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मैंने सुना है देखा है  —डाक्टर श्रीधर द्विवेदी

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मैं स्वतंत्रता काल की संतति हूं ,
मैंने माँ के गर्भकाल में ही ,
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का उद्घोष ,
आजाद हिन्द फौज का गान और निसान ,
अंदमान -निकोबार में उनकी पदचाप ,
सब कुछ देखा और सुना है I
फिर आया चिर प्रतीक्षित ,
पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालिस ,
उससे जुड़ी त्याग आत्मबलिदान ,
शौर्य देशभक्ति की अनंत गाथायें ,
अर्धरात्रि में संसद भवन ,
फिर लालकिले की प्राचीर पर ,
प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का ,
नियति से साक्षात्कार ,
वह ऐतिहासिक लमहा ,
वह कभी भी न भूलने वाला पल पल I
लाखों की संख्या में लोगों का ,
अपने ही वतन से भगाया जाना ,
आगजनी लूटपाट हत्या कदाचार ,
अंतहीन लोमहर्षक समाचार ,
हँस के लिया है पाकिस्तान ,
लड़ के लेंगे हिंदुस्तान के ,
तंग गलियों में वे नारे भी सुने मैंने I
फिर कश्मीर पर कबाईली आक्रमण ,
अनगिनत घाव देने वाले रक्तपात ,
घाटी में आतंकवादी घटनाओं को ,
अंजाम देने वाली अनेक वारदातें I
आयी छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास ,
मील के पत्थर वाला मुकाम ,
टूट गयी सारी बेड़ियाँ और परतंत्र ,
भारत बना गरिमामयी गणतंत्र ,
सत्यं शिवं सुन्दरं हो गया मूलमंत्र,
सार्वभौमिक इंद्रधनुषीय लोकतंत्र I
कुछ काल बीता ही था ,
उन्नीस सौ बासठ में ,
पीठ में छूरा भोंकने वाली ,
चीन की विश्वासघाती चाल ,
अपनी हिमालय जैसी भूल I
वह मंजर भी देखा जब ,
जनवरी उन्नीस सौ छाछठ में ,
गुदड़ी के लाल ने निर्णायक विजय के बाद ,
पराये देश में हृदयाघात से अंतिम प्रयाण किया ,
तिरंगें में लिपट कर मातृभूमि को प्रणाम किया I
मैंने सोलह दिसंबर उन्नीस सौ इकहत्तर का ,
वह लमहा भी देखा है ,
जब भारत की पराक्रमी सेना ने ,
तीसमारखाँ समझने वाली फौज के ,
तिरानबे हजार सैनिकों को ,
आत्मसमर्पण करवाया ,
घुटने टेकने के लिए विवश किया ,
एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का उदय हुआ I
दो हजार साल बाद ,
भारत के सामरिक इतिहास का ,
स्वर्णिम क्षण था वह ,
जब एक नयी इबारत लिखी गयी I
मैं ज्वलंत साक्षी हूं ,
उन्नीस सौ नब्बे में ,
कश्मीरी पंडितों के पलायन का ,
स्वदेश में उनके बलात निर्वासन का ,
जिहाद घृणा धर्मान्धता की अग्नि में ,
जबरन उन्हें झोंके जाने का I
शासन ने कश्मीरियत के नाम पर ,
उनको ठगा और लूटा ,
सबकी आँखों में धूल झोंका ,
बेघर बेदर पंडितों को ,
धूल फांकने पर मजबूर किया I
ग्यारह मई उन्नीस सौ अठ्ठावन ,
वह अभूतपूर्व पल ,
जब पोखरन मरुस्थल में ,
