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न कोई चाहत है।
न कोई ख्वाब है।
समझ नहीं आता
यह जिंदगी मिला क्यूं है।
हर मोड़ पे
खमखाह बेवजह भटकते रहते है।
कभी उदासी में चुप के रोते है।
कभी खुद को मिटा देना चाहते है।
अब तक यूं ही नहीं पता
यह जिंदगी मिला क्यूं है।
नसों के खून और दिलों के धड़कन
पल भर भी नही रुकते।
मैं यूं ही सोचती हूं
यह जिंदगी मिला क्यूं है।
हाजिरा बेगम चौधरी।
बारहवीं कला।
जवाहर नवोदय विद्यालय कछार।