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मनोज मोहन्ती – निबिया ।
राताबाड़ी के एक आदिवासी गाँव लालगनेई की एक बेहद गरीब लड़की की जान बचाने की कहानी यूनिसेफ की अंतर्राष्ट्रीय बाल संसद के मंच पर पहुँची। मानवता के एक अनूठे उदाहरण के तौर पर उस किशोरी की जीवन बचाने की कहानी 25 अप्रैल को यूनिसेफ बाल संसद में प्रकाशित की जाएगी।
विकलांगों के लिए समर्पित एक राष्ट्रीय संगठन “सक्षम” की दक्षिण असम इकाई ने उस गरीब लड़की की जान बचाने की कहानी यूनिसेफ को भेजी थी। हालाँकि, असम से दो और कहानियाँ भी यूनिसेफ को भेजी गईं। लेकिन राताबाडी की उस आदिवासी लड़की की जान बचाने के लिए समाज के सभी स्तर के लोग अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए मानवता की मिसाल कायम करने की कहानी को ही यूनिसेफ ने अहमियत दिया।
आज से ठीक एक साल पहले, कोरोना के आगमन के बाद जब देश मे पूर्ण लॉकडाउन चल रहा था, उसी समय राताबाड़ी के चिरागी इलाके की आदिवासी गाँव लालगनेई की एक किशोरी आर्थिक तंगी के कारण एक पेड़ से सहजन लेने गई थी। लेकिन 14 साल की लड़की हतिरुंग रियांग की पैर फिसल कर पेड़ से गिर गई और दिमागी चोट के कारण सात दिनों तक बेहोश रही।
किशोरी के पिता, जो की दुसरे राज्य से मजदूरी छोड़ वापस आकर होम कोरेन्टिन मे गरीबी और भुखमरी से लड़ रहै थे। वे स्थानीय लोगों की मदद से अपनी बेहोश बेटी को लेकर रामकृष्ण नगर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। लेकिन हालत गंभीर होने के कारण, ऑन-ड्यूटी डॉक्टर ने उसे तुरंत शिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाने की सलाह दी। उस समय, हतीरुंग के पिता नागेंद्र रियांग सदमे की स्थिति में थे। क्योंकि स्थानीय लोगों की मदद से वे मिजोरम के सीमावर्ती गांव से 40 किमी दूर रामकृष्ण नगर स्वास्थ्य केंद्र पहुँचे थे। जिनके घर न अनाज का एक दाना था और नाही जैब में फुटी कोड़ी। वह इन्सान अपनी बेसुध बेटी को लेकर शिलचर कैसे जाये?
लेकिन तबही राताबाडी के विधायक विजय मालाकार उसके लिए एक देवदूत बन गए और मदद के लिए हाथ बढ़ाया। विधायक द्वारा दिए गए दस हजार रुपए की मदद से नगेन्द्र ने उसी दिन बेटी को शिलचर मेडिकल कॉलेज अस्पताल मे भर्ती करवाया।
लेकिन एक और कठिन स्थिति मानो नगेंद्र रियांग की प्रतीक्षा कर रही थी। क्यूंकि शिलचर मेडिकल कॉलेज में सभी परीक्षाओं के बाद, ऑन-ड्यूटी डॉक्टरों ने उन्हे उनकी बेटी की बेहतर इलाज के लिए तुरंत गुवाहाटी ले जाने की सलाह दी। डॉक्टरों ने कहा कि अगर गुवाहाटी नहीं ले जाया गया तो उसकी जान बचाना संभव नहीं होगा। लेकिन एक पिता जो
दूसरों की मदद के भरोसे अपनी बेटी को शिलचर इलाज के लिए ले गया था , जिसके पास खुद का कोई संसाधन नहीं है, वह अब गुवाहाटी जाए कैसे ? उसके पास अब कोई चारा नही बचा था। सारे रास्ते मानो बन्द पड़े थे। जिस वजह से अंत में नागेंद्र अपनी बेहोश बेटी के साथ घर लौटने की योजना बना रहे थे।
लेकिन “जाको राखे सांया मार सके ना कोय” यह कहावत एक बार फिर सच साबित होना बाकी था। नतीजतन, एक प्रमुख स्वयंसेवी संगठन, सक्षम के दक्षिण असम प्रान्त सचिव मिठुन रॉय उस समय एक और स्वर्गदूत के रूप में व॔हा पहुंच गए। वे हताश पिता को सुकून देते हुए इलाज के लिए पर्याप्त धन जुटाने के मिशन पर निकल पड़े।
उनकी पहल पर, निबिया क्षेत्र के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता असीम विश्वास और रामकृष्ण नगर सर्कल प्रेस क्लब के महासचिव मनोज मोहंती ने तुरंत विभिन्न लोगों से 10,000 रुपये एकत्रित कर लड़की के पिता के बैंक खाते में रुपये जमा किए। तुरंत, उस गरीब लड़की की जीवन बचाने की याचिका सोशल मीडिया पर फैल गई थी। लालछोरा जीपी के सभापति संजय कुमार गोस्वामी, क्षेत्रीय पंचायत सदस्य हेनॉय नाथ, यंग ओलिवा क्लब निविया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दक्षिण असम के प्रचारक संजय कुमार देव, संघ के जिला पदाधिकारी संजय दास, सुबिनय दास, सक्षम, हेल्पिंग हैंड शिलचर, हिंदू जागरण मंच के मिलन देव, चंदन भर और कई अन्य मानवतावादी लोग आगे आए। नतीजतन, लड़की को उसी दिन विशेष एम्बुलेंस में काछाड़ जिला प्रशासन के सहयोग से और सक्षम की निगरानी में गुवाहाटी भेजा गया।
वहां, जीएनआरसी में सात दिनों के उपचार के बाद किशोरी को होश आ गया। अंततः मौत भी हार गई मानवता के आगे। कुछ दिनों के भीतर, सभी के संयुक्त प्रयासों के कारण मोत से लड़ कर हतिरुंग अपनी मां के पास वापस लौट आई।
हतिरुंग की जीवन बचाने के संघर्ष में, कई लोगों ने अनायास मदद की हाथ बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप उसके पिता के ज़ीरो वैलेन्स खाते में लाखों रुपये जमा किए गए। लेकिन उस संघर्ष के सूत्रधार सक्षम के दक्षिण असम के संपादक, मिठुन रॉय थे। जिनकी अग्रणी भूमिका के बिना हतीरुंग के जीवन दीपक को बचाना संभव नहीं था। इस बार, यूनिसेफ अपने बच्चों की संसद के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हतिरुंग की इसी जीवनरक्षक मिशन की कहानी पेश करेगा। रविवार दुनिया मानवता के उस अनोखे उदाहरण की कहानी से अवगत होगी।
राताबाड़ी के उस सुदूर गाँव पर सारी दुनिया उस दिन ऑनलाइन नज़र रखेगी। लॉकडाउन के दौरान घटी उस कहानी को सुनेंगी। बोलेगी हतिरुंग रियांग और सक्षम संगठन सहित निबियाा, चिरागी इलाके के समाजसेवी लोग। जो विश्व को प्रेरित कर सकता है, जिसके चलते दुनिया भर के ऐसी कई हतिरुंग की जीवन बचाने के लिए और मानवीय लोग सामने आएंगे। “इन्सान इन्सानियत के लिए बने है” यूनिसेफ इस संदेश को कहानी के माध्यम से फैलाना चाहता है।




















