अंग्रेजी शासन का एक
इतिहास आज सुनाता हूं।
अमर शहीदों की बलिदानी
गाथा पंचो गाता हूं।
नयन नयन में आंसू था तब,
भूखे पेट गरीबों की
गिरमिट के बंधन में जकड़े
अंग्रेजी हुकूमत की।
आश नहीं कोई बास नहीं था
चाय बागान मजदूरों की।
देव शरण त्रिपाठी का
मजबूत विशाल ललकारा था
घर वापस अब लौट चलें सब
गंगा दयाल का नारा था
राधा कृष्ण के सफल चाल ने
चरगोला को गोल किया
नहीं मानेंगे शासन बर्बर
अंग्रेजों को बोल दिया ।
चल पड़े हजारों श्रमिक
बांध कफन लीलारों पर
आर्थिक बिजली गिर पड़ी थी
अंग्रेजी मक्कारों पर
1921 का पद्मा नदी हमारी साक्षी है
वीर शहीदों की लाशों की वही समेटे राखी है
अंग्रेजों की बंदूके निर्मम
चल पड़ी मजदूरों पर
गांधी बाबा की जय कारा
गूंज रही क्षितिजों पर
नहीं भूलेंगे बलिदान हम
देव शरण त्रिपाठी कि
जोरहाट के जेल में जिसने
अनशन कर तन त्याग दिया
भारत मां का एक सेवक
अंग्रेजी को नक्कार दिया।
नहीं भूलेंगे बलिदान
हजारों वीर शहीदों कि
कविता के हर शब्द सुमन
श्रद्धा है वीर सपूतों की।
-चंदन त्रिपाठी
लालछोरा चाय बागान