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मेहरपुर में समाजसेविका का मुखौटा उजागर!अपनी ही बेटी ने किया खुलासा,माँ ही मेरी अत्याचारी

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शिलचर-मेहरपुर में घटी एक मार्मिक घटना ने पूरे शहर में हलचल मचा दी है। जो महिला समाज के सामने खुद को समाजसेविका बताती हैं, जो आंदोलन के मंच से सुधार और मानवाधिकार की बातें करती हैं, जो राजनीतिक दलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सड़कों पर नारे लगाती हैं वही महिला अपने ही घर में सबसे अमानवीय रूप में सामने आईं! पीड़िता कोई और नहीं, बल्कि उनकी ही 15 वर्ष की नाबालिग बेटी है।
शहर के शिवालिक पार्क इलाके की इस घटना ने सबको स्तब्ध कर दिया। माँ के अमानवीय अत्याचार और असहनीय पीड़ा से तंग आकर बच्ची ने खुद ही चाइल्ड केयर हेल्पलाइन पर फोन किया। उसने अपनी ही माँ से बचाने की गुहार लगाई। अंततः मजबूर होकर किशोरी को होम में ले जाया गया।
आरोपी का उपनाम शर्मा  बताया जा रहा है। आम लोगों का सवाल है, अगर यह कोई साधारण गृहिणी होती तो क्या उसका नाम छुपाया जाता? क्या राजनीतिक दलों की नज़दीकी की वजह से क़ानून भी खामोश है? क्या सत्ता और संगठन का इतना प्रभाव है कि नाबालिग की चीखें दबा दी जाएँ? हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी मीडिया में उसका नाम सामने नहीं आया।
इस घटना को लेकर शिवालिक पार्क के निवासी सोशल मीडिया पर गुस्सा ज़ाहिर करते हुए लिख रहे हैं अगर किसी और की बेटी के साथ ऐसा होता तो नाम-पता सबकुछ हेडलाइन में छापा जाता। लेकिन चूँकि आरोपी राजनीतिक दल की नेतृी और समाजसेविका है, इसलिए क्या उसका नाम छुपाया जाएगा? यह कौन-सा न्याय है? ये लोग समाजसेविका नहीं, समाज-धोखेबाज़ हैं! बाहर सुधार की बातें करते हैं, फेसबुक पर लंबी-लंबी पोस्ट लिखकर लोगों को धोखा देते हैं, आंदोलन के मंच पर नाटक रचते हैं। लेकिन घर के भीतर निर्दयी और क्रूर बन जाते हैं।
उधर, मेहरपुर की ही एक समाजसेविका ने फेसबुक पर लिखा मेहरपुर में कई महिलाएँ समाजसेवा के कार्यों से जुड़ी हुई हैं। नाम बताए बिना इस तरह से ख़बर करने से क्या सभी महिला समाजकर्मियों पर शक की छाया नहीं पड़ रही है?
यह बयान भी अब चर्चा का विषय बन गया है। सवाल उठ रहा है कि क्या एक व्यक्ति के अपराध से पूरे समाजसेवी वर्ग को कलंकित किया जाएगा?
इलाके भर में अब एक ही माँग गूंज रही है आरोपी समाजसेविका का असली चेहरा सामने लाया जाए। उसका नाम और पहचान उजागर कर समाजसेविका का यह नकली तमगा छीन लिया जाए। क्योंकि अगर न्याय अदालत में न भी मिले, तो कम से कम समाज की अदालत में इस धोखेबाज़ी का हिसाब होना चाहिए।

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