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आजादी की सुप्त कथा एक मेरे हाथ लगी है आज।
चंद शब्दों में बयां करूंगा अंदर आग लगी है आज।।
पढ़कर सीना कांप उठा और अंतर्मन थर्रा गया।
बंधक बनकर कौन जिआ, मैं सोच कर घबरा गया।।
घेरे में क्या आग कभी भी रोक के रक्खा जाता है।
भुला था बृटीश हुकुमत ये ना संभव होता है।।
जिनके अंदर देश प्रेम का, हरदम आग धधकता था।
परतंत्र की सांकल में क्या, उनका मन चहकता था।।
समय की पहिया घुम चला और आखिर वो संयोग बना।
असहयोग आंदोलन का था , गांधी का उद्योग बना।।
रणनीति रचा सबने मिलकर, गिरमिटिया को तोड़ेंगे।
आजादी की पथ की बाधा,को हम ना यूं छोड़ेंगे।।
पण्डित देवशरण त्रिपाठी, राधाकृषण डोले थें।
राम जानकी मंदिर में ही , गंगा जी भी बोले थे।।
मर जाएंगे मिट जाएंगे पर ना हिम्मत हारेंगे।
गांधी जी के साथ चलेंगे औरो को ललकारेंगे।।
मुल्क चलो आंदोलन वैली चरगोला से छिड़ा था।
सिंगला छोड़ा की टिला से जा गौरों से भीडा था।।
जलियांवाला बागी से भी बढ़कर नरसंहार हुआ।
यूं कैसे भुल जाएं हम जो हमपर अत्याचार हुआ।।
निर्मम पापी आदमखोर वो अत्याचारी दानव थें।
मानवता न दिल में थी वो सुरत से ही मानव थे।।
इन बीरों का निर्णय उनके शासन को जब लांघ दिया।
तब उन्होंने विचलित होकर मार गिराना थान लिया।।
चांदपुर का रैल स्टैशन इस घटने का साख बना।
अंधाधुंध फायरिंग हुई तो जड़ चेतन निर्वाक बना।।
बच्चे बुढ़े नर नारी सब हंस हंस कर शहीद हुए।
उनकी गिनती कौन करे जो गर्भों में शहीद हुए।।
जहाज लगी स्टीमरघाट, डॉक-वे भरा खचाखच था।
धोखे से गिरवा डाला, ये हादसा अचानक था।।
सैकड़ों की जानें गईं और, कितने ही सिंदूर धुए।
कोंख में पलते भ्रूण के कितने,सपने चकनाचूर हुए।।
नियति की परिहास ने आकर, फिर से खेला खेल गया।
इतिहासों के पन्नों से उस, संघर्ष को धकेल गया।।
अब हमें जग जाना होगा, ये हमारी बारी है।
उन वीरों की साहस गाथा लिखने की तैयारी है।।
चंद्र कुमार ग्वाला,शिलचर (असम)