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महाराजा अग्रसेन एक महान युगविभूति एवं युगद्रष्टा थे , उनका आविर्भाव ( जन्म ) लगभग 5146 वर्ष पूर्व महाभारत के उस अंतिम काल मे हुआ , जब भाई भाई सुईं की नोंक जितनी जमीन के लिये आपस में लड़ रहे थे | चारों ओर रक्तपात , हिंसा , स्वार्थ का बोलबाला था | प्रेम , सहयोग , सहिष्णुता जैसे शब्द अपना मूल्य ( महत्व ) खोते जा रहे थे , ऐसे समय में महाराज अग्रसेन का आविर्भाव मानवता के लिये वरदान सिद्ध हुआ , उन्होंने एक नए अग्रोहा राज्य की स्थापना की और अपनी दूरदृष्टि , लोकोपकारिता एवं उदार मूल्यों द्वारा मानव जाति को एक ऐसी देन दी , जो अपने शाश्वत मूल्यों के कारण आज भी अमर है |
अग्रवाल समाज के संस्थापक महाराजा अग्रसेन एक पौराणिक समाजवाद के अग्रदूत, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक और महादानी तथा समाजवाद के पहले जनक थे। महाराजा अग्रसेन अग्रोदय नामक गणराज्य के महाराजा थे, जिसकी राजधानी अग्रोहा थी | महाराजा अग्रसेन का जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की 34वीं पीढ़ी में सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के प्रतापनगर के महाराजा वल्लभ सेन के द्वापर युग के अंत और कलयुग की शुरुवात में आज से लगभग 5146 साल पहले हुआ था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालू राजा थे। अग्रसेन जी के पिता प्रतापनगर के महाराजा वल्लभसेन एवं माता भगवती देवी थे। महाराजा अग्रसेन जी का विवाह नागराज कुमुद की कन्या माधवी जी से हुआ। महाराजा अग्रसेन ने अपने नए राज्य की स्थापना के लिए रानी माधवी के साथ पूरे राज्य का भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें एक जगह एक शेरनी शावक को जन्म देते दिखी। शावक ने महाराजा अग्रसेन के हाथी को अपनी माँ के लिए संकट समझकर तत्काल हाथी पर छलांग लगा दी। इसे दैवीय संदेश समझकर यहां पर नए राज्य की स्थापना कर नये राज्य का नाम अग्रेयगण या अग्रोदय रखा गया और जिस जगह शावक का जन्म हुआ था उस जगह अग्रोदय की राजधानी अग्रोहा की स्थापना की गई। वर्तमान में यह जगह हरियाणा के हिसार के पास हैं। यह स्थान अग्रवाल समाज के लिए पांचवे धाम के रूप में पूजा जाता है। अग्रसेन जी ने अपने राज्य को 18 गणों में विभाजित कर विशाल राज्य की स्थापना की। महर्षी गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 गणाधिपतियों के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ऋषि बने । उन्होंने सबसे बड़े राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। यज्ञों में बैठे इन 18 गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवंश के साढ़े सत्रह गोत्रो (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई ।18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा पैदा हो गई। उन्होंने कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। वर्तमान में अग्रवालों के 18 गोत्र – गर्ग, कुच्छल, तायल, तिंगल, मंगल, मधुकूल, ऐरण, गोयन, बिंदल, जिंदल, नागल, धारण, भंदल, कंसल, मित्तल, गोयल, सिंहल, बंसल है। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत माना जाता है। उन्होने अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना के लिए नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक तत्कालीन प्रचलन का सिक्का व एक ईट देगा, ईटों से वो अपने घर का निर्माण करें एवं रुपयों से व्यापार करें। उन्होंने वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य की पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रंथों में क्षत्रिय वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श कर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विधु के हाथों में सौप कर तपस्या करने चले गए। आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन परम प्रतापी, धार्मिक सहिष्णु समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में जाने जाते है। देश में जगह-जगह उनके नाम से अस्पताल, स्कूल, बावड़ी, धर्मशालाएँ आदि बनवाई गई हैं और ये जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं |
महाराजा अग्रसेन व्यक्ति व समाज की आर्थिक प्रगति एवं स्वावलंबन के पक्षघर थे , वे जानते थे कि राज्य में सदाचार एवं नैतिकता के आदर्श तभी पलते है , जब व्यक्ति का पेट भरा हो , भूखे व्यक्ति को नैतिकता के उपदेश बेमानी है | इसलिये उन्होंने अपनी सम्पूर्ण शक्ति जनता की आर्थिक स्थिति को ऊँचा करने में लगा दी और तलवार के साथ तराजू को भी धारण किया | वे माँ लक्ष्मी के आशक्त थे , इसका अभिप्राय यही था कि सब लोग अपने परिश्रम एवं क्षमता के आधार पर समाज की आर्थिक प्रगति करें और राष्ट्र को सुखसमृद्ध बनाएं , इसलिये उन्होंने अग्रवाल समाज के रूप में एक ऐसे उद्दमी समाज का प्रवर्तन किया , जिसका राष्ट्र के औधोगिक एवं व्यवसायिक विकास में गहरा योगदान है और जो सच्चे अर्थों में लक्ष्मीपुत्र है |
महाराजा अग्रसेन जी ने ” एक ईंट एक रुपया ” की प्रथा भी चलायी , उनके राज्य के बारे में प्रसिद्ध है कि कोई भी नागरिक वहाँ बसने आता , उसे वहाँ के निवासी सम्मानस्वरूप ” एक रुपया और एक ईंट ” का जोड़ा भेंट करते | कहा जाता है कि उनके राज्य में लगभग एक लाख परिवार को मकान बनाने के लिये एक लाख ईंट और व्यवसाय चलाने के लिये एक लाख रुपये प्राप्त हो जाते , इससे वह व्यक्ति आत्म निर्भर हो जाता था , और स्वयं समर्थ होकर अपने समाज के ऐसे ही असहाय , निर्धन लोगों के उत्थान में सहयोगी बनता था | महाराजा अग्रसेन जी का जन्मोत्सव आश्विन शुक्ल एकम अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिन जयंती के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है | जयंती के दिन अग्रसेन जी की विधि – विधान से पूजा – अर्चना कर शोभायात्रा निकाली जाती हैं | अग्रसेन जयंती के शुभ अवसर पर हम यह प्रतिज्ञा लें कि हम अग्र हैं, अग्र ही रहेंगे, अग्रवालों की शान कभी कम न होने देंगे |
प्रस्तुति
संदीप अग्रवाल ( पत्रकार)
दत्ता बागान , डिब्रुगढ़ ( असम )
9706113523
7002613216