और पाबंदी हैं कोई भी व्यक्ति मोर को अपने घर में नहीं पाल सकता है। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर हम हमारे राष्ट्रीय पक्षी की रक्षा व संरक्षण कैसे करें ? तो इसके लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची I प्रजाति होने के नाते मोर की मृत्यु के सभी मामलों की जांच की जानी चाहिए और प्राथमिकता के आधार पर इसका समाधान भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही मोर के पंख और उनसे बनी वस्तुओं के हस्तांतरण, परिवहन और व्यापार पर केवल वन्यजीव अधिनियम के भीतर ही छूट प्रदान की जानी चाहिए। वास्तव में, सरकार को मोर पंखों के व्यापार पर तत्काल प्रतिबंध लगाने और संरक्षण पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए। इतना ही नहीं, जिस प्रकार वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ और सूची के अन्य जीवों को संरक्षण प्राप्त है उस ही तरह राष्ट्रीय पक्षी मोर को भी संरक्षण प्राप्त हो। मोर पंखों के अवैध व्यापार पर रोक लगाने के लिए कानून का सख्ती से पालन जरूरी है। शिकारियों और अवैध विक्रेताओं को बिना किसी कानूनी दंड के नहीं छोड़ा जाना चाहिए। अधिकारियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 57 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए।मोर के अवैध शिकार व अन्य क्रूरता को रोकने के लिए वन विभाग और पुलिस के साथ ही स्थानीय लोगों और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी भी जरूरी है।हमें आम आदमी को भी जागरूक करने की जरूरत है कि किसी भी कारण से मोर का शिकार पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके अलावा,किसानों को मोर के पारिस्थितिक महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। मोर के कारण फसल के नुकसान के मामलों में कुछ मुआवजा किसानों को दिया जा सकता है लेकिन राष्ट्रीय पक्षी या किसी भी अन्य पक्षी को जहर देकर मारना किसानों की समस्या का समाधान कतई नहीं है। आज मोर के अवैध व्यापार को रोकने के लिए कई याचिकाएं और जन-जागरूकता अभियान लगातार चलाए जा रहे हैं। मोर संरक्षण के लिए कई संस्थाएं 15 नवंबर को विश्व मयूर संरक्षण दिवस घोषित करने की मांग भी कर रही हैं, इस पर विचार किया जाना चाहिए। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि सदियों सदियों से मोर भारत देश की विभिन्न कलाओं, वास्तुकला, किंवदंतियों और धर्मों में घूमते रहे हैं। सच तो यह है कि भारत में अक्सर इसे परंपराओं, मंदिर में चित्रित कला, पुराण, काव्य, लोक संगीत में जगह मिली है। हमें अपनी संस्कृति, परंपराओं को बचाये एवं संजोए हुए रखना है। मोर हमारे देश की आन बान और शान है। हमें यह चाहिए कि हम हर हाल व परिस्थितियों में मोरों की रक्षा करें वरना कहीं ऐसा न हो कि मारीशस के डोडो पक्षी की भांति हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी सिर्फ और सिर्फ किताबों में ही देखने को रह जाए !
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।