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मुल्क चलो आंदोलन के 102 वर्ष पूर्ति पर निबिया में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित 

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ये एक्सोडस नहीं, मुक्ति का आंदोलन था

21 मई, निबिया, करीमगंज से विशेष प्रतिनिधि द्वारा: चरगोला  एक्सोडस 1921 (मुल्क चलो आंदोलन) भारतीय इतिहास में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुआ सबसे बड़ा श्रमिक आंदोलन, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जलियांवाला बाग से भी बड़े नरसंहार को अंजाम दिया गया था मगर नियति की परिहास देखिए कि इतिहास के पन्नों में ना तो उस आंदोलन को जगह मिली और नाही उसके सूत्रधारों को। उन शहीदों की स्मृति में आज करीमगंज जिले के निबिया चाय बागान में श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पुरे बराक वैली (काछाड़, करीमगंज व हाइलाकांदी) से लोगों ने भाग लिया।

समारोह के मुख्य अतिथि डा. सुजीत तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि वामपंथी इतिहासकारों ने अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने एक्सोडस लिखा, कुली शब्द का प्रयोग किया। ये एक्सोडस नहीं था, मुक्ति का आंदोलन था, देशबंधु चितरंजन दास ने इसे स्वाधीनता संग्राम कहा था। अंग्रेज खेती के लिए हमारे पूर्वजों को विदेशों के साथ ही असम भी लाए। अंग्रेजों ने हमारे पूर्वजों पर और कथनी अत्याचार जुल्म किए। खरील बागान में अंग्रेज अधिकारी की कूदृष्टि एक युवती पर पड़ी, विरोध करने पर उसके माता-पिता को गोली मारकर हत्या कर दिया। इसका सर्वत्र विरोध हुआ, यहां से अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का वातावरण तैयार हुआ। उन्होंने मुल्क चलो आंदोलन के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की।

कार्यक्रम के संचालक दिवाकर राय ने अपने वक्तव्य में आंदोलन के इतिहास की उपेक्षा पर सवाल उठाया और कहां कि आजादी के इतने बड़े आंदोलन को अबतक छुपा कर रखा गया। समारोह के मुख्य आयोजक श्याम नारायण यादव ने स्वागत भाषण दिया। पत्रकार और कार्यक्रम के आयोजकों में एक मनोज मोहंती ने अपने वक्तव्य में कहा कि मेरे पिताजी स्वर्गीय राधाकृष्ण मोहंती ने स्वर्गीय विद्याधर त्रिपाठी से मुल्क चलो आंदोलन के बारे में अनेक जानकारी पायी थी, जिसकी हस्तलिखित पांडुलिपि मेरे पास है। इसे जल्दी ही पुस्तक रूप में प्रकाशित करने की योजना है।

इतिहास संकलन समिति के कार्यकर्ता अध्यापक निलांजन दे ने कहा कि हमारी कमजोरी ये है कि अंग्रेजों ने जो लिखा, हमने उसे ही सच मान लिया। अंग्रेजों के चाटुकार वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे इतिहास का सर्वनाश किया। उन्होंने कहा कि ये श्रमिक आंदोलन नहीं स्वाधीनता संग्राम था।

वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी दिलीप कुमार ने अपने वक्तव्य में शहीदों के लिए जो भी जरूरी होगा, उसमें प्रेरणा भारती की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। बराक चाय श्रमिक यूनियन के सचिव बाबूल नारायण कानू ने अपने वक्तव्य में बताया कि आज मूल्क चलो आंदोलन के शहीदों को बराक घाटी के सभी चाय बागानों में  श्रद्धांजलि दी गई। उन्होंने बताया कि यूनियन के महासचिव राजदीप ग्वालाजी ने यूनियन कांपलेक्स में शहीद वेदी निर्माण करने की घोषणा की है तथा युनियन की नवगठित समिति इस आंदोलन के बारे में पुरे बराक घाटी में कार्यक्रम करेगी। 

शिक्षाविद लक्ष्मी निवास कलवार ने इन शहीदों को राष्ट्रीय व प्रांतीय स्तर पर मान्यता देने तथा महिमा मंडन करने की मांग की। चक्राधिकारी सतीश कुमार गुप्ता और अन्य कई वक्ताओं ने भी अपना विचार प्रकट किया तथा शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

वंदे मातरम और देशभक्ति गीत के पश्चात शहीद वेदी पर अतिथियों ने दीप प्रज्वलन और पुष्प अर्पित करके शहीदों को श्रद्धांजलि दी। करीमगंज के सांसद कृपानाथ माला का श्रद्धांजलि संदेश रजत भट्टाचार्य ने पाठ किया।

चंदन त्रिपाठी ने शहीदों की स्मृति में स्वरचित कविता पाठ किया, छात्राओं ने सामूहिक गीत प्रस्तुत किया, वीर रस कविता पाठ, संजय ग्वाला ने भोजपुरी कविता पाठ किया। लक्ष्मण रविदास ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया।

मंचासीन अतिथियों में शिलचर से आए वरिष्ठ समाज सेवी दुर्गेश कुर्मी, प्रदीप कुर्मी, सुभाष चौहान, युगल किशोर त्रिपाठी, कंचन सिंह, केशव दीक्षित तथा स्थानीय विशिष्ट व्यक्तित्व चंद्रशेखर पांडेय, शिवनारायण राय, राधेश्याम कोईरी, संजय गोस्वामी, उमाशंकर बनिया, राधेश्याम कोहार, आशु ग्वाला, विजय कानु, पंकज रायशर्मा, देव कुमार कुर्मी आदि शामिल थे। आयोजन में अनुप कोईरी, राजदीप राय, प्रेमचंद रायशर्मा, ब्रजेश पांडेय आदि अनेकों कार्यकर्ताओं ने सक्रिय सहयोग किया। कार्यक्रम में उपस्थित अन्य प्रमुख व्यक्तियों में गणेश लाल छत्री, योगेश दूबे, संजीव सिंह, रितेश नुनिया, राधेश्याम कोईरी, चौधरी चरण गोड़, आनंद दूबे, परमेश्वर गोस्वामी,  रामकुमार गोस्वामी, जयकिशन कोईरी, अनिल कानु आदि शामिल थे।

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