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रक्षाबंधन मनाए जाने के पीछे बहुत सी पौराणिक कथाएं हैं। हिंदू धर्म में इन कथाओं के आधार पर ही भाई-बहन के पवित्र रिश्ते पर आधारित रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। दरअसल, भाई बहन का यह त्यौहार प्रति वर्ष मनाया जाता हैं जिसे हिन्दू पचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं।
राखी एक पवित्र धागा है। भारतीय परंपरा में राखी के धागे को लोह से मजबूत माना जाता है क्योंकि यह आपस में प्यार और विश्वास की परिधि में भाइयों और बहनों को दृढ़ता से बांधता है। परंपराओं के अनुसार, बहन दिया, रोली, चावल और राखी के साथ पूजा थाली तैयार करती है। वे देवी की पूजा करती है उसकी पूजा अपने भाई की कलाई पर राखी से संबंध रखती है। दूसरी तरफ भाई अपने प्यार को वादे के तौर पर व्यक्त करते है की वे हमेशा अपनी बहन के पक्ष में रहेंगे और हर स्तिथि में उसकी रक्षा करेंगे। प्राचीन काल से इस त्योहार को उसी तरीके से और परंपरा से मनाया जाता आ रहा है। चूँकि जैसे जैसे लोगों की जीवनशैली बदल रही है वैसे ही इस पवित्र त्यौहार को मानाने की परंपरा बदलती जा रही है। इसलिए आज, इस उत्सव को व्यापक रूप से मनाया जा रहा है।
हिंदुओं के पवित्र त्योहारों में से एक और भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार अनंत खुशियाँ लेकर आता है, यह भाईयों को बहनों के प्रति उनके कर्तव्यों की याद दिलाता है। रक्षाबंधन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है रक्षा + बंधन अथार्त् रक्षा का बंधन।
इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बांधती हैं और उनकी लम्बी आयु की कामना करती है, तो वहीं भाई ताउम्र उनकी रक्षा का वचन देते है और उन्हें भेंट में कोई ना कोई उपहार भी देते हैं।
भारत में रक्षाबंधन का त्योहार मानना सदियों पहले शुरू हुआ है, और इस ख़ास त्योहार के उत्सव से संबंधित कई कहानियां हैं। रक्षाबंधन के पर्व की उत्पत्ति की बात की जाए तो इस त्योहार को मानने को पीछे, कई सारी हिंदू पौराणिक कथाओं में विवरण मिलता है, जिनमे से कुछ का वर्णन यहा नीचे दिया गया है।
*1. द्रौपदी और भगवान कृष्ण की रक्षाबन्धन की कथा*
भरी सभा मे शिशुपाल ने भगवान कृष्ण का ढंग से अपमान किया। उसका कहना था कि जब इस यज्ञ में इतने बड़े – बड़े राजाओं को बुलाया गया है तो इस छोटे से ग्वाले को क्यों बुलाया। उसकी बात सुनकर कृष्ण जी चुपचाप सब कुछ सुनते रहे। किन जब उसकी 100 से ऊपर गलती पार हुई तो कृष्ण जी ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल पर प्रहार कर दिया और उसी वक्त उसकी मृत्यु हो गयी। सुदर्शन चक्र चलाते समय कृष्ण जी की उंगली में चोट लगने के कारण खून बहने लगा। यह देखकर वहाँ पर उपस्थित द्रौपदी ने अपनी साड़ी का चीर फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बाँध दिया। यह देख भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि बहन द्रौपदी! आज तुमने मेरी रक्षा की। इसके लिए बहुत धन्यवाद। आज के बाद मैं भी तुम्हारी रक्षा करने का वचन देता हूँ। तभी तो जब कौरवों ने द्रौपदी का चीर हरण किया तो भगवान कृष्ण ने उनकी साड़ी को लम्बा कर द्रौपदी की रक्षा की।
*2. राजा बलि और माँ लक्ष्मी का रक्षाबन्धन की कथा*
विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राक्षस राजा बलि के तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी, तो उन्हें राक्षस राजा बलि ने उन्हे अपने महल में अपने पास ही रहने के लिए कहा, और भगवान ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया और राक्षस राजा के साथ रहने लगे, लेकिन, भगवान विष्णु की धर्मपत्नी देवी लक्ष्मी वैकुंठ अपने मूल स्थान पर लौटना चाहती थीं।
इसलिए, उसने राक्षस राजा बलि की कलाई पर राखी बांधी और उसे भाई बना लिया, बलि ने देवी को उपहार माँगने के लिए कहा, तो देवी लक्ष्मी ने बलि से अपने पति को मन्नत से मुक्त करने और उन्हें वापस वैकुंठ लौटने के लिए अनुमति माँगी, और राजा अनुरोध को मान लिया और भगवान विष्णु अपनी पत्नी, देवी लक्ष्मी के साथ अपने स्थान पर लौट आए।
*3. भगवान इंद्र और इंद्राणी की रक्षाबन्धन की कथा*
भविष्य पुराण की प्राचीन कथा के हिसाब से, एक बार सभी देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। भगवान इंद्र देवताओं की ओर से युद्ध लड़ रहे थे, और राक्षस राजा बलि से कठिन प्रतिरोध कर रहे थे। युद्ध काफ़ी लंबे समय तक जारी रहा और निर्णायक अंत तक नहीं पहुँच पाया, यह सब देखकर, इंद्र की पत्नी सची भगवान विष्णु के पास गई, जिन्होंने उन्हें सूती धागे से बना एक पवित्र कंगन दिया।
साची ने अपने पति, भगवान इंद्र की कलाई पर पवित्र धागा बांध दिया, फिर उन्होने राक्षसों को हराया और अमरावती को दोबारा प्राप्त किया। इस प्रकार प्राचीन काल में जब पति युद्ध के लिए जाते थे तो महिलाए अपने पतियों को पवित्र धागा बांधकर प्रार्थना करती थी, जो वर्तमान समय के रिवाज से एकदम विपरीत था, इसलिए पवित्र सूत्र धागा सिर्फ़ भाई-बहन के संबंधों तक ही सीमित नहीं था।
*4.यम और यमुना की कथा*
एक कथा के अनुसार मौत के भगवान, यम 12 साल तक अपनी बहन यमुना से मिलने नहीं जा पाए, जो इस बात से बहुत ही दुखी हो गये थे, माँ गंगा की सलाह मानते हुए भगवान यम अपनी बहन यमुना से मिलने के लिए गए, और यमुना ने खुश होकर अपने भाई यम का अच्छे से सतकार किया जिससे यम बहुत प्रसन्न हुए और यमुना से उपहार मांगा तो उसने अपने भाई को बार-बार देखते रहने की इच्छा व्यक्त की। यह सुनकर भगवान यम ने अपनी बहन यमुना को हमेशा के अमर कर दिया ताकि वह उसे बार-बार देख सके। इस प्रकार यह पौराणिक कथा ‘भाई दूज’ (जो रक्षा बंधन के जैसा ही त्योहार है) के त्योहार को साकार बनाती है जो भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित त्योहार है।
*5. संतोषी माँ की कथा*
ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश के दोनो पुत्र शुभ और लाभ उनकी कोई बहन नहीं होने के कारण हमेशा निराश रहते थे, उन्होंने अपने पिता से कहा कि हमे एक बहन चाहिए, फिर भगवान श्री गणेश ने एक दिव्य ज्वाला के माध्यम से संतोषी मां की रचना की, इस तरह रक्षाबंधन के अवसर पर भगवान गणेश के दो पुत्रों को एक बहन की प्राप्ति हुई।
*राखी बाँधते समय इस मंत्र का प्रयोग करे*
येन बद्धो बलि: राजा दनवेंद्रो महाबल।
तेन त्वमपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
इसका अर्थ है , एक बहन रक्षा सूत्र बाँधते वक्त कहती है कि जिस रक्षा सूत्र से महान राजा बलि को बाँधा गया था। उसी सूत्र से मैं तुम्हे बाँधती हूँ।
हे रक्षे ( राखी ) तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी विचलित मत होना। इसी कामना के साथ बहन अपनी भाई की कलाई पर राखी बाँधती है। यह कहानी पसंद आए तो अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें। डा. बी. के. मल्लिक 9810075792