295 Views
“मैं प्लेन में बैठ चुका था, दिल्ली जा रहा था—लगभग छह घंटे की यात्रा। सोचा था—चुपचाप बैठकर थोड़ी किताब पढ़ूंगा और बीच में कुछ देर आँखें भी मूंद लूंगा।
टेकऑफ से ठीक पहले देखा कि प्लेन का दरवाज़ा फिर से खोला गया और एक दल भारत के जवानों का अंदर आया—करीब दस के आस-पास। वे एक-एक करके मेरे आसपास की सीटों पर बैठ गए। चेहरे शांत, गंभीर।
बगल में बैठे एक जवान से मैंने पूछा, “आप लोग कहाँ जा रहे हैं?”
वो बोला, “आगरा। दो हफ्ते की ट्रेनिंग है, फिर ऑपरेशन।”
इतना कहकर चुप हो गया। क्या ऑपरेशन, कहाँ—कुछ नहीं बताया। समझ गया, बताने की अनुमति नहीं है।
करीब एक घंटे बाद एयर होस्टेस की अनाउंसमेंट हुई—“आपका लंच सर्व किया जाएगा, जो चाहें, पैसे देकर लंच खरीद सकते हैं।”
मैं पर्स निकाल ही रहा था, तभी सुना कि वे जवान आपस में बात कर रहे हैं—
“खाएगा?” “धत्त, यहाँ तो बहुत महंगा है। नीचे उतरकर होटल में खा लेंगे।”
कुछ तो हुआ अंदर। चुपचाप जाकर एयर होस्टेस से कहा, “इन सभी का खाना मैं ले रहा हूँ। कृपया इन्हें सर्व कर दीजिए।”
उस लड़की की आँखों में आँसू आ गए। धीमे से बोली, “सर, मेरा भाई कारगिल में है। लग रहा है जैसे आप उसे ही खिला रहे हैं…!”
मन कुछ भारी सा हो गया। सीट पर लौट आया। आधे घंटे के अंदर सबके हाथ में खाने के पैकेट पहुँच गए। वे थोड़े हैरान से थे… क्या सोच रहे थे, पता नहीं… लेकिन खाना खोलकर खाना शुरू कर दिया। साफ़ दिख रहा था—भूखे थे!
मैं अपना लंच खत्म कर टॉयलेट की ओर जा रहा था, तभी एक बुज़ुर्ग सामने आए। बोले, “सब देखा मैंने। आप वाकई एक अच्छे इंसान हैं, सर।” फिर एक 500 का नोट मेरी जेब में डालकर बोले, “इस अच्छे काम का हिस्सा मैं भी बनना चाहता हूँ…!” मैं कुछ कह पाता, इससे पहले ही वो अपनी सीट की ओर लौट गए।
लौटकर सोच रहा था—ये सब क्या हो रहा है…? तभी देखा—पायलट खुद मेरी सीट पर आ गया! मैं सीटबेल्ट खोलकर खड़ा हो गया। हँसते हुए बोला, “आपसे हाथ मिलाना चाहता हूँ।”
मैं हैरान। पूछा, “क्यों सर?”
वो बोला, “मैं भी एक समय फाइटर पायलट था। उस दिन एक अनजान आदमी ने मेरे लिए खाना खरीदा था। आज आपने वही पल लौटा दिया… मैंने क्रू से सुना ये सब।”
अचानक चारों तरफ़ तालियाँ बजने लगीं। मैं थोड़ा शर्मिंदा हुआ। क्योंकि असल में कुछ किया ही नहीं था। दिल से किया था… तालियों के लिए तो कुछ किया ही नहीं था…!
कुछ देर बाद, लगभग अठारह साल का एक लड़का मुस्कराता हुआ आया। हाथ मिलाया और एक कागज़ का टुकड़ा मेरी हथेली में देकर चला गया। मैं जैसे किसी भावनात्मक झोंके में था।
विमान लैंड हुआ।
सामान निकाल रहा था, तभी एक सज्जन चुपचाप मेरी जेब में कुछ डालकर तेजी से निकल गए। फिर एक नोट।
लगेज बेल्ट के पास देखा, वे सभी दसों जवान खड़े हैं, सामान का इंतजार कर रहे हैं। मैं दौड़ता हुआ उनके पास गया… बोला, “ये पैसे रख लीजिए। ये देशवासियों का प्यार है… ट्रेनिंग पर जाने से पहले अगर कुछ ज़रूरत हो, तो इसमें से खर्च कर लीजिए।
आप हमारे लिए जो करते हैं, उसका मोल ये थोड़े से पैसे कभी नहीं चुका सकते। बस एक छोटा सा धन्यवाद है आप सभी के लिए।”
वे चुपचाप खड़े रहे। किसी की आँखें नम थीं, कोई मुस्कुरा रहा था। एक फ्लाइट भर देशवासियों का प्यार लेकर अब वे आगे बढ़ेंगे…!
गाड़ी में बैठा।
आँखें बंद कर प्रार्थना की—हे भगवान, इन्हें सुरक्षित रखना… ये तो अपनी जान हथेली पर लेकर देश के लिए मौत की ओर चलते हैं।”
**एक जवान मतलब, जैसे देश के नाम लिखा हुआ एक खाली चेक… जब चाहे देशवासी उस पर कुछ भी लिखकर ले सकते हैं—यहाँ तक कि जान भी।
…और हम में से बहुत से लोग शायद ये बात कभी समझना ही नहीं चाहते।**
—
#संग्रहित
यह कहानी आप साझा करें या न करें, ये आपके ऊपर है। लेकिन मुझे यकीन है—जितनी बार इसे पढ़ेंगे, आंखें नम हो जाएंगी।
जय हिन्द। जय जवान।





















