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प्रेरणा प्रतिवेदन मुंबई, 21 दिसंबर 2024: साठये महाविद्यालय, मुंबई में 19 दिसंबर को आयोजित अंतरराष्ट्रीय परिचर्चा “राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हिंदी एवं भारतीय ज्ञान परंपरा” ने शिक्षा, भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में नई संभावनाओं की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस परिचर्चा के मुख्य अतिथि विश्व हिंदी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. विपिन कुमार ने अपने प्रेरक संबोधन में हिंदी को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अधिक मजबूती से शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. विपिन कुमार ने कहा, “हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह हमारी भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का जीवंत प्रतीक है। इसे शिक्षा के हर स्तर पर समुचित महत्व देना न केवल हमारी पहचान को सशक्त करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी हमारी विरासत को मजबूती प्रदान करेगा।”
इस कार्यक्रम में कैलिफ़ॉर्निया से विशिष्ट शिक्षाविद् डॉ. अलका मनीषा, साठये महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. माधव राजवाड़े, और हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं परिचर्चा संयोजक डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने भी अपने विचार साझा किए। परिचर्चा में नई शिक्षा नीति के तहत हिंदी और भारतीय ज्ञान परंपरा के संवर्द्धन से जुड़े विभिन्न पहलुओं और चुनौतियों पर गहन चर्चा हुई।
डॉ. प्रदीप कुमार सिंह ने परिचर्चा की पृष्ठभूमि रखते हुए कहा, “हिंदी और भारतीय ज्ञान परंपरा का संरक्षण और संवर्द्धन हमारी शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला होनी चाहिए।” उन्होंने शिक्षा नीति में भाषाई समावेशिता के महत्व को रेखांकित किया।
इस अवसर पर देश-विदेश के शिक्षाविदों ने हिंदी भाषा को आधुनिक संदर्भों में प्रासंगिक बनाने और भारतीय ज्ञान परंपरा को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए ठोस रणनीतियों पर चर्चा की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों और शिक्षाविदों ने भाग लिया।
यह परिचर्चा न केवल हिंदी के महत्व को समझने का एक सशक्त मंच साबित हुई, बल्कि शिक्षा, संस्कृति और भाषा के क्षेत्र में भारत की वैश्विक पहचान को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में मानी गई।