भारत परमाणुविक शक्ति बना I
फिर देखा पड़ोसी के अनेक,
छल कपट आतंक कायरता के नमूने ,
उन्नीससौ चौरासी में सियाचिन ,
हिमनद पर मेघदूत अभियान ,
मई उन्नीस सौ निन्नानबे में कारगिल ,
संसद पर दो हजार एक में ,
अप्रत्याशित आक्रमण ,
मुंबई ताजमहल पर ,
दो हजार आठ में गोलीवर्षा ,
जनवरी दो हजार सोलह में ,
पठानकोट हवाईअड्डे पर बमवर्षा ,
चौदह फरवरी दो हजार उन्नीस में ,
पुलवामा के अंदर सैनिक नरमेध ,
भारत के धैर्य सहनशक्ति की अग्नि परीक्षा ,
अभिनंदन के अपराजेय पराक्रम का अश्वमेध I
साथ ही देख रहा हूं ,
सर्पपंख के लाल खूनी इरादों का ,
लड़ी दर लड़ी कुत्सित कुदृष्टि ,
गलवान घाटी में घटी ,
शूरता की अनगिनत गाथायें I
अध्यात्म योग संस्कृति के बढ़ते आयाम ,
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चिर प्रतीक्षित ,
भव्य मंदिर, काशी विश्वनाथ दिव्यधाम ,
ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार कीर्तिमान I
भारत के अनेक उदीयमान सपूतो को ,
अमेरिका ब्रिटेन मारीशस फिजी सूरीनाम ,
दक्षिण अफ्रीका न्यूजीलैंड आस्ट्रेलिया हालैंड ,
ज्ञान -विज्ञान प्रविधि चिकित्सा हर क्षेत्र में ,
शीर्षस्थ स्थानों पर पहुंचते हुये ,
कौशल दिखाते हुये सुगंध बिखेरते हुये ,
माँ भर्ती के इन ललाम पुत्रों को ,
कोटि कोटि नमन वंदन अभिनन्दन I
उन्नीस सौ उन्नीस बीतते बीतते ,
पूरे उन्नीस सौ बीस भर ,
कोरोना का महातांडव को झेलते हुये ,
आत्मनिर्भर भारत ने लिया ,
टीके मास्क स्वच्छता का सहारा ,
एक नहीं दो लहर किया तीसरे का निपटारा I
पाँच अगस्त दो हजार चौबीस ,
पड़ोसी बांग्लादेश की वह रोमांचकारी घटना ,
सियारों की हुवाँ हुवाँ ,
मीरजाफ़रों की दुरभि संधि ,
अपनों की दगा षड्यन्त्र ,
जमीन से जुड़े रहने की विफलता ,
छात्र जन सैलाब की आड़ में ,
धर्मोन्मादियों ने तख्ता पलट कर दिया ,
और फिर शुरू हुआ अपने ही निर्माता ,
 ‘ आमार सोनार बांग्ला ‘ राष्ट्रकवि की
प्रतिमा का संहार ,
मर्यादा हुई तार तार ,
हिन्दू अल्पसंख्यकों का नर संहार,
राष्ट्रीयता मानवता हुई शर्मसार
यह कैसी कृतघ्नता घृणा है ,
जनसंघर्ष दूसरी स्वतंत्रता है ?
इतिहास के इन अविस्मरणीय क्षणों का ,
साक्षी हूं प्रत्यक्ष अनुभूति की है मैंने ,
माँ भारती के करुणाश्रुओं हर्षाश्रुओं को ,
बड़े समीप से देखा हैं मैंने ,
गर्वोन्नत हुआ हूं ,
क्षुब्ध और कातर भी ,
सहेज रक्खा है अपने उरों में ,
इन पलों सुखद क्षणों को ,
बांट रहा हूं अगली पीढ़ी को ,
ताकि सनद रहे काम आये ,
विगत की गलतियां ,
फिर न दुहराई जाये ,
भविष्य सवंरता रहे ,
देश चौतरफा उन्नति करता रहे ,
स्वाधीनता के अमृत महोत्सव की,
प्रगति पताका हमेशा फहरती रहे ,
अजर अमर सर्वदा लहरती रहे I

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