234 Views
महापुरुष किसी प्रांत के नहीं होते, वह सारे राष्ट्र के होते है: मुकुल कानिटकर
नई दिल्ली से अभिनंदिता की रिपोर्ट, 25 नवंबर: दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस महाविद्यालय में आयोजित महान अहोम सेनापति लचित बोरफुकन की जयंती समारोह को संबोधित करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार टोली सदस्य श्री मुकुल कानिटकर जी ने कहा कि महापुरुष किसी प्रांत के नहीं होते, वह सारे राष्ट्र के होते है। इस कार्यक्रम का आयोजन युवा (यूथ यूनाइटेड फॉर विज़न एण्ड एक्शन) द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य सेनापति लाचित बोरफुकन के अद्वितीय नेतृत्व, राष्ट्र रक्षा में दिए गए योगदान और अमर वीरता को याद करना था। छात्र, प्रोफेसर और विभिन्न अतिथि इस अवसर पर एकत्र हुए और उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण की। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता मुकुल कानिटकर जी, अखिल भारतीय प्रचार टोली सदस्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ने कहा कि मुगलों को असम में प्रवेश नहीं करने देने वाले वीर लचित बोरफुकन सारे भारत के युवाओं के लिए आदर्श है। पुणे की नेशनल डिफेंस अकैडमी में जो सर्वाधिक अंकों के साथ पास आउट होते हैं उन्हें जो गोल्ड मेडल दिया जाता है उसका नाम लाचित बोरफुकन मेडल है। भारत की सेना के लिए लचित बोरफुकन आदर्श है। उनका जीवन कार्यकर्ता निर्माण का एक अनुपम उदाहरण है।
लचित बोरफुकन के नेतृत्व कौशल पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि लाचित बोरफुकन ने निर्भय होकर, निडरता और साहस से देश की परिस्थितियों का लाभ लेते हुए छापामार युद्ध कौशल का आदर्श स्थापित करते हुए औरंगजेब की राजा राम सिंह के नेतृत्व वाली बहुत बड़ी सेना को परास्त किया। आज भी लचित बोरफुकन हम सब युवाओं के लिए आदर्श सेनापति है। उनसे हम लीडरशिप के, नेतृत्व के कई गुण सीख सकते हैं। और समर्पण के साथ राष्ट्र सेवा की प्रेरणा प्राप्त कर सकते है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देबोजीत बोरकाकाटी ने कहा कि लचित ने कभी व्यक्तिगत हितों को राष्ट्र से ऊपर नहीं रखा। उन्होंने कहा कि आज का युद्ध सीमाओं पर नहीं, बल्कि विचारधाराओं, सांस्कृतिक अस्तित्व और राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्रों में लड़ा जा रहा है। हमें लचित बोरफुकन के समान साहस, नेतृत्व और जागरूकता की आवश्यकता है।
उनकी जीवन से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि जब राष्ट्रीय सम्मान दांव पर हो, तो हर नागरिक एक योद्धा है।
मुख्य अतिथि श्री मदन प्रसाद बेज बरुआह जी, पूर्व सचिव, पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार, ने इस अवसर पर कहा कि लचित बोरफुकन अहोम सेना के सेनापति थे लाचित की देशभक्ति, रणनीतिक नेतृत्व और अग्रिम मोर्चे पर नेतृत्व करने के उनके व्यक्तिगत उदाहरण ने सराइघाट युद्ध में एक निर्णायक जीत सुनिश्चित की और असम के युवाओं की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका अमर कथन, “मेरे चाचा मेरे देश से बड़े नहीं हैं”, देशभक्ति का सार्वभौमिक आदर्श वाक्य होना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि श्री नवरत्न अग्रवाल जी, सी एम डी, बिकानेरवाला फूड प्राइवेट लिमिटेड, ने भी समारोह को संबोधित किया। उन्होंने अध्यात्म पर जोर देते हुए कहा कि इस देश का मूल तत्व अध्यात्म है। अध्यात्म रहेगा ही नहीं तो देश रहकर क्या करेगा।
लचित बोरफुकन का नाम 1671 के ऐतिहासिक सराइघाट युद्ध में उनकी वीरता के लिए सदा अमर रहेगा, जहाँ उन्होंने मुगल सेना के विस्तार को रोकते हुए अहोम साम्राज्य की स्वतंत्रता की रक्षा की। उनकी नेतृत्व क्षमता, रणनीतिक कौशल और राष्ट्र के प्रति समर्पण उन्हें भारत के महानतम योद्धाओं में शामिल करता है।
यह आयोजन न केवल उनकी वीरता की गाथा से परिचित कराता है, बल्कि युवा पीढ़ी को उनके जीवन से यह सीख देता है कि न्याय, एकता और राष्ट्र की अखंडता के लिए दृढ़ रहना आवश्यक है। ऐसे राष्ट्रीय नायकों को स्मरण कर संस्था ने देशभक्ति की भावना और जिम्मेदार नागरिकता को सशक्त करने का संकल्प दोहराया। अंत में झंडेवालान विभाग के युवा सह संयोजक डॉ तरुण ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
आयोजन में राष्ट्रीय गीत के बाद विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सहित कई सम्मानित व्यक्तित्व शामिल थे। इसके पश्चात् श्री बेजबरूआ सहित सभी विशेष अतिथियों का सम्मान किया गया।

श्री देबोजित जी ने अपने संबोधन में लचित बोरफुकन की वीरता, ऐतिहासिक युद्ध कौशल और उनकी अदम्य नेतृत्व क्षमता का स्मरण कराया। उन्होंने भाषण का समापन सराईघाट पर आधारित भूपेन हजारिका के प्रसिद्ध गीत से किया।
रामजस कॉलेज के प्राचार्य श्री अजय अरोड़ा ने असम के गौरवशाली इतिहास, भारतीय संस्कृति में उसकी महत्ता तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में बढ़ती भाषाई विविधता पर प्रकाश डाला।
श्री हिमांशु द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित कविता पाठ “नमन उनका…” ने उपस्थित दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
बिकानेरवाला समूह के श्री नवरत्न अग्रवाल ने प्रेरक संबोधन में लचित बोरफुकन के जीवन से सीखने योग्य मूल्यों—सकारात्मक सोच, आत्म-जागरूकता और आत्म-मूल्य—पर जोर दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री मदन प्रसाद बेजबरूआ ने लचित और चाओ-लोंग सुखाफा द्वारा स्थापित अहोम वंश, असम की भौगोलिक विशिष्टताओं, सैनिक रणनीतियों और मुगलों पर विजय के ऐतिहासिक कारणों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने असम के गौरवशाली प्रधानमंत्री अतन बोरगोहैंन का भी उल्लेख किया।
असमिया फिल्म ‘मणिराम देवान’ के गीत पर मैत्रेयी दत्ता के मधुर गायन ने कार्यक्रम में सांस्कृतिक रंग भरा।
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से जुड़े मुकुल जी ने अपने वक्तव्य में “लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक” की परंपरा, लचित की अद्वितीय वीरता और उनके प्रसिद्ध वचन “घर-परिवार से बढ़कर देश की रक्षा है” का उल्लेख किया। उन्होंने युवाओं को लचित की रणनीतियों और नेतृत्व से प्रेरणा लेने का संदेश दिया।
कार्यक्रम का समापन श्री तरुण जी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
इस अवसर ने उपस्थित छात्रों और अतिथियों को असम की वीर विरासत और लचित बोरफुकन के अद्वितीय राष्ट्रनिष्ठ योगदान से रूबरू कराया।





















